रायपुर– प्राकृतिक और खनिज संसाधन से भरपूर छत्तीसगढ़ में बड़ी आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है. किसी भी क्षेत्र के समग्र विकास के लिये कृषि,उद्योग,व्यापार-व्यवसाय और सेवा क्षेत्रों का संतुलित रुप से विकास होना आवश्यक है,लेकिन अलग राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ में औद्योगिक विकास की गति संतोषजनक नहीं है,जिसके चलते राज्य में समग्र विकास बाधित
है. दरअसल निजी उद्योग और स्थानीय निवासियों के बीच बेहतर समन्वय की कमीं औद्योगिक विकास में एक बड़ी बाधा साबित हो रही है.

आखिर क्या वजह है कि स्थानीय लोग उद्योग का विरोध करते हैं,जबकि उद्योग लगने पर ये माना जाता है कि संबंधित इलाके में विकास की नई इबारत लिखी जायेगी और स्थानीय लोगों के जीवनस्तर में उल्लेखनीय सुधार होता है.इसी उद्देश्य के साथ ही तो देश में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी.लेकिन वर्तमान परिदृश्य में आखिर आज क्या वजह है कि स्थानीय लोग उद्योंगों का विरोध करने लगे हैं.इस विषय को समझने के लिये हमने विशेष परिचर्चा का आयोजन किया,जिसमें प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ हनुमंत यादव, वरिष्ठ पत्रकार आर कृष्णा दास और सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश शर्मा से विस्तृत बातचीत की.

देखिये वीडियो कि जानकार इस बारे में क्या राय रखते हैं और इनके मुताबिक कैसे उद्योगों के लिये बेहतर वातावरण का निर्माण हो सकता है…

विशेष परिचर्चा : 

इस संबंध में डॉ हनुमंत यादव ने कहा कि जब हम आर्थिक विकास की बात करते हैं तो इसका मुख्य रुप से अर्थ होता है औद्योगिक विकास. कृषि भले ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ ही हड्डी कहलाती है,लेकिन औद्योगिक विकास को ही विकास का इंजन कहा जाता है. औद्योगिक विकास के लिये जिन संसाधनों की आवश्यकता होती है,वह सभी संसाधन छत्तीसगढ़ में मौजूद हैं.यहां पर खनिज संसाधन हैं,यहां पर उर्जा के लिये कोयले की खानें हैं. सरकार औद्योगिक निवेश को बढ़ाने के लिये तरह तरह की कवायद करती है, लेकिन इसके बाद भी जो निवेश होना चाहिये या फिर निवेश का ढ़ांचा होना चाहिये,वो अभी तक खड़ा नहीं हो पाया है.इसका कारण ये है कि भारी उद्योग वहीं लगाया जाता है जहां पर खनिज और उर्जा के संसाधन मौजूद हों और छत्तीसगढ़ में ये संसाधन सरगुजा और बस्तर में प्रचुर मात्रा में हैं,लेकिन ये दोनों क्षेत्र आदिवासी और वन बहुल क्षेत्र हैं.इन्हीं बातों को लेकर उद्योगों का विरोध किया जाता है और यही कारण है कि ये इलाके विकास से वंचित हैं.हनुमंत यादव ने कहा कि जब इन इलाकों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम लगाये जाते हैं तो उनका विरोध नहीं होता और उस समय कोई यह नहीं कहता कि आदिवासी संस्कृति नष्ट हो रही है,लेकिन निजी उद्योग का नांम लेते ही आदिवासी संस्कृति नष्ट हो जाने का हवाला देकर विरोध शुरु हो जाता है,जैसा कि बस्तर में टाटा स्टील को लेकर विरोध हुआ.वहीं पर पहले ग्राम सभा ने टाटा स्टील प्लांट को अनुमति दे दी,लेकिन जब प्रक्रिया आगे बढ़ी,तो फिर से ग्राम सभा आयोजित करने की मांग को लेकर टाटा का विरोध किया जाने लगा.आदिवासी संस्कृति और पर्यावरण के नाम से उद्योगों के विरोध का जो सिलसिला चल रहा है,उसी के कारण आज भी छत्तीसगढ़ सहित आसपास के राज्य अब भी बीमारु राज्य की श्रेणी में आते हैं.हनुमंत यादव का मानना है कि आदिवासी इलाकों में शिक्षा के अभाव में लोग उद्योग के मह्त्व को समझ नहीं पाते हैं और बाहरी लोग मानव अधिकार,नागरिक अधिकार के नाम पर आदिवासियों को भड़काने चले जाते हैं और उनके प्रभाव में आकर स्थानीय लोग उद्योंगों का विरोध करने लगते हैं.जबकि हर उद्योग लगाने के पहले सरकार सभी तरह के सर्वे करती है और नियम और शर्तों के आधार पर ही उद्योग लगाने की अनुमति देती है,बावजूद इसके उद्योगों का विरोध होता है.डॉ यादव के मुताबिक ये सरकार और उस इलाके के जनप्रतिनिधियों की जवाबदारी है कि वे स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर समझायें कि उद्योग उनके और उनके आसपास के इलाके के विकास के लिये जरुरी है,तभी हालात सुधर पायेंगे.

वरिष्ठ पत्रकार आर कृष्णा दास का कहना है कि यदि आपको राज्य में औद्योगिक विकास करना है,तो उद्योगों के अनुकुल वातावरण तैयार करना होगा.दुर्भाग्य से छत्तीसगढ़ में अभी तक वो वातावरण नहीं बन पाया है,जिससे उद्योगपति छत्तीसगढ़ में उद्योग लगाने में रुचि दिखायें.उद्योगों में करोंडों का निवेश करने से पहले उद्योगपति सभी संभावनाओँ पर विचार विमर्श करने के बाद अनुकुल स्थिति होने पर ही निवेश करते हैं.लेकिन औद्योगीकरण के साथ जब राजनीति होने लगती है,तो फिर मामला गड़बड़ा जाता है. इसलिये औद्योगीकरण के साथ राजनीति नहींं होनी चाहिये.स्थानीय निवासी उ्दयोगों का विरोध नहीं करते,लेकिन जब कोई व्यक्ति वहां आकर उद्योग के खिलाफ नेतृत्व करने लगता है,तब लोग उसके पीछे होकर विरोध में शामिल हो जातें हैं. सरकार को यदि बेहतर औद्योगीकरण का माहौल बनाना है,तो एक एक्शन प्लान बनाना होगा,जिसके तहत स्थानीय लोगों का कौशल उन्नयन किया जाये और उन्हें विश्वास दिलाया जाये कि उद्योग के लगने से उनका सर्वांगीण विकास होगा,तभी राज्य में औद्योगिक विकास को गति मिल सकेेगी.

सामाजिक कार्यकर्ता दिनेश शर्मा का कहना है कि छत्तीसगढ़ प्राकृतिक और खनिज संसाधनों से भरपूर है और यहां पर विकसित राज्य की पूरी संभावना है,लेकिन राज्य शासन की नीति और नियत सही नहीं होने से यहां पर औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है. आज औद्योगिक विकास के नाम पर राजनीति हावी है. उद्योग लगाने के नाम पर राजनीति की जाती है,जिसका विकास पर नकारात्मक असर पड़ रहा है.दिनेश शर्मा का मानना है कि यदि सरकार उद्योगों को संरक्षण देगी,तभी राज्य का औद्योगिक विकास हो पायेगा. उनका कहना है कि कई लोग निजी स्वार्थ के चलते उद्योगों की स्थापना का विरोध करते हैं,ऐसे लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज कर कार्रवाई की जानी चाहिये.

 

छत्तीसगढ़ की औद्योगिक पृष्ठभूमि और औद्योगिक विकास की दशा और दिशा

1 नवम्बर 2000 को उदित हुआ नया राज्य और धान के कटोरे के रूप में सुविख्यात छत्तीसगढ़ औद्योगिक प्रगति से भी अछूता नहीं रहा है. क्षेत्र विशेष के विकास तथा आर्थिक संरचना को सुदृढ़ आधार प्रदान करने में मूलतः औद्योगिक प्रगति ही सहायक होती है. छत्तीसगढ़ प्रदेश कृषि प्रधान क्षेत्र होने के साथ ही खनिज प्रधान क्षेत्र भी रहा है.यहाँ उपलब्ध विपुल खनिज सम्पदा, वनोपज, जल, विद्युत तथा मानव श्रम एवं विस्तारित कृषि आधार के फलस्वरूप प्रदेश में सभी प्रकार के उद्योगों की सम्भावनाएँ विद्यमान हैं.
प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न इस क्षेत्र के औद्योगिक विकास में खनिज, वन एवं कृषि सम्पदा का योगदान महत्त्वपूर्ण रहा है. अविभाजित मध्यप्रदेश में कोरबा ताप विद्युत संयंत्र, भिलाई इस्पात संयंत्र तथा भारत एल्युमिनियम कम्पनी की स्थापना प्रदेश की औद्योगिक प्रगति में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई, इसके साथ ही सीमेंट संयंत्रों की स्थापना का योगदान भी महत्त्वपूर्ण रहा है.

लेकिन वर्तमान में जिस तेजी से औद्योगिक विकास होना चाहिये वह नहीं हो पा रहा है. निजी उद्योगों को कई तरह की
परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.सबसे बड़ी समस्या निजी उद्योगों और स्थानीय निवासियों के बीच मनमुटाव के रुप में सामने आ रहा है.आजकल उद्योग लगने का प्रस्ताव आते ही स्थानीय स्तर पर विरोध होना शुरु हो जाता है. पर्यावरण, भूमि अधिग्रहण,रोजगार और दूसरे तरह की परेशानियों का हवाला देते हुए स्थानीय लोगों का उद्योगों के खिलाफ आंदोलन शुरु हो जाता
है.जबकि उद्योंगों को स्थापना की अनुमति तभी दी जाती है,जब वह स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराये और स्थानीय पर्यावरण की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाये.साथ में कार्पोरट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत स्थानीय लोगों के जीवनस्तर में सुधार लाने के लिये निर्धारित राशि खर्च करे. प्रदेश में कार्पोरेट कंपनियों द्वारा सीएसआर मद से कई तरह के कल्याणकारी खर्च किये जाते हैं,जिससे स्थानीय लोगों का जीवनस्तर सुधरे और आसपास के इलाकों में बेहतर सामाजिक आर्थिक वातावरण का निर्माण हो सके. लेकिन हाल
के दिनों में देखा गया है कि स्थानीय लोग कुछ लोगों के बहकावे में आकर उद्योग की स्थापना का विरोध करने लगते हैं, जिससे स्थानीय क्षेत्र के विकास के साथ साथ राज्य और देश के विकास की गति नकारात्मक रुप से प्रभावित होने लगी है..

आदिवासी बाहुल्य प्रदेश होना तथा शिक्षा के स्तर में कमी औद्योगिक विकास में एक प्रमुख बाधा दिखाई देती है। प्रदेश में शिक्षा का स्तर बढ़ाकर तथा पिछड़े क्षेत्रों को मुख्य धारा में लाकर विकास की रणनीति को सुनिश्चित किया जा सकता है।प्रदेश के दूरस्थ क्षेत्रों में औपचारिक शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा का भी अभाव है. इसका विशेष ध्यान रखकर स्थानीय श्रमिकों को व्यवसाय में कुशल बनाया जाना चाहिए. समग्र विकास तभी संभव है जब उद्योंगों और स्थानीय लोगों के बीच बेहतर समन्वय हो,परस्पर विश्वास का वातावरण बने और दोनों एक दूसरे के विकास में पूरक बनें…