सभी अभिभावक की यह हार्दिक कामना होती है कि उसकी संतान का विवाह समय से हो किंतु उससे प्रमुख कामना होती है कि वह विवाह के उपरांत सुखी तथा खुश रहे. इस हेतु भारतीय समाज में कुंडली मिलान का प्रमुख स्थान है. हिन्दू समाज अपनी संतान के विवाह से पूर्व कुंडली मिलान तथा सभी परंपराओं का निर्वाह करना चाहते हैं. विवाह-निर्णय के लिए वर-वधू मेलापक ज्ञात करने की विधि अत्यंत महत्वपूर्ण है.

भारतीय समाज में ऐसी मान्यता है कि जीवनसाथी का श्रेष्ठ मिलान नहीं होता है तो उनका वैवाहिक जीवन कष्टमय हो जाता है. अतः इस हेतु हिंदु संस्कार में विवाह हेतु कुंडली मिलान का विशेष महत्व है.

साधारणतया अष्टकूट अर्थात् तारा, गुण, वश्य, वर्ण, नाड़ी, योनी, ग्रह गुण आदि के आधार पर वर-वधु मेलापक सारिणी के आधार पर गुणों की संख्या के साथ दोषों के संकेत होते हैं. सर्वश्रेष्ठ मिलान में 36 गुणों का होना श्रेष्ठ मिलान का प्रतीक माना जाता है. जितने भी गुण मिले, वह वैवाहिक जीवन में सफलता का प्रतीक मान लिया जाता है. इसके अलावा कुंडली मिलान के अलावा मंगल दोष का विचार किया जाता है. किन्तु मेरे सालो के ज्योतिष कैरिएर में मैंने देखा है कि गुण मिलान ठीक होने के बाद और मंगल दोष का पालन करने के बाद भी वैवाहिक जीवन में कष्ट दिखाई देता है और मेरे देखने के अनुसार इसका एक कारण शनि दिखाई देता है.

किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम और द्वादश भाव में शनि हो या सप्तम अथवा द्वादश भाव शनि दृष्ट हो तो वैवाहिक जीवन में कष्ट आता है. किन्तु पुरे विवाह मेलापक में इसका कोई उल्लेख नहीं है. वैवाहिक जीवन के कष्ट शनि की ही दशा में ज्यादा दिखाई देते हैं. शनि क्यों विवाह में न्याय नहीं करता इसका कारण वेदो से जरूरी जाना जा सकता है किंतु शनि वैवाहिक सुख बाधित जरूर करता है इसका व्यवहारिक परिणाम देखने में आते हैं.

इसलिए मेरा मत है की मेलापक में शनि दोष जरुर देखना चाहिए और दोष निवारण के भी पुरे उपाय करने चाहिए. इसके लिए कुंभ या अर्क विवाह के साथ शनि शांति. विवाह के समय लोहे का दो छल्ला बना कर एक शनि को दान कर दूसरा उस जातक को अपने पास सुरक्षित रखना चाहिए, जिसे शनि दोष हो इसके अलावा जमुनिया रत्न का दान विधि पूर्वक करना और शनि प्रदोष का व्रत करना चाहिए.