श्रावण मास में मंदिरों में शिवलिंग पर जल अर्पित करते भक्तों की कतारें हर ओर दिखाई देती हैं. पर क्या आपने कभी सोचा है कि शिवलिंग पर जहां अमृत समान गंगाजल चढ़ता है, वहीं कालकूट जैसे ज़हर का भी पूजन में ज़िक्र क्यों होता है?
दरअसल, इसका रहस्य छिपा है सृष्टि की उस घटना में जब समुद्र मंथन हुआ था. देवों और दानवों ने मिलकर अमृत पाने के लिए समुद्र को मथा, तो सबसे पहले निकला भीषण हलाहल विष, इतना प्रचंड कि सम्पूर्ण सृष्टि को नष्ट कर सकता था. सभी देवता भाग खड़े हुए, पर तब भगवान शिव ने आगे बढ़कर वह ज़हर अपने कंठ में धारण कर लिया.
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श्रावण मास में शिवलिंग पर जल और विष क्यों चढ़ाते हैं? जानिए इससे जुड़ा पौराणिक और वैज्ञानिक रहस्य
वह दिन था जब शिव ‘नीलकंठ’ कहलाए. तब से शिवलिंग पर जल अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई ताकि विष का ताप शांत रहे. जल, दूध और बेलपत्र शिव को शीतलता प्रदान करते हैं. वहीं यह भी दर्शाते हैं कि जो ज़हर दुनिया नहीं संभाल पाई, वह शिव ने अपने भीतर समाहित कर लिया.
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जल का चढ़ाया जाना केवल अभिषेक नहीं है, बल्कि ब्रह्मांड को संतुलित रखने का प्रतीक है. और विष का पूजन, बुराई को आत्मसात कर उसे नियंत्रित करने की शक्ति का स्मरण कराता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो शिवलिंग का आकार और उस पर बहती जलधारा उसे लगातार ठंडक देती है. यह ऊर्जा संतुलन का प्रतीक भी माना जाता है. विष का तात्पर्य नकारात्मकता से है, जिसे शिव में विसर्जित कर सकारात्मक ऊर्जा को बनाए रखने का संदेश मिलता है.
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