वैवाहिक जीवन में यौन संबंध का बड़ा योगदान होता है. पति-पत्नी के बीच लंबे समय तक शारीरिक संबंध नहीं बना हो तो वह मानसिक प्रताड़ना और क्रूरता हो सकती है और उसके आधार पर तलाक लिया जा सकता है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते इसी तरह के एक क्रूरता के आधार पर एक जोड़े के विवाह को भंग कर दिया.

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पति या पत्नी को लंबे समय तक अपने साथी के साथ बिना उचित और पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति नहीं देना अपने आप में मानसिक क्रूरता के बराबर है. जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस राजेंद्र कुमार-चतुर्थ की खंडपीठ ने एक पति द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका खारिज करने के पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर ये फैसला सुनाया है.

पारिवारिक न्यायालय, वाराणसी के प्रधान न्यायाधीश के आदेश को रद्द करते हुए हाई कोर्ट ने कहा, “चूंकि ऐसा कोई स्वीकार्य दृष्टिकोण नहीं है, जिसमें एक पति या पत्नी को आजीवन साथ रहने के लिए मजबूर किया जा सकता है, दोनों पक्षों को जबरन शादी से हमेशा के लिए बांधे रखने की कोशिश से भी कुछ नहीं मिलता है, वास्तव में यह विवाह समाप्त हो गया है.”

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लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, वाराणसी की फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ, पीड़ित पति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. याचिका में कहा गया था कि युगल (वादी-अपीलकर्ता/पति और प्रतिवादी-पत्नी) ने मई 1979 में शादी की थी. इसके कुछ समय बाद पत्नी का व्यवहार और आचरण बदल गया और उसने पत्नी के रूप में उसके साथ रहने से इनकार कर दिया. काफी समझाने के बावजूद पत्नी ने पति से कोई यौन संबंध नहीं बनाया.

याचिकाकर्ता के मुताबिक, कुछ समय के लिए दोनों एक ही छत के नीचे रहते थे,लेकिन कुछ समय बाद प्रतिवादी स्वेच्छा से अपने माता-पिता के घर जाकर अलग रहने लगी. अपीलकर्ता ने आगे कहा कि उसकी शादी के छह महीने बाद, जब उसने अपनी पत्नी को मनाने की कोशिश की और वैवाहिक जीवन के अपने दायित्व का निर्वहन करने और वैवाहिक बंधन का सम्मान करने के लिए ससुराल वापस आने के लिए कहा तो, उसने वापस आने से इंकार कर दिया.

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