बेंगलुरु। हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने फैसला सुनाया कि पत्नी बेकार नहीं बैठ सकती और अलग रह रहे पति से पूरा भरण-पोषण नहीं मांग सकती. न्यायमूर्ति राजेंद्र बदामीकर की पीठ एलएक्सवीआई अतिरिक्त सिटी सिविल और सत्र न्यायाधीश, बैंगलोर द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस रजेंद्र बदामीकार ने पाया कि महिला शादी से पहले काम कर रही थी और इस बार उसकी तरफ से ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई कि वह अब काम क्यों नहीं कर सकती हैं. जज ने कहा कि उन्हें खाली बैठकर पति से पूरा गुजारा नहीं मांगना चाहिए. साथ ही वह आजीविका के लिए काम करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है और पति से केवल मदद योग्य गुजारा मांग सकती है.
बच्चे के खर्चों में कटौती नहीं
हाईकोर्ट ने पाया था कि अपीलीय अदालत ने बच्चे को गुजारा भत्ता देने के आदेश की पुष्टि की है. साथ ही केवल पत्नी को मिलने वाले भत्ते को कम किया है. साथ ही उच्च न्यायालय ने यह भी पाया कि महिला सास और अविवाहित ननद के साथ रहने की इच्छुक नहीं है. कोर्ट का कहना है कि प्रोविजन स्टोर चलाने वाले पति पर उसकी मां और अविवाहित बहन की भी जिम्मेदारी है. कोर्ट ने कहा- इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं है कि किस आधार पर मुआवजा तय किया गया था. न ही इसे चुनौती दी गई. इसलिए आदेश में हस्तक्षेप करने का सवाल ही नहीं उठता. महिला की याचिका खारिज की जाती है.
हाईकोर्ट ने कहा- शादी से पहले काम करती थी तो अब क्यों नहीं
हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच उस केस पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सेशन कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें महिला को दिए जाने वाले गुजारा-भत्ते को 10 हजार से घटाकर 5 हजार और मुआवजे को 3 लाख से 2 लाख कर दिया गया था.जस्टिस बादामीकर ने कहा कि महिला अपनी शादी से पहले काम कर रही थी, और उसने इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि वह अब काम क्यों नहीं कर सकती है.
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