रायपुर। हसदेव अरण्य क्षेत्र में नया खदान खोलने के मुद्दे पर नया मोड़ आ गया है. हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड क्षेत्र की जैव विविधता का और वहां के जीवों पर पड़ने वाले असर का निर्धारण करने उपरांत भारतीय वन्यजीव संस्थान ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. इसमें क्षेत्र में नया खदान शुरू किए जाने से मानव-हाथी का द्वंद भयानक होगा, जो राज्य सरकार के संभाले नहीं संभलेगा.
भारत सरकार वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2011 में 1898 हेक्टर में कोल ब्लॉक के लिए स्टेज वन की अनुमति प्रदान की. जबकि भारत सरकार की ही फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने इस आबंटन को निरस्त करने की अनुशंसा की थी. बाद में 2012 में स्टेज 2 का फाइनल क्लीयरेंस भी जारी कर दिया गया और 2013 में माइनिंग कार्य चालू हो गई.
इस आदेश के खिलाफ सुदीप श्रीवास्तव ने एनजीटी, प्रिंसिपल बेंच में अपील दायर की था. एनजीटी ने सुझाव दिया कि इसके लिए भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद और भारतीय वन्यजीव संस्थान से एडवाइज और स्पेशलाइज्ड नॉलेज ले सकती है. हालांकि, यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है. इसके बाद वर्ष 2017 में पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कोल ब्लॉक का अप्रूवल इस शर्त के साथ जारी किया कि दोनों संस्थाओं से हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड की जैव विविधता पर रिपोर्ट ली जाएगी.
रिपोर्ट में क्या दी है चेतावनी?
भारतीय वन्यजीव संस्थान के 277 पेज की रिपोर्ट में लिखा गया है कि देश के 1 प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में हैं, जबकि हाथी मानव द्वंद में 15 प्रतिशत जनहानि छत्तीसगढ़ में होती है. रिपोर्ट में उल्लेखित किया गया है कि किसी एक स्थान पर कोल माइनिंग चालू की जाती है, तो उससे हाथी वहां से हटने को मजबूर हो जाते हैं, और दूसरे स्थान पर पहुंचने लगते हैं, जिससे नए स्थान पर हाथी-मानव द्वंद बढ़ने लगता है. ऐसे में हाथियों के अखंड आवास, हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड क्षेत्र में नई माइन खोलने से दूसरे क्षेत्रों में मानव-हाथी द्वंद इतना बढ़ेगा कि राज्य को संभालना मुश्किल हो जाएगा.
नो गो एरिया घोषित करने की वकालत
भारतीय वन्य जीव संस्थान ने रिपोर्ट में कहा कि वर्तमान में परसा ईस्ट केते बासन में माइनिंग चालू है और माइनिंग की अनुमति सिर्फ इसी के लिए रहनी चाहिए. अद्वितीय, अनमोल और समृद्ध जैव विविधता और सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों को देखते हुए हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड का और उसके चारों तरफ का एरिया नो-गो एरिया घोषित किया जाना चाहिए. इसके साथ ही रिपोर्ट में क्षेत्र में संकटग्रस्त वनस्पति और जीव जंतु के होने के साथ हाथियों का कारीडोर करार दिया है.
आदिवासी वन पर आश्रित है
रिपोर्ट में बताया गया है कि हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रधान रूप से आदिवासी रहते हैं. जो कि वनों पर बहुत ज्यादा आश्रित है. नान टिंबर फॉरेस्ट प्रोड्यूस से इन्हें 46 प्रतिशत मासिक आय होती है. इसमे जलाऊ लकड़ी, पशुओं का चारा, दवाई वाली वनस्पति, पानी शामिल नहीं है. अगर इनको शामिल कर लिया जाए कम से कम से कम 60 से 70 प्रतिशत इनकी आय वनों से होती है. स्थानीय समुदाय माइनिंग के पक्ष में नहीं है.
संकटग्रस्त और विलुप्तप्राय वन्यप्राणियों का घर है हसदेव अरण्य
हसदेव अरण्य कोल्ड फील्ड, छत्तीसगढ़ के 3 जिलों सरगुजा, सूरजपुर और कोरबा में फैला बहुमूल्य जैव विविधता वाला वन क्षेत्र है. भारतीय वनजीव संस्थान ने यहाँ कई वन्य प्राणियों की कैमरे में उपस्थिती पाई, जिनमें भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अधिसूची एक के हाथी, भालू, भेडिया, बिज्जू, तेंदुआ, चोसिंगा, रस्टी स्पॉटेड बिल्ली, विशाल गिलहरी, पैंगोलिन. अधिसूची दो के सियार, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, लाल मुह के बन्दर, लंगूर, पाम सीवेट, स्माल सीवेट, रूडी नेवला, कॉमन नेवला. अधिसूची तीन के लकड़बग्गा, स्पॉटेड डिअर, बार्किंग डिअर, जंगली सूअर. अधिसूची तीन के खरगोश, साही शामिल है.
आईयूसीएन की रेट लिस्ट के अनुसार, यहां पर दो प्रजातियां विलुप्तप्राय श्रेणी की है, तीन संकटग्रस्त है, पांच पर खतरा आ सकता है, और 15 सामान्य है. रिपोर्ट में इसके अलावा बताया गया है कि इस क्षेत्र में 92 प्रकार के पक्षी भी रहते हैं, क्षेत्र की वनस्पति पर भी प्रकाश डाला गया है.