रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष व नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र ने शासकीय दू. श्री. वै. स्नातकोत्तर संस्कृत महाविद्यालय रायपुर में आयोजित व्याख्यान में कहा कि देश में अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों के कारण अक्सर अनेक निर्दोष लोगों को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है, जिससे निदान के लिए आम जन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की अत्यंत आवश्यकता है।

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कुछ लोग अंधविश्वास के कारण हमेशा शुभ-अशुभ के फेर में पड़े रहते हैं। यह सब हमारे मन का भ्रम है। शुभ-अशुभ सब हमारे मन के अंदर ही है। किसी भी काम को यदि सही ढंग से किया जाए, मेहनत, ईमानदारी से किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है। उन्होंने कहा कि 18वीं सदी की मान्यताएं व कुरीतियां अभी भी जड़ें जमाए हुई हैं, जिसके कारण जादू-टोना, डायन, टोनही, बलि व बाल विवाह जैसी परंपराएं व अंधविश्वास आज भी वजूद में हैं। जिससे प्रतिवर्ष अनेक मासूम जिंदगियां तबाह हो रही हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाने और तार्किक सोच अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि अंधविश्वास व कुरीतियों के विरुद्ध समाज के साथ विद्यार्थियों को भी एकजुट होकर आगे आना चाहिए।

डॉ. मिश्र ने कहा प्राकृतिक आपदाएं हर गांव में आती हैं, मौसम परिवर्तन व संक्रामक बीमारियां भी गांव को चपेट में लेती हैं, वायरल बुखार, मलेरिया, दस्त जैसे संक्रमण भी सामूहिक रूप से अपने पैर पसारते हैं। ऐसे में ग्रामीण अंचल में लोग कई बार बैगा-गुनिया के परामर्श के अनुसार विभिन्न टोटकों, झाड़-फूंक के उपाय अपनाते हैं। जबकि प्रत्येक बीमारी व समस्या का कारण व उसका समाधान अलग-अलग होता है, जिसे विचारपूर्ण तरीके से ढूंढा जा सकता है। उन्होंने कहा कि बिजली का बल्ब फ्यूज होने पर उसे झाड़-फूंक कर पुनः प्रकाश नहीं प्राप्त किया जा सकता, न ही मोटर साइकिल, ट्रांजिस्टर बिगड़ने पर उसे ताबीज पहना कर सुधारा जा सकता है। रेडियो, मोटर साइकिल, टीवी, ट्रैक्टर की तरह हमारा शरीर भी एक मशीन है जिसमें बीमारी आने पर उसके विशेषज्ञ के पास ही जांच व उपचार होना चाहिए।

डॉ. मिश्र ने विभिन्न सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों की चर्चा करते हुए कहा कि बच्चों को भूत-प्रेत, जादू-टोने के नाम से नहीं डराएं क्योंकि इससे उनके मन में काल्पनिक डर बैठ जाता है, जो ताउम्र बना रहता है। बल्कि उन्हें आत्मविश्वास, निडरता के किस्से-कहानियां सुनानी चाहिए। जिनके मन में आत्मविश्वास व निर्भयता होती है उन्हें न ही नजर लगती है और न कथित भूत-प्रेत बाधा। यदि व्यक्ति कड़ी मेहनत व पक्के इरादे से काम करे तो कोई भी ग्रह शनि, मंगल, गुरु उसके रास्ते में बाधा नहीं बनता।

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि देश में जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक की मान्यताओं एवं डायन/टोनही के संदेह में प्रताड़ना तथा सामाजिक बहिष्कार के मामलों की भरमार है। डायन के संदेह में प्रताड़ना के मामलों में अंधविश्वास व सुनी-सुनाई बातों के आधार पर किसी निर्दोष महिला को डायन घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बच्चों को बीमार करने, फसल खराब होने, व्यापार-धंधे में नुकसान होने के कथित आरोप लगाकर उसे तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना दी जाती है। कई मामलों में आरोपी महिला को गांव से बाहर निकाल दिया जाता है। बदनामी व शारीरिक प्रताड़ना के चलते कई बार पूरा पीड़ित परिवार स्वयं गांव से पलायन कर देता है। कुछ मामलों में महिलाओं की हत्याएं भी हुई हैं अथवा वे स्वयं आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती हैं।

जबकि जादू-टोना के नाम पर किसी भी व्यक्ति को प्रताड़ित करना गलत तथा अमानवीय है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति के पास ऐसी जादुई शक्ति नहीं होती कि वह दूसरे व्यक्ति को जादू से बीमार कर सके या किसी भी प्रकार का आर्थिक नुकसान पहुँचा सके। जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, टोनही, नरबलि के मामले सब अंधविश्वास के ही उदाहरण हैं। महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, असम सहित अनेक प्रदेशों में प्रतिवर्ष टोनही/डायन के संदेह में निर्दोष महिलाओं की हत्याएँ हो रही हैं जो सभ्य समाज के लिए शर्मनाक हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने सन् 2001 से 2015 तक 2604 महिलाओं की मृत्यु डायन प्रताड़ना के कारण होने को माना है, जबकि वास्तविक संख्या इससे बहुत अधिक है। अधिकतर मामलों में पुलिस रिपोर्ट ही नहीं हो पाती। हमने जब आरटीआई से जानकारी प्राप्त की तो हमें बहुत ही अलग आंकड़े मिले। झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, असम में हजारों प्रमाणिक जानकारी हैं, जबकि कुछ राज्यों से जवाब ही नहीं मिला। पर समाचार पत्रों में लगभग सभी राज्यों से ऐसी घटनाओं के समाचार मिलते हैं।

डॉ. मिश्र ने कहा कि आम लोग चमत्कार की खबरों के प्रभाव में आ जाते हैं। हम चमत्कार के रूप में प्रचारित होने वाले अनेक मामलों का परीक्षण और उस स्थल पर जांच भी समय-समय पर करते रहे हैं। चमत्कारों के रूप में प्रचारित की जाने वाली घटनाएँ या तो सरल वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के कारण होती हैं तथा कुछ में हाथ की सफाई, चतुराई होती है जिनके संबंध में आम आदमी को मालूम नहीं होता। कई स्थानों पर स्वार्थी तत्वों द्वारा साधुओं को वेश धारण कर चमत्कारिक घटनाएँ दिखाकर ठगी करने के मामलों में वैज्ञानिक प्रयोग व हाथ की सफाई ही करिश्में थे।

डॉ. मिश्र ने कहा कि भूत-प्रेत जैसी मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं है। भूत-प्रेत बाधा और भुतहा घटनाओं के रूप में प्रचारित घटनाओं का परीक्षण करने में उनमें मानसिक विकारों, अंधविश्वास तथा कहीं-कहीं पर शरारती तत्वों का हाथ पाया गया। आज टेलीविजन के सभी चैनलों पर भूत-प्रेत और अंधविश्वास बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित हो रहे हैं। ऐसे धारावाहिकों का न केवल जनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि छोटे बच्चों और विद्यार्थियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इस संबंध में हमने राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वेक्षण कराया है जिसमें लोगों ने ऐसे सीरियल्स को बंद करने की मांग की है। ऐसे सीरियल्स को बंद कर वैज्ञानिक विकास और वैज्ञानिक दृष्टिकोण बढ़ाने व विज्ञान सम्मत अभिरूचि बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित होना चाहिए।

भारत सरकार के दवा एवं चमत्कारिक उपचार अधिनियम 1954 के अंतर्गत झाड़-फूँक, तिलस्म, चमत्कारिक उपचार का दावा करने वालों पर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है। इस अधिनियम में पोलियो, लकवा, अंधत्व, कुष्ठरोग, मधुमेह, रक्तचाप, सर्पदंश, पीलिया सहित 54 बीमारियाँ शामिल हैं। लोगों को बीमार पड़ने पर झाड़-फूँक, तंत्र-मंत्र, जादुई उपचार, ताबीज से ठीक होने की आशा के बजाय चिकित्सकों से संपर्क करना चाहिए क्योंकि बीमारी बढ़ जाने पर उसका उपचार खर्चीला और जटिल हो जाता है।

डॉ. मिश्र ने कहा कि अंधविश्वास, पाखंड एवं सामाजिक कुरीतियों का निर्मूलन एक श्रेष्ठ सामाजिक कार्य है जिसमें हाथ बंटाने के लिए हर नागरिक को आगे आना चाहिए। कार्यक्रम में डॉ. सीमा शुक्ला, डॉ. शकुंतला डहारे, डॉ. कादम्बिनी शर्मा सहित प्राध्यापक एवं छात्र उपस्थित रहे। अंधविश्वास एवं टोनही प्रताड़ना के खिलाफ अभियान के अंतर्गत पंपलेट और किताबें प्रदान की गईं।