जयपुर. खेती का तरीका अब पूरी तरह से बदल चुका है. उपकरण और अन्य तकनीकों के साथ ही अब खुले की बजाय प्लास्टिक शेड के अंदर खेती की जाती है. इसे पॉलीहाउस कहते हैं. पंरपरागत तरीके से खेती के साथ किसान आधुनिक खेती भी करने लगे हैं, पॉली हाउस में खेती मुनाफे की खेती बन रही है. आधुनिक खेती के माध्यम से किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा लगातार नए-नए प्रयोग किए जा रहे है. इसमें बाहर के प्रतिकूल मौसम का असर नहीं होता. अंदर का तापमान आप अपने हिसाब से मेंटेन कर सकते हैं. यहां आप किसी भी मौसम में कोई भी फसल उगा सकते हैं. जयपुर ज़िले के बसेड़ी गांव के किसान भेरु राम ने भी इस तकनीक को अपनाया और उन्हें 10 गुना मुनाफ़ा हुआ.
कम पानी में हो जाती है खेती
बसेड़ी गांव में पानी की कमी के कारण किसानों ने पहले सिंचाई के लिए ड्रिप और फव्वारा पद्धित अपनाई. इसके बाद पॉलीहाउस खेती को अपनाया, क्योंकि इसमें पानी कम लगता है और मुनाफ़ा भी अधिक होता है. खुले में खेती करने पर एक एकड़ में मुश्किल से एक लाख रुपये का फ़ायदा होता था, जबकि पॉलीहाउस में एक एकड़ में 10 लाख रुपये का मुनाफ़ा होता है. इसके अलावा, साल में दो फ़सल ले सकते हैं. वह बताते हैं कि इस गाँव के किसान बहुत प्रगतिशील हैं. कोई भी नई तकनीक आने पर उसे तुरंत अपना लेते हैं. यहां सोलर प्लांट भी लगवाया हुआ है और फ़ार्म पॉन्ड भी बनवाया गया है, जिसमें बारिश का पानी इकट्ठा होता है.
पॉलीहाउस से सबको फ़ायदा
खुले में खेती की तुलना में इसमें 10 गुना अधिकमुनाफ़ा मिल रहा है. ऐसे में यदि हर कोई पॉलीहाउस खेती करने लगे तो बढ़ती जनसंख्या की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकेगा. पॉलीहाउस ने उनकी तकदीर बदल दी, क्योंकि ओपन खेती में इतना फ़ायदा होना नामुमकिन था. वो आगे कहते हैं कि पॉलीहाउस लगाकर वो बहुत संतुष्ट और खुश हैं. खुले में खेती करने पर एक एकड़ में 20 हज़ार मिलता है, जबकि पॉलीहाउस में 2.5 लाख रुपए मिलते हैं और इसमें पानी भी बहुत कम लगता है. इसलिए भेरु राम का मानना है कि पॉलीहाउस में खेती ही बेहतरीन तरीका है. भेरु राम अन्य किसानों को सलाह देते हैं कि पहले वह ड्रिप सिंचाई लगाएं और फिर मुनाफ़ा कमाकर ग्रीन हाउस/पॉलीहाउस लगाएं. उनका मानना है कि इससे किसानों का जीवन बदल जाएगा.
राज्य में इस तकनीक को अपना रहे किसान
पॉली हाउस तकनीक का उपयोग संरक्षित खेती के तहत किया जा रहा है. इस तकनीक से जलवायु को नियंत्रित कर दूसरे मौसम में भी खेती की जा सकती है. ड्रिप पद्धति से सिंचाई कर तापमान व आद्र्रता को नियंत्रित किया जाता है. इससे कृत्रिम खेती की जा सकती है, इस तरह जब चाहें तब मनपसंद फसल पैदा कर सकते हैं. पॉलीहाउस में खेती को आम भाषा में ग्रीनहाउस में खेती के नाम से भी जानते हैं. यह एक प्रकार की ढंकी हुई संरचना हैं, जिसमें सब्जियों से लेकर फूलों तक का उत्पादन प्लास्टिक की छत के नीचे किया जा सकता है. पॉलीहाउस की संरचना स्टील से बनाई जाती है जिसे प्लास्टिक की शीट या हरी नेट से कवर किया जाता है. एक बार बनाई गई पॉलीहाउस की संरचना को 10 सालों तक आपकी फसल को कीट-रोगों से तो दूर रहेगी ही, इसके साथ-साथ मौसम की मार से भी बचायेगी. इस शानदार तकनीक को अब भारतीय किसान बिना किसी शर्त के और बहुत ही कम खर्चे में अपना बना सकते हैं, जिसमें सरकार आर्थिक अनुदान भी देती है.