पुरुषोत्तम पात्र, गरियाबंद। जिला मुख्यालय में ट्रायसायकल से अपने दो मासूम बच्चों के साथ घूम-घूमकर भीख मांगती महिला की तस्वीर कई सवाल खड़े कर रही है. 32 वर्षीय यह महिला विशिष्ट पिछड़ी जनजाति कमार प्रजाति की है. गरियाबंद-कोकड़ी मार्ग पर महिला पॉलीथिन और फटे हुए कपड़ों से बनी झोपड़ी में रह रही है. महिला के साथ भीख मांगने उसकी 8 साल की बेटी प्रतिभा और 6 साल का बेटा प्रदीप भी जाता है. झोपड़ी में 3 साल का बेटा संदीप और उसका पति देवलाल कमार रहता है.

पूछने पर पीड़िता ने बताया कि वह गोडलबाय निवासी है. 6 माह पहले तक मजदूरी करती थी, लेकिन एक हादसे में उसके दोनों पैरों की हड्डी टूट गई जो अब तक नहीं जुड़ी हैं. एक कलाई भी टूटी हुई है. पति कोई काम नहीं करता. पहले वह जमीन पर घिसटकर चलती थी. प्रशासन ने तरस खाकर उसे एक ट्रायसायकल दिया है. मजदूरी नहीं कर सकती, इसलिए उसी ट्रायसायकल में घूम-घूमकर भीख मांग कर गुजारा करती है. दोनों बच्चे ट्रायसायकल को धक्का मारते रहते हैं.

पीड़िता ने बताया कि उसका राशन कार्ड है, इसलिए आमदी के राशन दुकान से राशन मिल जाता है. रोजाना भीख से 300 से 400 रुपये तक मिल जाते हैं, जिससे वह बाकी खर्चे कर बच्चों का लालन-पालन करती है. देखने वाले तरस खाकर उसे भीख दे देते हैं, लेकिन स्थायी समाधान कैसे होगा, इस पर कोई विचार नहीं हुआ.

पीड़िता ने बताया कि उसे जन-मन योजना के तहत गांव में एक आवास मिला था, जिसके निर्माण के लिए उसने 40 हजार रुपये रूपये आहरित कर निर्माण सामग्री मंगवाई थी. 6 माह पहले जब वह अस्पताल में सप्ताह भर इलाज के बाद लौटी तो निर्माण सामग्री गायब मिली. पूछने पर उसके रिश्तेदार और ग्रामीणों ने पति और उसे गाली-गलौच किया और गांव से भगा दिया गया. पीड़िता के मुताबिक, गांव में दबंगों के भय से वह गांव छोड़कर आ गई. आने के बाद से वह कई बार कलेक्टोरेट पहुंचकर लिखित ज्ञापन देकर आर्थिक सहयोग और आवास की मांग कर चुकी है. पीड़िता के बच्चे पढ़ाई नहीं करते.

प्रशासन ने की हर संभव मदद

मामले में आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त नवीन भगत ने बताया कि घायल महिला का उपचार कराया गया. ट्रायसायकल और नगद व्यक्तिगत सहायता भी की गई है. गांव में तीन बार ले जाकर छोड़ा गया, लेकिन वह बार-बार वापस लौट आती है. अब यह देखा जाएगा कि आखिर समस्या क्या आ रही है. जांच कर यथोचित मदद की जाएगी.