सत्यपाल सिंह राजपूत, रायपुर। महिला एवं बाल विकास के पर्यवेक्षक बीते 30 वर्षो से समयमान वेतनमान से वंचित हैं. विभाग में मात्र 6% महिलाओं को पदोन्नति दी जाती है. जिला कार्यक्रम अधिकारियों की मनमानी पर्यवेक्षक भुगत रहे हैं.

पर्यवेक्षक संघ के अध्यक्ष ऋतु परिहार कहती हैं कि बच्चों और महिलाओं के लिए सुदृढ़ विकास, शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य के लिए सतत प्रयासरत महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारी विभाग में कार्यरत महिला पर्यवेक्षकों के प्रति उदासीन रवैया अपनाए हुए हैं. जिला कार्यक्रम अधिकारियों की मनमानी के कारण 10, 20 और 30 वर्ष पूर्ण होने के बाद भी पर्यवेक्षक पहले, दूसरे और तीसरे समयमान वेतनमान से वंचित हैं.

उन्होंने कहा कि कार्य दायित्व में लापरवाही पर नोटिस देने वाले, सस्पेंड करने वाले अधिकारी जब अपने कर्मचारियों के हित में लापरवाही करते हैं, तो इन पर आज तक कोई कार्रवाई शासन द्वारा क्यों नहीं की गई? सभी जिलों में पर्यवेक्षकों के समयमान वेतनमान को लेकर यही स्थिति है.

ऋतु परिहार कहती हैं कि तृतीय श्रेणी कार्यपालिक पद पर कार्यरत पर्यवेक्षक वैसे ही राज्य में सबसे कम वेतनमान 2400 ग्रेड पे पर कार्यरत हैं, उस पर समय पर समयमान वेतनमान ना मिलना, 30 सालों तक पदोन्नति से वंचित रखना, महिलाओं के प्रति अन्याय को प्रदर्शित करता है. उन्होंने कहा कि संचालक दिव्या उमेश मिश्रा द्वारा पहल करते हुए सभी जिलों को जून में पत्र भी लिखा था, इसके बाद भी अधिकारियों की मंशा को समझ पाना टेढ़ी खीर है.

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