अभिषेक मिश्रा, धमतरी. कोमल है कमजोर नहीं तू, शक्ति का नाम ही नारी है, जग को जीवन देने वाली मौत भी तुझसे हारी है… यह गाना शायद धमतरी की महिला पहलवान के लिए बनी है, जो आज अपने जीवन को संघर्ष में रहते हुए भी खेल के लिए समर्पित कर रही है. 11 बार कीमोथेरेपी, कैंसर का चौथा स्टेज, लेकिन इस महिला पहलवान का जज्बा इतनी है कि कैंसर के बाद भी खेल को छोड़ना नहीं चाहती.
छत्तीसगढ़ के धमतरी में एक महिला वेटलिफ्टर कैंसर जैसे बीमारी को परास्त करने की प्रतिज्ञा ले चुकी है. वेट लिफ्टर और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हसमीत कौर को शादी के एक साल बाद ही पति ने छोड़ दिया. एक बेटे के साथ हसमीत जीवन की चुनौतियो के साथ चौथे स्टेज के कैंसर से भी लड़ रही है. 8 नेशलन चैंपियनशिप में 5 गोल्ड जीत चुकी हसमीत दुनियाभर के कैंसर रोगियों के लिए संघर्ष का मिसाल बन सकती है.
अब तक हो चुकी है 11 कीमोथैरेपी
किसी का कैंसर रोग चौथे स्टेज तक चला जाए तो वो शख्स शायद मन से हार ही जाएगा और अगर उस शख्स की 11 कीमोथेरेपी हो चुकी हो तो वो शख्स तन से भी हार जाएगा, लेकिन धमतरी की हशमीत कौर इन दोनों मान्यताओं को अकेले ध्वस्त कर चुकी हैं. जी हां 40 साल की हसमीत कौर को ब्रेस्ट और स्पाईनलकाड का कैंसर है. वो भी चौथे स्टेज का. उनकी 11 कीमो थैरेपी हो चुकी है, लेकिन हशमीत न मन से हारी है न तन से. बल्कि उनका अपना संकल्प है कि वो एक दिन कैंसर को हरा देंगी.
नेशनल चैंपियनशिप में जीत चुकी है 5 गोल्ड मेडल
हसमीत असाधारण हिम्मत और आत्मविश्वास वाली महिला है. धमतरी के अधारी नवागांव में अपने बेटे के साथ रहने वाली 40 साल की हशमीत को बचपन से ही खेलो से लगाव रहा है. खास तौर पर वेट लिफ्टिंग और पावर लिफ्टिंग को वो ज्यादा समय देती रही है. 2005 में उनकी शादी हुई और सालभर के बाद ही पति ने साथ छोड़ दिया. अब गोद में एक बेटे के साथ वो बेसहारा और अकेली रह गई. इसके बाद हशमीत ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बनकर जीवन का संघर्ष अकेले शुरू किया. आंगनबाड़ी के साथ-साथ वह अपने खेल प्रेम से भी जुड़ी रही. दूसरे टीन एज लड़कियों को ट्रेनिंग कोचिंग देती रही. 2017 से हशमीत ने वेट लिफ्टिंग प्रतियोगिताओ में खुद हिस्सा लेना शुरू किया. इतने समय में ही उन्होंने 8 नेशनल चैंपियनशिप खेले. इनमें से 5 बार गोल्ड मेडल 2 बार सिल्वर मेडल और 1 बार ब्रांज मेडल जीता. ये एक असाधारण प्रदर्शन है.
हसमीत ने कहा – एक दिन कैंसर को भी हरा दूंगी
खेल और नौकरी का सिलसिला चलता रहा. इस बीच हसमीत की तबियत बार-बार खराब होने लगी. तमाम जांच के बाद मई 2023 में पता चला कि उन्हे ब्रेस्ट और स्पाईनलकाड में कैंसर है और वो भी सेकंड स्टेज में जा चुका है. इस खबर से कोई भी इंसान आत्मबल खो सकता था. जीवन में निराशा से घिर सकता था, लेकिन हशमीत जैसे अकेली महिला का मनोबल टस से मस नहीं हुआ. आज करीब एक साल में उनकी 11 कीमोथैरेपी हो चुकी है और हशमीत हंसते हुए कहती है कि जीवन की हर चुनौती को हराती आई हूं. एक दिन कैंसर को भी हरा दूंगी.
सरकार से मदद की आस
कैंसर से शायद हसमीत जीत भी जाए, लेकिन आर्थिक संकट अब उनके सामने नई चुनौती बनकर खड़ा हो गया है. अभी तक की कीमोथैरेपी आयुष्मान कार्ड से हुई, लेकिन आयुष्मान कार्ड में भी सिर्फ 8 कीमोथेरेपी की लिमिट है. अब हशमीत को सरकारी आर्थिक मदद की आस है. वो केंद्र सरकार से अपील कर रही है कि खिलाड़ियों को सरकार हर क्षेत्र में आर्थिक राहत दे, ताकि उनके जैसे लोग कम से कम पैसे की कमी के कारण जीवन में या जीवन से न हार जाएं.
संघर्ष की कहानी सुनकर डॉक्टर भी हैरान
हशमीत को जानने वाले उनके जज्बे से आत्मबल से और हिमालय जैसे हिम्मत की तारीफ करते नहीं थकते. हसमीत कौर की बीमारी और संघर्ष की कहानी सुनकर डाक्टर तक हैरान हैं. वाकई में हसमीत की सच्ची कहानी बताती है कि कैंसर जैसे रोग में भी कैसे हिम्मत बांध ली जाए तो कुछ भी असंभव नहीं है. हमारी भी दुआ है कि इस संघर्ष में हसमीत के हिम्मत की ही जीत हो.
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