ग्वालियर. मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक लैंडमार्क डिसीजन में अब दलित शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. गौरतलब है कि दलित संगठनों की आपत्ति के बाद हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर रोक थी. अब उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद दलित शब्द का इस्तेमाल भी प्रतिबंधित शब्दों की श्रेणी में आएगा.

गौरतलब है कि राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग कई बार दलित शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति जता चुका है. आयोग ने कई बार ये कहा है कि संविधान में अनुसूचित जाति का प्रयोग ही उचित व संवैधानिक है. इस शब्द के इस्तेमाल को लेकर लंबे अरसे से बहस चल रही थी. 2008 में बकायदा राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग ने छत्तीसगढ़ राज्य सरकार को पत्र लिखकर कहा था कि आधिकारिक पत्र व्यवहार व बोलचाल में दलित शब्द का इस्तेमाल न किया जाए. क्योंकि दलित शब्द का इस्तेमाल असंवैधानिक होने के साथ-साथ संविधान की मूल भावना के खिलाफ है. इस पर अमल करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने सभी कलेक्टरों व विभागों को आदेश दिया था कि वे सरकारी पत्र-व्यवहार व बोलचाल में दलित शब्द का इस्तेमाल न करें. कई राज्य सरकारों ने दलित शब्द के प्रयोग पर पाबंदी लगा रखी है.

इसी कड़ी में सामाजिक कार्यकर्ता डा. मोहनलाल माहौर ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में दलित शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की थी. जिसपर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने ये आदेश दिया है कि दलित शब्द का इस्तेमाल अब प्रतिबंधित शब्दों की श्रेणी में आएगा. हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा है कि संविधान में अनुसूचित जाति और जनजाति का प्रयोग किया गया है. वही पर्याप्त है. दलित शब्द न तो संवैधानिक है और न ही यह संविधान की भावना के अनुरुप है. अत: इस शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने का फैसला हाईकोर्ट ने अपने आदेश में दिया है. खास बात ये है कि अभी तक हरिजन शब्द प्रतिबंधित शब्दों की श्रेणी में था अब हाईकोर्ट के ताजा आदेश के बाद दलित शब्द भी प्रतिबंधित शब्दों की श्रेणी में आ जाएगा.