नई दिल्ली. 12 वर्ष की एक लड़की को घरेलू सहायिका के तौर पर काम पर लगाने के आरोप में अदालत ने एक दपंति को समन जारी करने के निर्देश दिए हैं. अदालत ने इस दंपति को दस जुलाई को संबंधित मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने को कहा है. यह मामला एक दशक पुराना है.

साकेत स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुनील गुप्ता की अदालत ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के उस आदेश को बेबुनियाद बताया कि जिसमें मजिस्ट्रेट ने इस दंपति को आरोपमुक्त करते हुए कहा था कि घरेलू सहायिका के तौर पर काम करना खतरनाक कार्य की श्रेणी में नहीं आता. सत्र अदालत ने कहा कि 12 साल की एक बच्ची को घरेलू सहायिका बनाकर उससे जबरन काम कराना अपराध है. इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता. बच्ची ने खुद अपने बयानों में कहा कि उसे बहला-फुसलाकर इलाज के बहाने दिल्ली लाया गया, यहां उसे एक घर में काम पर लगा दिया गया. सारा दिन काम करने के बावजूद उसे कोई नगद राशि नहीं दी जाती थी. अदालत ने कहा कि बालश्रम कानून के तहत नाबालिग का यह बयान ही मालिक दंपति के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए काफी था.

अदालत से इस मामले में मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा दंपति को आरोपमुक्त करने के फैसले पर टिप्पणी करते हुए सत्र अदालत ने कहा कि कानून की दृष्टि से बेहद खराब निर्णय लिया गया. सत्र अदालत ने कहा कि नाबालिग के कार्य करने को ही बालश्रम अपराध के तहत माना जाता है. निचली अदालत का यह कहना कि घरेलू सहायिका के तौर पर कार्य करना खतरनाक काम की श्रेणी में नहीं आता, अपने आप में कानून की गलत व्याख्या के तहत आता है.

दक्षिणी दिल्ली से छुड़ाई गई थी नाबालिग

एक गैर सरकारी संगठन ने 23 नवंबर 2013 को मालवीय नगर इलाके के एक घर से 12 साल की बच्ची को छुड़ाया था. बच्ची ने अदालत के समक्ष सीआरपीसी की धारा 164 और व एसडीएम को दिए बयान में कहा था कि उसे कान का इलाज कराने के नाम पर बिहार से दिल्ली लाया गया, यहां उसका इलाज शुरु हुआ, लेकिन फिर उसे एक घर में घरेलू सहायिका के तौर पर जबरन काम पर लगा दिया गया. घर के सारे काम उससे कराए जा रहे थे, लेकिन इसके एवज में उसे कोई पैसा नहीं दिया जा रहा था. बच्ची को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया गया.