रायपुर । नए रचनाकारों की अपनी भाषा सहज और सरल रखनी चाहिए. नवोदित लेखकों के लिए जरूरी है कि वे अधिक से अधिक स्थानीय भाषा में लेखन-कार्य करें. इससे अधिक से अधिक पाठकों तक वे पहुँच पाएंगे. ये बातें नेशनल बुक ट्रस्ट के संपादक और चर्चित लेखक डॉ. लालित्य ललित ने नवोदित रचनाकारों के लिए आयोजित कार्यशाला में कही.  आचार्य सरयू कांत झा स्मृति संस्थान विश्व सरयू अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच तथा साधना फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में इस कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में दो दिनों तक देश और प्रदेश के वरिष्ठ लेखक, भाषाविद् नए रचनाकारों को प्रशिक्षण देंगे.

डॉ. लालित्य ने कार्यशाला की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह नए लेखकों के लिए सराहनीय प्रयास है. इससे नवोदित रचनाकारों लेखन के लिहाज से बहुत कुछ सीखने और समझने को मिलेगा. इस मौके पर  प्रसिद्ध कवि दिविक रमेश ने अनिता झा द्वारा लिखित ‘चुलबुली नानी की रंगीन फुलझड़ियों’ का उदाहरण देते हुए कहा कि नानी और नाती-नातिननों में मित्रता के भाव को सहेजकर रखना व उन्हें संप्रेषित करना जरूरी है. उन्होंने तुलसीदास द्वारा रामचरित मानस में लिखित चौपाइयों का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें परम्परा से जुड़कर लिखना जरूरी है, परम्परा को तोड़कर रचना ना लिखें.

प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक डॉ देवेंद्र मेवाड़ी ने आव्हान किया कि विज्ञान विधि से लेखन करते हुए कहा कि भाषा को क्लिष्ट ना बनाएं उसे साधारण शब्दों में अभिव्यक्त करें. साहित्य और विज्ञान के बीच बनी खाई को पाटने का अनुरोध करते हुए कहा कि रचना कर्म समग्रता में घटना को देखते हुए करें क्योंकि प्रकृति में विज्ञान, गणित, भूगोल, साहित्य सभी कुछ समाया हुआ है.

मुम्बई से पधारे पवन तिवारी ने कहा कि लेखक को सुनना जरूरी है, नियमित रूप से डायरी लिखें.  उन्होंने आव्हान किया कि लेखन मौलिकता बनाये रखते हुए पाठक को प्रभावित नहीं, प्रेरित करें.  इस अवसर पर अनीता झा के बच्चों के लिये लिखी लघु कथा संग्रह “चुलबुली नानी की रंगीन फुलझड़ियां” का विमोचन किया गया।

भाषाविद चितरंजन कर ने कहा कि भाषा संस्कृति है साहित्य संस्कार है, साहित्य ना होता तो हम मनुष्य ना होते. शब्द स्वयं कवि को चुनता है. साहित्य अभाव का भाव में रूपांतरण है. जीवन की अपूर्णता को पूर्णता प्रदान करने के लिए अनुष्ठान है साहित्य.

नवोदित रचनाकारों को 3 सत्रों में प्रशिक्षण दिया गया. व्यंग्य लेखन पर प्रसिद्ध व्यंग्यकार रामेश्वर वैष्णव ने लेखकों को टिप्स देते हुए कहा कि हादसे कोमल भाव है, जबकि व्यंग टेढ़ी दृष्टि का उपक्रम है. स्नेहलता पाठक ने व्यंग्य विधा में स्त्रियों के योगदान को विस्तार से स्पष्ट किया.  काव्य रचना सृजन पर संजीव ठाकुर व , डॉ महेंद्र कुमार ठाकुर सहित अनेक रचनाकारों ने प्रशिक्षण दिया.  आचार्य सरयू कांत झा स्मृति संस्थान के शारदेन्दु झा ने स्वागत भाषण देते हुए प्रशिक्षण की आवश्यकता पर अपने विचार रखें. आज दिनभर चली इस कार्यशाला का संचालन साधना फॉउंडेशन की सचिव शुभ्रा ठाकुर ने किया. कल 22 फरवरी को कार्यशाला सुबह 10 बजे से प्रारम्भ होगी, जिसका समापन वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैय्यर की अध्यक्षता में शाम 5 बजे सम्पन्न होगा.