बिलासपुर। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के हिंदी विभाग द्वारा आयोजित कार्यशाला ‘गीत की रचना प्रक्रिया’ में गीतकार डॉ. अजय पाठक ने दो दिनों के सत्र में विभिन्न विभागों के विद्यार्थियों को सम्बोधित किया. कार्यशाला के समापन मौके पर व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि कविता को अंतिम रूप से परिभाषित किया जाना असंभव है. हर व्यक्ति का दृष्टिकोण अलग-अलग होता है. गीत भी कविता है, नवगीत क्या है इसे भी परिभाषित करना कठिन है. रचना तभी प्रभावशाली होती है जब वह छंदबद्ध अर्थात गेय हो. शब्दों का अनुशासन ही छंद है. डॉ.पाठक ने बताया कि छंद, लय, ताल, गति, यति गीत के अनिवार्य तत्व हैं. शब्दों को ऐसे बोध बांधा जाए, जिसे गाया जा सके. शब्द सरस, माधुर्यपूर्ण लालित्य और अलंकार से भरे होने चाहिए.

डॉ. पाठक ने कहा कि जिसकी अवस्था एक बुजुर्ग की तरह है, वह गीत है,  जबकि नौजवान युवक की तरह नवगीत हैं. उन्होंने गीत परंपरा को गेय और छंद की परंपरा बताया. इसे ही मानसिक एवं वैश्विक शांतिसिद्धांत का निर्माणक भी घोषित किया.  उन्होंने कहा कि एक कलाकार समाज का निर्माता होता है, जिस प्रकार पत्रकार समाज का अगुआ होता है. वैसे ही कलाकार समाज को सकारात्मक दिशा में प्रवाहित करने के लिए कार्य करता है. इसके पश्चात विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. अजय पाठक ने कार्यशाला में भाग लेने वाले विद्यार्थियों को प्रणाम पत्र वितरित किया.