बिलासपुर. विकासशील फाउंडेशन बिलासपुर द्वारा कीस्टोन फाउंडेशन तमिलनाडु व प्रेरक समिति राजिम के सहयोग से अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय के सभागार में एक दिवसीय संभाग स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यशाला में मुख्य रूप से भारतीय वन कानून 1927 में प्रस्तावित संशोधन बिल-2019 के संबंध में और समुदाय में इसका अनुमानित प्रभाव के विषय पर चर्चा की गई.

कार्यशाला के मुख्य अतिथि संत कुमार नेताम ने कहा कि वन ग्रामों में रहने वाले आदिवासी ग्रामीणों को वन कानून के बारे में जकड़ी नहीं रहती, जिससे वे अपने वन अधिकार से वंचित रह जाते हैं. उन्होंने 2006 की वन कानून को आदिवासी हितेसी कानून बताते हुए कहा कि इस वन कानून में ग्रामसभा को ही पूर्ण अधिकार दिया गया था .लेकिन 1927 प्रस्तावित कानून वन रहने वाले आदिवासियों को आतंकित करने वाला कानून है, इसलिए आदिवासी समाज से अपील करते हुए कहा कि 2019 के वन कानून पर असहमति जताए.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वीरेन्द्र गहवई ने कहा कि संशोधित वन कानून को लागू करके सरकार हमारे वन अधिकारों से पृथक करने की साजिश कर रहा है. उन्होंने कहा कि वन ड्राप्ट बनाने में जंगलों में रहने वाले आदिवासी महिलाओं व आदिवासी समाज की भूमिका सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

विशिष्ट अतिथि रामगुलाम सिन्हा ने कहा कि प्रत्येक मनुष्य का संबंध लकड़ी से है. सारे समस्याएं जलवायु परिवर्तन या पर्यावरण प्रदूषण सभी का मूल जड़ जंगल है, इसलिए हमें अपने जल, जंगल, जमीन को सुरक्षित ढंग से बनाये रखना चाहिए.1927 प्रस्तावित संशोधित वन कानून को पूर्णतः वन ग्रामों में रहने वाले आदिवासियों के हितों के लिए घातक बताते हुए इस कानून को पॉवर पॉइंट प्रजेंटेशन के माध्यम से विस्तार पूर्वक समझाया गया.

विशिष्ट अतिथि अभ्युदय सिंह ने बताया कि छत्तीसगढ़ में प्रचुर मात्रा में खनिज एव वन सम्पदायें पाए जाते हैं, जिसमें वन भूमि 40 प्रतिशत, कोयला 24 प्रतिशत, लोहा 16 प्रतिशत. आदिवासियों का जितने भी संस्कृति व प्रथाएं है जंगल से जुड़ा हुआ है. अतः आदिवासियों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए.

विशिष्ट अतिथि डॉ राजीव अवस्थी ने आदिवासियो की आजीविका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जंगल का संरक्षण व संवर्धन करने का काम केवल वनवासी ही कर सकते हैं, इसलिए उनके जीविका पर ध्यान रखते हुए उनके हितों की रक्षा होनी चाहिए.

नितेश साहू व अजय सिंह ठाकुर ने कहा कि संशोधित वन कानून वन में रहने वाले आदिवसीयों के हितों को अनदेखा करने वाला कानून प्रस्तावित किया जा रहा है.सभी वन में रहने वाले व आदिवासी समाज को अपनी सहमति असहमति प्रकट करना चाहिए.

इस कार्यशाला में विषय विशेषज्ञ सामाजिक कार्यकर्ता व समुदायिक, मुखिया, वन अधिकार समितिओं के अध्यक्ष, सचिवों और स्वयंसेवी संस्था कोरबा जिला, जांजगीर चाम्पा, रायगढ़, मुंगेली व बिलासपुर जिले के स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल रहे.