सत्या राजपूत रायपुर। छत्तीसगढ़ में सिकलसेल के मरीजों की संख्या अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक है. आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश की 10 फीसदी आबादी इसकी गिरफ्त में आ चुकी है. और यह आंकड़ा तेजी से बढ़ता जा रहा है.

विश्व सिकलसेल दिवस पर लल्लूराम डॉट कॉम की टीम ने सिकलसेल संस्थान के महानिदेशक डॉ. अरविंद नेरल से बीमारी के तमाम पहलुओं को लेकर खास बातचीत की. उन्होंने इस बीमारी की जानकारी देने के साथ ही इसको लेकर महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए.
डॉ. नेरल ने बताया कि सिकलसेल मरीज के लिए ब्लड ट्रांसफ्यूशन एक अस्थायी व्यवस्था है. इस बीमारी का जड़ से इलाज बोन मेरो ट्रांसप्लांट ही है, लेकिन जागरूकता से लोगों को बचाया जा सकता है. शादी के पहले लड़का-लड़की सिकलसेल की जांच करवाएं. अगर सिकलसेल की पुष्टि होती है तो डॉक्टर की सलाह लें. अगर लड़का या लड़की दोनों में से किसी एक को सिकलसेल है तो शादी में दिक्कत नहीं है, उनकी संतान स्वस्थ होगी. लेकिन दोनों को सिकलसेल है तो शादी नहीं होनी चाहिए.

एचआईवी की तरह सिकलसेल की जांच हो तो बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है, इसलिए शादी के पहले जैसे 36 गुण मिलाने के कुंडली मिलाते है, ठीक वैसे ही सिकल कुंडली मिलान ही इस रोग को फैलने से रोग आगे पीड़ी में जाने से रोक सकता है, क्योंकी अभी तक कोई ऐसा इलाज नहीं सामने आया है, जो इसे जड़ से खत्म कर सकें. ऐसे में सावधानी ही जीवन रूपी गाड़ी को चला सकता है.

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