रायपुर. आजकल की बदलती लाइफ स्टाइल और स्ट्रेस की वजह से 30 से 50 साल की उम्र के लोग भी स्ट्रोक की चपेट में आ रहे हैं. स्ट्रोक या पक्षाघात वैश्विक स्तर पर मौत या विकलांगता का बड़ा कारण बनता जा रहा है. एक वैश्विक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि कई लोगों को स्ट्रोक या पक्षाघात से करीब घंटेभर पहले काफी क्रोध आ रहा था या वे अवसाद में चले गए थे. बोलचाल की भाषा में इसे लकवा, फालिस, हवा लगना, पक्षाघात और पैरालिसिस होना कहते हैं.

स्ट्रोक के अहम कारण
कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. राकेश चतुर्वेदी के मुताबिक, अगर किसी को अनियंत्रित रक्तचाप, मधुमेह (डायबिटीज/ शुगर) या मोटापे की बीमारी हो या व्यक्ति ज्यादा धूम्रपान करता हो तो नसें और ज्यादा कमजोर हो जाती हैं. नतीजन स्ट्रोक की संभावना कई गुणा बढ़ जाती है. भारत जैसे विकासशील देशों में हमारे जिक स्ट्रोक का प्रतिशत करीब 40 है. शोधकर्ताओं ने पाया भावनात्मक परेशानी के कारण स्ट्रोक का खतरा 30 प्रतिशत बढ़ जाता है. यह भी पाया गया कि कठिन शारीरिक श्रम करने वालों में स्ट्रोक का खतरा 60 फीसदी अधिक होता है.

कैसे पहचाने बीमारी
स्ट्रोक के लक्षणों को समझकर तुरंत सही इलाज किया जाना जिंदगी को बचा सकता है. आमतौर पर आपका बीपी 130/80 से ज्यादा रहता है तो आपको डॉक्टर से परामर्श लेने की जरूरत है. हालाँकि स्ट्रोक किसी भी उम्र में हो सकता है मगर उम्र की ढलान पर इसकी संभावना बढ़ जाती है. जब दिमाग की नसें कमजोर होने लगती है. ह्दय रोग से ग्रसित मरीजों में खून के थक्के ज्यादा बनते हैं, इनमें भी स्ट्रोक के रिस्क अधिक होते हैं.

क्या स्ट्रोक का उपचार संभव है
डॉक्टरों के अनुसार अगर मरीज बीमारी शुरू होने के साढ़े चार घंटे के अन्दर अस्पताल पहुंच जाये तो उसे खून का थक्के गलने वाली दवाई दी जाती है, जिससे लगभग 80 फीसदी स्ट्रोक के लक्षण ठीक हो जाते हैं, इस उपचार को स्ट्रोक थ्रोम्बोलिसिस कहते हैं.