हिंदू धर्म में किसी भी कांटेदार वृक्ष, पौधे की पूजा नहीं की जाती है लेकिन एक ऐसा वृक्ष है जिसे सभी पूजते हैं. भगवान शिव को इस वृक्ष और उसकी पत्ती प्रिय है. जिस वृक्ष और उसकी पत्ती की हम बात कर रहे हैं वो बेलपत्र की है. क्या आपको पता है भगवान शिव को किस तरह और कैसे चढ़ाई बेलपत्र जाती है.
सावन का महीना आते ही श्रद्धालु महादेव शंकर को प्रसन्न करने की कोशिश में जुट जाते हैं. शिवलिंग पर गंगाजल के साथ-साथ बेलपत्र भी चढ़ाने का विधान है. शिव को बेलपत्र अर्पित करते वक्त और इसे तोड़ते समय कुछ खास नियमों का पालन करना जरूरी होता है. मान्यता है कि बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है. पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं.
बेलपत्र तोड़ने के नियम
- चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथियों को, संक्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र न तोड़ें.
- बेलपत्र भगवान शंकर को बहुत प्रिय है, इसलिए इन तिथियों या वार से पहले तोड़ा गया पत्र चढ़ाना चाहिए.
- शास्त्रों में कहा गया है कि अगर नया बेलपत्र न मिल सके, तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बेलपत्र को भी धोकर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है.
- टहनी से चुन-चुनकर सिर्फ बेलपत्र ही तोड़ना चाहिए, कभी भी पूरी टहनी नहीं तोड़ना चाहिए. पत्र इतनी सावधानी से तोड़ना चाहिए कि वृक्ष को कोई नुकसान न पहुंचे.
- बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में वृक्ष को मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए.
शिवलिंग पर कैसे चढ़ाएं बेलपत्र
- महादेव को बेलपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए, यानी पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए.
- बेलपत्र में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए.
- बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं. ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं.
- अगर बेलपत्र उपलब्ध न हो, तो बेल के वृक्ष के दर्शन ही कर लेना चाहिए. उससे भी पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं.
- शिवलिंग पर दूसरे के चढ़ाए बेलपत्र की उपेक्षा या अनादर नहीं करना चाहिए.
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