रायपुर. सूर्य का प्रकाश जीवन का सूचक है. सूर्य को लिए पूर्व दिशा का स्वामी माना जाता है. हमारे सभी शुभ कार्यो में पूर्व दिशा का बहुत ही महत्व है. इस दिशा को फूलों और फलों से दर्शाया जाता है. पूर्व दिशा को प्राची दिशा भी कहा जाता है.

पूर्व के स्वामी या देवता स्वयं इंद्र है. इंद्र हर कार्य में दक्ष माने जाते है. वे शत्रुओं का नाश करते है और अपनी मर्जी के अनुरूप आकार बदल सकते है तथा कहीं भी प्रकट हो सकते है. इंद्र मानवीय मस्तिष्क की शक्तियों को दर्शाते है और बुद्धिमत्ता को बढ़ाते है. इंद्र वर्षा के भी देवता है और वर्षा न होने पर लोग इंद्र की ही प्रार्थना करते है. हिंदू परंपराओं के अनुसार पूर्व दिशा को घर के पुरुषों के लिए अति महत्वपूर्ण माना गया है. साथ ही इसको घर के पूर्वजों और परिवार के बड़े-बुजुर्गो के लिए भी आवश्यक माना जाता है, इसी कारण इसको पितृस्थान भी कहते है. ऐसा माना जाता है कि पूर्व दिशा की ओर खुलने वाले दरवाजे वाले कमरों में जन्मे बच्चे निष्ठावान और परिवार को समर्पित रहते है.

इंद्र के साथ सूर्य देव भी पूर्व के संग जुड़े है. सूर्य की उर्जा के सहारे ही मानव का अस्तित्व है. सूर्य अच्छे स्वास्थ्य, उर्जा, स्वयंशक्ति और बहादुरी को बढ़ाते है. सूर्य और इंद्र के अतिरिक्त, अग्नि, जयंत, ईश, भूप, सत्य, आकाश आदि देवताओं का निवास भी इसी दिशा में है. वास्तु के अनुसार घर का पूर्वी भाग अन्य भागों से नीचा होना चाहिए, जिससे कि सूर्य की गर्मी, ऊर्जा और प्रकाश का पूरे घर को लाभ मिल सके. घर के पूर्वी भाग को यथासंभव साफ और खाली रखें. साथ ही पूर्व की बाउंड्री वाल दक्षिण और पश्चिम भाग से नीची होनी चाहिए. यदि घर का पूर्वी भाग ऊंचा हो, तो घर में दरिद्रता आती है तथा संतान अस्वस्थ हो जाती है.

पूर्वी दिशा में खाली स्थल वाला भवन स्वास्थ्य और आर्थिक दृष्टि से प्रगतिकारक होता है. पूर्वी दिशा में बने हुए मुख्य द्वार तथा अन्य द्वार भी सिर्फ पूर्वाभिमुखी हो तो शुभ परिणाम मिलते हैं. पूर्वी दिशा में कुंआ, बोरिंग, सैप्टिक टैंक, अंडर ग्राउंड टैंक, बैसमेंट का निर्माण करवाना चाहिए. वास्तु का अर्थ है वास करने का स्थान. महाराज भोज देव द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी में ‘समरांगण सूत्रधार’ नामक ग्रंथ लिखा गया था जो वस्तु शास्त्र का प्रमाणिक एवं अमूल्य ग्रथं है. जीवनचर्या की तमाम क्रियाएं किस दिशा से संबंधित होकर करनी चाहिए इसी का ज्ञान इस शास्त्र में विशेष रूप से बताया गया है. भूमि, जल प्रकाष, वायु तथा आकांश नामक महापंच भूतों के समन्वय संबंधी नियमों का सूत्रीकरण किया, ऋशि मुनियों ने. जिन भवनों में पूर्व और उत्तर में खाली स्थान छोड़ा जाता है, उनके निवासी समृद्ध और निरोगी रहते हैं. मकान के उत्तर और पूर्व का स्थल दूर से ही उनके निवासियों के जीवन स्तर की गाथा स्वयं स्पष्ट कर देते हैं.

अच्छी ऊर्जाओं के प्रवाह के लिए घर की पूर्व दिशा को स्वच्छ, निर्मल और सामान की भीड़-भाड़ से मुक्त रखें. इस दिशा में खासतौर पर खंबे, पत्थरों के ढेर आदि न रखें. पूर्व दिशा में खुली पार्किग या घर के अन्य भागों से नीचा और खुला पोर्च भी लगाया जा सकता है.

अन्य उपाय जिससे पूर्व दिशा का पूर्ण लाभ लेकर सुख एवं समृद्धि पाई जा सकती है

  • घर की बैठक में जहां घर के सदस्य आमतौर पर एकत्र होते हैं, वहां बांस का पौधा लगाना चाहिए. पौधे को बैठक के पूर्वी कोने में गमले में रखें.
  • परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य के लिए पूरे परिवार का चित्र लकड़ी के एक फ्रेम में जड़वाकर घर में पूर्वी दीवार पर लटकाएं.
  • घर के सदस्यों की दीर्घायु के लिए स्फटिक का बना हुआ एक कछुआ घर में पूर्व दिशा में रखें.
  • घर को नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त रखने के लिए पूर्व दिशा में मिट्टी के एक छोटे से पात्र में नमक भर कर रखें और हर 24 घंटे के बाद नमक बदल दें.
  • अपने ऑफिस में पूर्व दिशा में लकड़ी से बनी कृष्णजी की एक मूर्ति रखें। इससे ऊर्जा एवं उत्साह प्राप्त होंगे.
  • पूर्व दिशा के लिए हरा रंग सर्वोत्तम है. पूर्व दिशा में इन रंगों की उपस्थिति इस दिशा को ऊर्जावान बनाती है.
  • फेंगशुई के अनुसार भवन के पूर्वी भाग में हरे नीले तथा काले रंग के पेंट फर्नीचर पर्दे आदि का प्रयोग करना श्रेयस्कर तथा सफेद एवं सिल्वर रंग की वस्तुओं का प्रयोग करना वर्जित माना गया है.
  • घर का कूड़ा-करकट कभी भी पूर्व दिशा में नहीं फेंकना चाहिए. इससे स्वास्थ्य और धन पर कुप्रभाव पड़ता है.
  • पूर्व दिशा में कोई भी बाधा (खंभा, सीढ़ियां, दीवार आदि) नहीं होनी चाहिए.
  • घर में पूर्व दिशा का शुद्ध होना घर, पारिवारिक तनाव, विवाद निवारण हेतु एवं परिवार व सदस्यों की वृद्धि हेतु बहुत ही अनिवार्य है, यदि यह बाधित हो जाये तो मान सम्मान में कमी, मानसिक तनाव, गंभीर रोग व बच्चो का विकास बाधित होता है.
  • पूर्व दिशा में दो बान्सुरी लगाएं.
  • पूर्व में प्राण प्रतिष्ठित सूर्य यंत्र की स्थापना विधि पूर्वक कराये.
  • सूर्योदय के समय ताम्बे के पात्र से सूर्य देव को सात बार गायत्री मंत्र के साथ जल में लाल चन्दन या रोली व गुड, लाल पुष्प मिलाकर अर्य दें.
  • प्रत्येक कक्ष के पूर्व में प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरणों के प्रवेश हेतु खुला स्थान या खिड़की अवश्य होनी चाहिए. यदि ऐसा संभव नहीं हो, तो उस भाग में सुनहरी या पीली रोशनी वाला बल्ब जलाएं.
  • पूर्व दिशा में दोष होने पर किसी भी व्यक्ति को खास कर यह ध्यान रखना चहिए की वह पिता का किसी भी परिस्थिति में अपमान तथा उनकी बातो की अवहेलना ना करे. वही गृहणीयो को अपने स्वामी की यथा संभव सेवा तथा आज्ञा का पालन करना चहिए.
  • पूर्व में लाल, हरे, सुनहरे और पीले रंग का प्रयोग करें. पूर्वी क्षेत्र में जलस्थान, बोरिंग, भूमिगत टेंक बनाएं तथा पूर्व दिशा में यदि किसी जलस्थान में लाल कमल उगाते है अथवा पूर्वी क्षेत्र में लाल पुष्प के पौधे लगाते है तो दोष से मुक्ति मिलती है.
  • अपने शयन कक्ष की पूर्वी दीवार पर उदय होते हुए सूर्य की ओर पंक्तिबद्ध उड़ते हुए शुभ उर्जा वाले पक्षियों के चित्र लगाएं. निराश, आलस से परिपूर्ण, अकर्मण्य, आत्मविश्वास में कमी अनुभव करने वाले व्यक्तियों के लिए यह विशेष प्रभावशाली है.