विक्रम मिश्र, लखनऊ. केंद्र से लेकर यूपी की सत्ता में स्थापित भारतीय जनता पार्टी के लिए साल 2024 ढेरों अनुभव दे गया. देश की बागडोर संभाल रहे नरेंद्र मोदी को पहली बार जोड़तोड़ के साथ सरकार बनाने को मजबूर होना पड़ा. क्योंकि उत्तर प्रदेश में इस साल भाजपा गठबंधन के सांसदों की संख्या 62 से फिसलकर 36 पर आ गई. इसका मतलब ये हुआ कि राष्ट्रीय राजनीति में उत्तर प्रदेश का वर्चस्व घटा और मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक कि अपनी सियासी यात्रा में पहली बार नरेंद्र मोदी को गठबंधन या यूं कहें कि वे पूर्ण बहुमत के बगैर दो ‘बैसाखी’ के सहारे सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे.

साल 2024 भाजपा के विजय रथ पर ब्रेक और सांसदों की संख्या के दृष्टि से प्रदेश में 10 साल बाद भाजपा को दो नम्बर पर धकेल दिया. हालांकि साल खत्म होते होते भाजपा योगी आदित्यनाथ की कुशल रणनीति के कारण उप चुनाव में 9 में से 7 सीट जीतने में सफल रही. इसीलिए साल 2024 को भाजपा झटके और वापसी वाले साल के तौर पर याद करेगी.

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कुछ मिल जाने की उम्मीद में हुई साल की शुरुआत

रामलला की प्राणप्रतिष्ठा आप सभी के जहन में होगी. किस तरह से बहुसंख्यको की उम्मीद पर तिलक लगाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 साल के लंबे इंतजार के बाद अयोध्या में बने श्री मंदिर में रामलला की प्राणप्रतिष्ठा में खुद यजमान की भूमिका में बैठे थे. उत्तर प्रदेश की धरती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यजमान बनना युगान्तकारी कदम के तौर पर भी देखा गया था. ये एक संदेश भी था कि हिन्दू आस्था के पक्ष को लेकर अब सरकार किसी कशमकश में नहीं रहने वाली है. हालांकि इसके राजनीतिक मायने भी थे. यजमान बन रामलला को विराजित कर फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर खुद को स्थापित करना भी एक कारण था. जैसा कि विपक्ष भी इस आयोजन को लेकर शुरु से ही इसे राजनीतिक करार दे रही थी.

चखना पड़ा हार का स्वाद

राम मंदिर तो बन गया, रामलला की प्राण प्रतिष्ठा भी हो गई. लेकिन भाजपा ने इसका जो फल चाहा था वो उन्हें नहीं मिला. हां ये जरुर है कि भाजपा को उत्तर प्रदेश में हार का स्वाद जरुर चखने को मिला. जिस उम्मीद के साथ भाजपा ने राम मंदिर निर्माण का डंका बजवाया, उसका परिणाम आशातीत नहीं रहा. नतीजन पार्टी को उत्तर प्रदेश की ज्यादातर सीटों के साथ अयोध्या सीट भी गंवानी पड़ी.

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बहुसंख्यकों की भावना का सम्मान

हालांकि इन सबके बीच ये बात थी कि अब तक के स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने बहुसंख्यकों की भावनाओं के सम्मान का सार्वजनिक शंखनाद किया था. इससे पहले सोमनाथ मंदिर की पुनः प्राण प्रतिष्ठा पर आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आपत्तियां सामने आई थी. जबकि उन्होंने अपना कार्यक्रम भी स्थगित कर दिया था. इसके साथ ही उस समय के राष्ट्रपति (राजेन्द्र प्रसाद) को भी रोकने की कोशिश की गई थी किंतु वो उपस्थित हुए थे.

फैजाबाद सीट में मिली हार

इतना कुछ करने के बाद भी साल 2024 का लोकसभा चुनाव फैजाबाद में जख्म दे गया. हालांकि बाद में उप चुनाव के जरिए मरहम जरूर लगा. लेकिन टीस तो बाकी ही रह गई.