नई दिल्ली. सीपीएम के महासचिव (पार्टी के शीर्ष नेता) सीताराम येचुरी ने संघ परिवार पर ज़ोरदार हमला बोला है. अपने ट्वीटर एकाउंट से येचुरी ने गांधी जी की हत्या के लिए सीधे-सीधे संघ परिवार को ज़िम्मेदार ठहरा दिया है.
येचुरी ने कहा है कि संघ परिवार को यही विरासत में मिला है. गांधी की हत्या से लेकर बाबरी मस्जिद ढहाए जाने तक. हालांकि उन्होंने ये बात किस संदर्भ में लिखी है ये नहीं लिखा है लेकिन माना जा रहा है कि उन्होंने ये बयान त्रिपुरा में लेनिन की मूर्ति तोड़ने के खिलाफ दिया है.
गौरतलब कि संघ परिवार के ऊपर इसी तरह का आरोप लगाने के बाद कांग्रेस अध्य़क्ष राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया गया था. 2014 में राहुल गांधी ने गांधी की हत्या के पीछे संघ परिवार का हाथ बताया था. हालांकि राहुल गांधी अपने बयान से पीछे नहीं हटे हैं.
The legacy of Sangh Parivar is known to all. From Gandhi's murder to the demolition of Babri Masjid.
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) March 7, 2018
इस ट्वीट के बाद येचुरी ने एक और ट्वीट किया जिसमें उन्होंने उस खबर को डाला है जिसमें तमिलनाडु में बीजेपी नेता एच राजा ने द्रविणों के नेता ईवी रामसामी पेरियार की मूर्ति तोड़ने का बयान दिया. येचुरी ने लिखा है कि मूर्तियों को तोड़कर संघ केवल विकास और शिक्षा को खत्म करने का अपना असल मकसद और खोखनापन दिखा रहा है. लेकिन वो सफल नहीं होंगे. भीड़ केवल मूर्तियों को तोड़ सकती है सोच को खत्म नहीं कर सकती.
Destruction of statues by the Sangh only demonstrates its real intentions and its hollowness: to demolish ideas of progress and enlightenment. They won't succeed. Mobs can vandalise statues but not demolish ideas. #Periyar #Lenin #Ambedkar pic.twitter.com/Tjcl5S3yiD
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) March 7, 2018
गांधी हत्या में कौन-कौन शामिल था ?
जनवरी, 1948 में गांधी जी की हत्या की दो कोशिशें हुई थीं. पहली बार एक पंजाबी शरणार्थी मदनलाल पाहवा ने 20 जनवरी को उन्हें मारने की साजिश की. दूसरी कोशिश 30 जनवरी को नाथूराम गोडसे ने की थी जो सफल रही थी.
गांधी जी की हत्या के मामले में आठ आरोपित थे – नाथूराम गोडसे और उनके भाई गोपाल गोडसे, नारायण आप्टे, विष्णु करकरे, मदनलाल पाहवा, शंकर किष्टैया, विनायक दामोदर सावरकर और दत्तात्रेय परचुरे. इस गुट का नौवां सदस्य दिगंबर रामचंद्र बडगे था जो सरकारी गवाह बन गया था. ये सब आरएसएस या हिंदू महासभा या हिंदू राष्ट्र दल से जुडे हुए थे. अदालत में दी गई बडगे की गवाही के आधार पर ही सावरकर का नाम इस मामले से जुड़ा था और गांधी की हत्या के बाद हिंदू महासभा और आरएसएस पर प्रतिबंध लग गया था.
गांधी की हत्या के लगभग 28 दिन के अंदर सरदार वल्लभ भाई पटेल इस निष्कर्ष पर पहुच गए थे कि आरएसएस इस हत्या के लिए ज़िम्मेदार नहीं है.
उन्होंने 27 फ़रवरी 1948 में नेहरू को पत्र लिखा था जिसका सार था कि आरएसएस नहीं, बल्कि विनायक दामोदर सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा गांधी जी की हत्या के षड्यंत्र की ज़िम्मेदार है. उन्होंने यह भी लिखा था कि ‘यह सत्य है कि आरएसएस और हिंदू महासभा ने गांधी की हत्या पर मिठाई बांटी थी क्योंकि ये दोनों संगठन उनके विचारों से असहमत थे. पर आरएसएस या हिंदू महासभा के किसी अन्य सदस्य का हाथ इसमें नहीं है.’ मतलब सावरकर और अन्य सात लोग जिनके नाम ऊपर लिखे गये हैं, उनके अलावा अन्य कोई महात्मा गांधी की हत्या का दोषी नहीं है.
सरदार पटेल तब उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री थे. हो सकता है उनके पास आंतरिक जानकारी हो इसलिए उनकी बात पर यकीन कर ही सकते हैं. उन्होंने आरएसएस पर ज़बर्दस्त प्रहार किया था, उसे प्रतिबंधित भी किया था. लेकिन बाद में हत्या के मुकदमे में फैसला आने से पहले ही प्रतिबंध को हटवा भी दिया था. 19 जुलाई 1949 को उन्होंने यह भी कहा कि ‘मैं खुद भी चाहता था कि आरएसएस पर लगा प्रतिबंध हट जाए और जिस दिन मुझे श्री गोलवलकर का पत्र मिला जिसमें उन्होंने आरएसएस के देशहित में काम करने का आश्वासन दिया था, मैंने उसी दिन यह फ़ैसला ले लिया.’