टोमल लाल सिन्हा, मगरलोड(धमतरी)। ये कहानी उन नौजवानों के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं जो कि बेरोजगारी, पारिवारिक समस्या, प्रेम में विफलता के चलते या तो आत्महत्या कर लेते हैं या फिर दिशाहीन होकर भटकते रहते हैं. अगर युवाओं को लगता है कि उनके पास सिर्फ समस्या या दर्द है तो उन्हें लोकेश की कहानी को न सिर्फ़ पढ़ना चाहिए, बल्कि उनसे मिलना भी चाहिए.

छत्तीसगढ़ का वनांचल क्षेत्र धमतरी जिला. इस जिले का मगरलोड विकासखंड. इस विकासखंड में है एक छोटा गाँव परसाबुड़ा. एक ऐसा गाँव जहाँ से निकले युवक आज विदेशी धरा पर भारत की पहचान बन गया है. ये कहानी उस लोकेश की है जो आध्यत्मिक शिक्षा लेने के लिए हरिद्वार गया था, लेकिन वहाँ से वह सफल योग शिक्षक बन दिल्ली के रास्ते चीन पहुँच गया.

लोकेश इन दिनों चीन से अपने गाँव आया हुआ. गाँव आय तो अकेले नहीं आया बल्कि साथ अपने चीन के उस परिवार को भी लाया जो कि लोकेश का परिवार है. दरअसल लोकेश को चीन की एक लड़की से प्यार हो गया उसने उससे वहीं शादी कर ली.

lalluram.com से विशेष बातचीत में लोकेश अपने इस कामयाब सफर के बारे में बताते हुए कहता है – “मेरी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा परसाबुढ़ा गाँव में हुई. मेरे घर के लोग गायत्री परिवार से जुड़े हुए थे. गायत्री परिवार से जुड़ने का फायदा ये रहा कि मेरे आस-पास आध्यत्मिक वातावरण बना रहा.  मुझे अपने शिक्षक अशोक सेन के साथ एक बार हरिद्वार जाने का अवसर मिला. वहाँ जाने के बाद मेरे मन आध्यमिक शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा हुई. हरिद्वार से लौटा तो फिर 12 वीं तक की शिक्षा मगरलोड से पूरी की. उच्चतर माध्यमकि शिक्षा लेने के बाद मैं हरिद्वार में योग की शिक्षा लेने चला गया. वहाँ देव संस्कृति विश्वविद्यालय से योग में बी.ए. और एम.ए की पढ़ाई पूरी करने बाद दिल्ली चला गया. दिल्ली में मैं बतौर योग शिक्षक नौकरी करने लगा. इस दौरान मोरार जी देसाई संस्था में कार्यरत् मित्रों से जानकारी मिली की चीन में अच्छे योग शिक्षक की जरूरत है. मित्रों ने मेरे बारे चीन में कार्यकरत् भारतीय योग शिक्षक को दे दी. मैं मित्रों के कहने पर वहाँ योग गुरु के लिए आवेदन कर दिया. मैं नहीं जानता था कि मुझे चीन जाकर योग की शिक्षा देनी होगी. मैं फिर दिल्ली से सीधे चीन के बीजिंग शहर जा पहुँचा. बीजिंग में मैं बीते 4 वर्ष से योग की शिक्षा दे रहा हूँ. अभी तक 3 हजार से अधिक लोगों को मैं योग सीखा चुका हूँ. मुझे चीन में शुरुआती वर्ष में कठिनाई हुई. भाषा से लेकर रहन-सहन, खान-पान आचरण-व्यवहार में. लेकिन धीरे-धीरे चीन के लोगों से संपर्क बढ़ते चला गया और फिर आज सफल जीवन जी रहा हूँ. मैंने अब चीन में अपना घर बसा लिया है. चीन की एक लड़की हाउजांग से मुझे प्यार हुआ और मैंने उससे शादी कर ली.”

लोकेश के पिता देवान सिंग ध्रुव अपने बेटे से खुश है. यह हम सबके लिए गर्व की बात है विदेशी धरा मेरा बेटा भारतीय संस्कृति और ज्ञान की शिक्षा दे रहा है. लोकेश ने पूरे परिवार, गाँव और राज्य का नाम रोशन किया है. वह अपने क्षेत्र में खूब तरक्की करे बस यही हमारी कामना है.

लोकेश की कामयाबी और उनसे हुई बातचीत को आप इस वीडियो में देख सकते हैं-