प्रयागराज. योगी सरकार ने नवरात्रि और रामनवमी पर होने वाले कार्यक्रमों के लिए हर जिले को एक-एक लाख रुपए जारी किए थे. हालांकि कुछ लोगों को सरकार का ये फैसला पसंद नहीं आया और सरकार के इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्टव में जनहित याचिका दायर करके सरकार के खिलाफ एक्शन लेने की मांग की गई. लेकिन हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार का फैसला संविधान के आर्टिकल 27 का उल्लंघन नहीं है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस देवेंद्र उपाध्याय और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सरकार ने किसी मंदिर को सीधे तौर पर कोई पैसा जारी नहीं किया था. ये पैसा उन कार्यक्रमों को प्रमोट करने के लिए जारी किया गया था जो नवरात्रि और रामनवमी में कार्यक्रम आयोजित कर रहे थे. ये सारा पैसा उन कलाकारों को दिया गया जो इन कार्यक्रमों में परफार्म कर रहे थे. इसमें गलत क्या है.

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बेंच का कहना था कि इस तरह के मौकों पर होने वाले कार्यक्रमों में बहुत सारे लोग हिस्सा लेते हैं. टूरिस्ट भी इनमें आते हैं. लिहाजा सरकार को हक है कि वो इनको प्रमोट करने के लिए जनता से जुटाए गए टैक्स के पैसे का थोड़ा सा हिस्सा खर्च कर सके. इसमें उन्हें कुछ भी गलत नहीं लगता. बेंच का कहना था कि अगर सरकार ने किसी मंदिर या पुजारी को ये पैसा दिया होता तो गलत होता. लेकिन ये डिस्ट्रिक्ट टूरिस्ट एंड कल्चरल काउंसिल को दिया गया. उन्होंने ये पैसा नवरात्रि और रामनवमी पर होने वाले कार्यक्रमों के प्रमोशन पर खर्च किया गया. इससे होर्डिंग लगाए गए. विज्ञापन दिए गए.

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हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया. 2011 के प्रफुल्ल गोरादिया बनाम केंद्र के केस में हज कमेटी को दिए गए अनुदान पर आपत्ति जताई गई थी. तब सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि हज कमेटी एक्ट के तहत अगर कुछ पैसा धार्मिक गतिविधि पर खर्च किया जाता है तो इसमें संविधान के आर्टिकल 27 की उल्लंघना नहीं होती. हाईकोर्ट ने कहा कि तब सही थे तो आज पैसा देने में क्या दिक्कत है.

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