आरती अत्यंत प्राचीन शब्द है. आरती के महत्व की चर्चा सबसे पहले “स्कन्द पुराण” में की गयी है. इसका मतलब होता है किसी भी देवी-देवता की पूजा करने के बाद लयबद्ध तरीके से भगवान के आशीर्वाद का गान करना, उनका बखान करना और उनका धन्यवाद करना. इसकी प्रक्रिया में, एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के सामने दाएं हाथ की तरफ घुमाते हैं. आरती की थाली में रखी हर एक सामग्री का अपना एक अलग महत्व होता है. सभी भगवान को अर्पित किए जाते हैं. Read More – Ganesh Chaturthi Recipe : बप्पा को लगाएं चॉकलेट मोदक का भोग, बप्पा हो जाएंगे खुश …
आरती करने के नियम
भगवान की पूजा बिना आरती के पूरी नहीं मानी जाती. गणेश जी चतुर्थी तिथि के अधिष्ठाता हैं, इसलिए श्री गणेश जी को चार बार दिखानी चाहिए, अथवा सभी देवी-देवताओं के लिए सात बार आरती करने को कहा गया है. Read more – अंबानी परिवार की गणेश चतुर्थी पूजा में पहुंची Rekha, डॉर्क मरून कलर की साड़ी में लगी कयामत …
- बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के केवल आरती भी नहीं कर सकते.
- आरती करने से पहले थाल तैयार करना होता है.
- जिसमें कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है.
- आरती होने के बाद जल से आचमन करें और उस जल का अन्य लोगों पर छिड़काव करें.
- दोनों हाथों को दीपक की लौ के आसपास लाकर मस्तक पर लगाएं.
- इस तरह से आरती की जाए तो घर में नकारात्मकता नहीं रहती और वास्तुदोष भी समाप्त हो जाता है.
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