रायपुर- भूपेश मंत्रीमंडल में शामिल किए गए तमाम मंत्रियों के बीच किसी चेहरे पर यदि सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है, तो वह हैं कवासी लखमा. दरअसल कवासी लखमा कभी स्कूल नहीं गए, लिहाजा उन्हें अक्षर ज्ञान नहीं है. यही वजह है कि शपथ ग्रहण के दौरान राज्यपाल आनंदी बेन पटेल जैसे-जैसे शब्द पढ़ती चली गई, वैसे-वैसे लखमा उन शब्दों को दोहराते चले गए.

कवासी लखमा दक्षिण बस्तर में कांग्रेस का सबसे बड़ा चेहरा है.साल 2003 के बाद से राज्य में अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों में उन्होंने लगातार जीत दर्ज की है. ऐसे में कांग्रेस सरकार के लिए उन्हें नजरअंदाज कर पाना आसान नहीं था. हालांकि मंत्रीमंडल गठन की प्रक्रिया के दौरान कई मौके ऐसे आते रहे, जहां कवासी के नाम पर संशय की स्थिति बनती रही. बावजूद इसके अंतिम सूची में यह नाम शामिल कर लिया गया.

विधानसभा में उप नेता प्रतिपक्ष रहे कवासी लखमा सदन में भी सत्ता के विरोध में सबसे ज्यादा मुखर रहे. खासतौर पर आदिवासियों और बस्तर से जुड़े मामलों को लेकर रमन सरकार के खिलाफ सड़क से लेकर सदन तक अपनी बुलंद आवाज में हमलावर रहे. कवासी जब बोलते, तो सदन के भीतर तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह की मौजूदगी भी होती. अशिक्षित होने के बावजूद सदन की कथित पारंपरिक मर्यादाओं में रहते हुए कवासी अपनी बात कहते रहे. सत्तापक्ष के बड़े-बड़े धुरंधरों ने अपने तर्कों से कई बार घेरने की कोशिश भी की, लेकिन सूझबूझ से दिए गए कवासी लखमा के पलटवारों ने कई मौकों पर तुर्रम खां नेताओं के होश भी फाख्ता किए.
झीरम घाटी में सवाल भी उठे
वीकिपीडिया पर कवासी लखमा को लेकर दी जा रही जानकारी भी चौंकाती है. वीकिपीडिया लिखता है कि-
कवासी लखमा छत्तीसगढ़ के विधायक है. दरभा घाटी में 2013 में हुए नक्सली हमले में जीवित बचकर आने वाले लोगों में से एक हैं. उनके नाम को लेकर व्यापक रूप से चर्चा इसलिए भी हुई, क्योंकि उनकी ही पार्टी के लोगों ने उनकी इमानदारी पर संदेह व्यक्त किया. नक्सल हमले में उनकी भूमिका पर सवाल उठाया. जब हमले में कांग्रेस नेताओं की गोली मारकर हत्या कर दी गई, तो कवासी लखमा को कैसे बख्श दिया गया. इस पर संदेह पैदा हो गया.
वीकिपीडिया यह भी लिखता है कि-
भारतीय जनता पार्टी ने कवासी लखमा के खिलाफ नार्को टेस्ट की मांग यह कहते हुए कि थी कि कांग्रेस नेताओं पर हुए घातक हमले को लेकर नक्सलियों और उनके बीच हुए संवाद का पता लगाया जा सके.
दरअसल 25 मई 2013 को सुकमा में परिवर्तन यात्रा के तहत सभा कर लौट रहे कांग्रेस नेताओं को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया. तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार समेत 29 कांग्रेस नेता शहीद हो गए, लेकिन इस भीषण हमले में कोई बचकर आया, तो वह कवासी लखमा थे.

कवासी लखमा के मंत्री बनाये जाने को लेकर भी सोशल मीडिया पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही है. एक वर्ग असहमति जता रहा है, तो बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग लखमा को मंत्री बनाये जाने को लेकर यह कहते हुए अपनी टिप्पणी दर्ज करा रहा है कि यह लोकतंत्र की खूबसूरती है.