रायपुर। नरवा, गरवा, घुरवा और बारी… छत्तीसगढ़ की चार चिन्हारी.. इन चार शब्दों से छत्तीसगढ़ की सरकार ने साफ कर दिया था कि सूबे की सरकार स्थानीय छत्तीसगढ़िया कलेवर में ही काम करेगी. इसका संदेश खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके मंत्रीमंडल ने विधानसभा के भीतर छत्तीसगढ़ी भाषा में शपथ लेकर दे दिया था. लेकिन जनमानस की सरकार होने के इस संदेश को छत्तीसगढ़ की अफसरशाही दरकिनार करने की कवायद कर रही है. दरअसल महात्मा गांधी नरेगा योजना में निकाली गई नियुक्ति को लेकर आयुक्त भीम सिंह ने एक आदेश जारी किया है. जिसमें उन्होंने शासन से अनुमति लिए बगैर छत्तीसगढ़ के मूल निवासी होने की अनिवार्यता के नियम को ही बदल दिया.

मामला सामने आते ही शासन से लेकर सरकार तक में हड़कंप मच गया. पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव की नाराजगी को भांपते हुए पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की सचिव रीता शांडिल्य ने आयुक्त भीम सिंह को नोटिस जारी कर तीन दिन के भीतर उनका जवाब मांगा है. नोटिस में कहा गया है बगैर अनुमति के नियम परिवर्तित करने पर क्यों न उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए. वहीं वापस छत्तीसगढ़ मूल निवासी की अनिवार्यता की शर्त को इन पदों पर नियुक्ति के लिए जोड़ा गया है.

आईएएस भीम सिंह

आपको बता दें मनरेगा में तीन पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया था. जिसमें 1 पद विशेषज्ञ, 1 पद डीबीटी नोडल अधिकारी और राज्य कार्यक्रम अधिकारी के लिए 1 पद शामिल था. इसमें डीबीटी नोडल अधिकारी और राज्य कार्यक्रम अधिकारी के पद के लिए छत्तीसगढ़ निवासी होने की अनिवार्यता की शर्त को आयुक्त भीम सिंह ने खत्म कर दिया था. जबकि छत्तीसगढ़ भर्ती नियम के मुताबिक राज्य का मूल निवासी होना आवश्यक है. इसके साथ ही सक्षम अधिकारी द्वारा जारी मूल निवास प्रमाण पत्र होना आवश्यक है.

इसलिए अनिवार्यता की खत्म

डीबीटी नोडल अधिकारी और राज्य कार्यक्रम अधिकारी इन दोनों पदों के लिए आयुक्त भीम सिंह ने मूल निवासी होने की अनिवार्यता को खत्म किया है उसका वेतनमान सुनकर आप चौंक जाएंगे. डीबीटी नोडल अधिकारी के लिए वेतन 1 लाख 20 हजार रुपये प्रतिमाह एकमुश्त और राज्य कार्यक्रम अधिकारी के पद के लिए 1 लाख रुपये प्रतिमाह एकमुश्त है. ताया जा रहा है कि आयुक्त भीम सिंह इन दोनों पदों पर अपने रिश्तेदारों को नियुक्त करना चाहते थे जिसकी वजह से उन्होंने छत्तीसगढ़ मूल निवासी अनिवार्यता के नियम को विलोपित कर दिया.

पत्नी को किया था नियुक्त

यह पहला मौका नहीं था जब IAS अधिकारी भीम सिंह ने अपने रिश्तेदारों के लिए नियमों को दरकिनार करते हुए फायदा पहुंचाया. इससे पहले जब वे धमतरी जिले के कलेक्टर थे उस दौरान साल 2015 में उन्होंने अपनी पत्नी मोनिका सिंह को गलत तरीके से स्वच्छता मिशन का जिला समन्वयक बनवाया था. इस पद के लिए बिलासपुर के एक अखबार में 20 अक्टूबर को विज्ञापन प्रकाशित करवाया गया था. बिलासपुर में विज्ञापन प्रकाशित होने की वजह से महज 39 लोगों ने ही आवेदन किया और इसमें 17 आवेदन को अपात्र पाया गया वहीं 17 आवेदन ही पात्र पाया गया. जिस कमेटी को चयन करना था उसके अध्यक्ष खुद तत्कालीन कलेक्टर भीम सिंह ही थे.

मोनिका सिंह (फाइल फोटो)

चयन प्रक्रिया के बाद मेरिट में बस्तर के एक युवक राहुल अग्रवाल 46.26 अंक लेकर टॉप किया था वहीं भीम सिंह की पत्नी मोनिका सिंह 43.82 अंक के कारण वेटिंग लिस्ट में आ गईं थीं. वेटिंग में आने के बावजदू मोनिका को इस पद पर 16 नवंब 2014 को नियुक्त कर दिया गया. नियुक्ति को लेकर सवाल जब उठे तो तत्कालीन कलेक्टर भीम सिंह ने कहा था कि मेरिट में आया युवक राहुल को पत्र के माध्यम से सूचना दी गई थी लेकिन जो समय तय किया गया था उसमें उसका जवाब ही नहीं आया. इस पद में नियुक्त मोनिका सिंह को 40 हजार रुपये मानदेय और वाहन में खर्च करने की कोई सीमा नहीं थी, मतलब उन्हें अनलिमिटेड खर्च करने का अधिकार था.

छत्तीसगढ़ मूल निवासी अनिवार्यता को खत्म करने के आयुक्त भीम सिंह के आदेश को लेकर अब भाजपा ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है. भाजपा ने ट्वीट कर कहा, ” भाजपा ने मनरेगा में आउटसोर्सिंग मामले में भी सरकार को झुकाया. छत्तीसगढ़ की हुई जीत. पहले सरकार खुद प्रदेश के हक पर डाका डालती है, फिर पकड़े जाने पर ठीकरा अधिकारियों पर फोड़ देती है. ख़बरदार! प्रदेशवासियों के हक पर डाका डालने वाले चोरों के लिए चौकीदार है भाजपा.”