राजधानी रायपुर में छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति के द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित सार्वजनिक व्याख्यान माला में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विख्यात पर्यावरणविद् डॉ श्रीधर राममूर्ति ने कहा की जिस तरह प्रकृति का विनाश कर विकास के सिलसिले को जारी रखा है. यह पूरे संसार को खत्म कर देगी। वे सी.एन.एस.एस.एस. के द्वारा वाय.एम. सी.ए. प्रोग्राम सेंटर में आयोजित व्याख्यान माला “जलवायु न्याय एवं मूलनिवासी समुदाय – प्रभाव, अनुकूलन क्षमता और विपत्तियां” विषय पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, और बाढ़ भी काफी ज्यादा हो रही है। पूरे ब्रह्माण्ड का संपूर्ण विनाश सामने दिख रहा है। आज दुनिया के कई देशों ने ऐसी परिस्थितियों से निपटने का जरिया खोज रहे हैं। भारत अभी भी कई मामलों में काफी पीछे हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार की लीपा पोती करने से जलवायु परिवर्तन के खतरे टल नहीं सकते हैं, क्योंकि जब तक इन खतरों को उत्पन्न करने वाले वाले करने वाले वाले को उत्पन्न करने वाले वाले इन खतरों को उत्पन्न करने वाले वाले करने वाले वाले को उत्पन्न करने वाले वाले को उत्पन्न करने वाले वाले स्रोतों को कमजोर नहीं करें या खत्म ना करें करें ना करें करें तब तक यह समस्या उसी तरह से मन मंडराता मंडराता रहेगा। इसमें कारपोरेट के द्वारा लाई जा रही रही लाभ आधारित विकास प्रणाली, जैसे माइनिंग जो संपूर्णता पर्यावरण एवं जलवायु के संतुलन को को जलवायु के संतुलन को को बिगड़ देता हैं इसकी बहुत बड़ी भूमिका रही है।
भारत दुनिया में सबसे अधिक कार्बन को वायुमंडल में भेजने के क्रम में तीसरे स्थान पर हैं, यह बहुत खतरनाक स्थिति हैं। यदि विशेषज्ञों का माने माने तो आज भारत में बेवजह माइनिंग चल रहा है। अगर सरकारी आंकड़ो को ही देखा जाय तो समझ आत है की आज भारत सरप्लस कोयला, लोहा बाक्साइट इत्यादि का उतखनन कर रहे हैं। यह भारत अथवा किसी भी देश में व्यापार करने के लिए आवश्यक नहीं है। वास्तविकता तो यह है, इन माइनिंग से उत्पन्न होने वाली वाली प्रोडक्ट का स्थानीय या अंतर्राष्ट्रीय बाजार में और अधिक मांग नहीं है। उदाहरण से भारत सरकार के द्वारा संचालित “विद्युत प्रवाह” नामक आपको यदि आप स्वयं यदि आप स्वयं आप स्वयं देखें तो उसमें आपको हर पल पल हर पल किस मात्रा में सरप्लस विद्युत है, उसका विवरण मिल सकता है। आज दिन में जब हम देख रहे थे, तब उस पल में 6000 से अधिक मेघावाट सरप्लस उत्पादित हो रही थी।
इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि कि इस प्रकार की विकास की अवधारणा पर पुनर्विचार किया जाए जाए अवधारणा पर पुनर्विचार किया जाए जाए। हलाकि भारत सरकार ने पेरिस समझौते पर अमल करने की बात संयुक्त राष्ट्र के मंच पर कई दफा कही है। लेकिन वास्तविक स्तर पर पर ऐसा कुछ होते हुए नजर नहीं आता। अगर जलवायु न्याय में सरकार वास्तव में गंभीर है, तो उन्हें चाहिए कि कि जलवायु परिवर्तन के मूल स्रोतों स्रोतों मूल स्रोतों स्रोतों को संपूर्ण रूप से समाप्त करने के से समाप्त करने के प्रयास करें। उदाहरण स्वरुप सड़कों पर चलने वाली गाड़ियों की संख्या बढ़ाकर पॉल्यूशन कंट्रोल नहीं किया जा सकता सकता बल्कि इसके लिए गाड़ियां घटाने एवं पॉल्यूशन के स्तर को निरंतर मॉनिटर करके ही किया जा सकता है है। इसी प्रकार से दिन भर दिन नए उद्योगों के साथ एमओयू करने से से जलवायु परिवर्तन के असर को घटा नहीं सकते नहीं सकते घटा नहीं सकते नहीं सकते को घटा नहीं सकते नहीं सकते को घटा नहीं सकते नहीं सकते। अनावश्यक इंडस्ट्रीज और माइनिंग को और ज्यादा प्रोत्साहन नहीं देने से ही यह संभव होगा।
श्रीधर ने कहा, केवल भारत की ही नहीं बल्कि दुनिया के के दुनिया के दुनिया के नहीं बल्कि दुनिया के के दुनिया के दुनिया के मिट्टी हवा पानी जल स्रोत स्रोत इन सबको बचाकर ही ही बचाकर ही मानव मानव राशि राशि पशु-पक्षी पेड़-पौधे जल के जीव जीव जिंदा रह पाएंगे सवाल यह है कि इसमें सर्वाधिक प्रभाव सबसे ज्यादा कमजोर और इन फोटो के साथ सबसे गरीब के साथ सबसे गरीब से जुड़ने वाले समुदाय के ऊपर होता है विशेषकर आदिवासी दलित महिला मेहनतकश इत्यादि इसलिए भारत जैसे देश देश को केवल दिखावे के परिवर्तन नहीं बल्कि गंभीर रुप से यह प्रकृति को नाश करने वाले करने वाले करने वाले पूरे आर्थिक व्यवस्था को ही अमूल्य ढंग से परिवर्तित करना होगा।
अन्य वक्ताओं में इंदु नतम ने आदिवासियों के परपेक्ष रखा की आदिवासी किस प्रकार से प्रकृति को बचने में अपनी भूमिका निभा रहे है। डिग्री प्रसाद चैहान ने कहा की भेदभाव अधिरित सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखकर जलवायु न्याय का आंदोलन असमानता को बनाये रखने के सामान होगा। कार्यक्रम के अध्यक्ष तुहिन देब ने कहा कि यह हर जिम्मेदार व्यक्ति को इस व्यवस्था परिवर्तन एवं साम्राज्यवादी विकास प्रणाली के खिलाफ खिलाफ जो अभियान है उस में शरीक होकर होकर शरीक होकर होकर में शरीक होकर होकर शरीक होकर होकर जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरे को टालने में अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए चाहिए करनी चाहिए। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. गोल्डी एम०जार्ज ने किया। इस अवसर पर विभिन्न जन संगठनों, समाजसेवी संस्थानों, शहर के बुद्धिजीवीगण व छात्र-छात्राएं बडी संख्या में उपस्थित थे।