विश्व मानचित्र पर बस्तर लाल आतंक के घेरे में दिखता है. लेकिन हकीकत ये है कि ये लाल घेरा अब टूटने लगा है….मिटने लगा है. आतंक खत्म हो रहा है और शांति कायम हो रही है. क्योंकि सरकार बस्तर में चला रही है अनगिनत विकास की योजनाएं. सरकार चला रही है नक्सलियों के लिए पुनर्वास नीति। जिसके तहत हजारों की संख्या में नक्सली आज समाज की मुख्यधारा में लौटने लगे हैं. रमन सरकार की कारगार नीतियों ने माओवादियों की बुनियाद हिला दी है. रमन सरकार ने नक्सलवाद मुक्त छत्तीसगढ़ बनाने की दिशा में जैसा कहा, वैसा किया.
खून से सनी धरती.. गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज.. बेगुनाहों की हत्या… लाशों के ढेर.. मासूमों के हाथों में कलम की बजाय हथियार .. छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की तरफ से चलाए जा रहे छद्म युद्ध की ये तस्वीरें बेहद डरावनी हैं… इस छद्म युद्ध ने ना जाने कितने माओं की कोख उजाड़ दी, कितनी सुहागिनों के सिर का सिंदूर पोछ दिया… ना जाने कितने पिता के बुढ़ापे की लाठी को तोड़ दिया. समाज की मुख्यधारा से अलग होकर हिंसा के रास्ते में जाने वाले ये माओवादी दरअसल में भटके हुए युवक और युवती हैं. आज ये आत्मसमर्पण कर रहे हैं.. हिंसा के रास्ते को हमेशा के लिए छोड़ने का संकल्प ले रहे हैं.. इनके चेहरे आंखों में आज सुकून है. सुकून हिंसा के रास्ते को छोड़ने का.. बस्तर में अमन चैन कायम करने और इन भटके हुए युवाओं को वापस मुख्यधारा में लाना इतना आसान नहीं था.. ये कमाल है रमन सरकार के पुनर्वास नीति का. जिसने बस्तर के भटके हुए युवाओं को बंदूक और हिंसा का रास्ता छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. रमन सरकार की इस नीति के तहत हजारों की संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया है. जिन नक्सलियों ने आत्म समर्पण किया है उनमें बड़ी संख्या में ईनामी और कुख्यात नक्सली शामिल हैं. जो सरकार की पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर हिंसा की बजाय आत्मसमर्पण करना ज्यादा बेहतर समझा. इसी नीति का नतीजा है कि आत्मसमर्पित किए हुए ये नक्सली समाज की मुख्य धारा में लौटकर परिवार संग सम्मान का जीवन जी रहे हैं. और बस्तर में वापस खुशहाली लौटने लगी है. नक्सल ऑपरेशन डीआईजी पी. सुंदरराज ने बताया कि अब तक 3 हजार से अधिक माओवादी आत्मसम्पर्ण कर चुके हैं जिन्हें सरकार की पुनर्वास नीति के तहत नौकरी सहित अन्य सुविधाएं दी गई है.
रमन सरकार की पुनर्वास नीति ने छत्तीसगढ़ में इतना बड़ा बदलाव लाया है कि आज लाल आतंक से थर्राने वाली धरती शांति और अमन के पैगाम की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है. रमन सरकार ने नक्सल पीड़ित व्यक्तियों व परिवारों तथा आत्मसमर्पित नक्सलियों के लिए नई पुनर्वास नीति बनाई है. नई पुनर्वास नीति में प्रदेश के नक्सल पीड़ित व्यक्तियों या परिवारों तथा आत्मसमर्पित नक्सलियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने और उन्हें पर्याप्त सुरक्षा व पुनर्वास उपलब्ध कराने के लिए कई प्रावधान किए गए हैं.
आईये जानते हैं पुनर्वास नीति के क्या हैं लाभ-
योग्यता के अनुसार सरकारी नौकरी
जिसके अनुसार आत्मसमर्पित माओवादियों और पीड़ितों को उनकी योग्यता के अनुसार सरकारी नौकरी दी जाएगी. आत्मसमर्पित नक्सली के शिक्षित या शिक्षाकर्मी नियुक्त होने की पात्रता रखने पर उनकी नियुक्ति नियमानुसार की जाएगी. शिक्षाकर्मी वर्ग-3 पद के लिए बीएड या डीएड की परीक्षा उत्तीर्ण होना अनिवार्य रखा गया है. आत्मसमर्पित नक्सली के शासकीय सेवा में नियुक्ति की पात्रता रखने पर उसकी शासकीय सेवा में नियुक्ति पर विचार किया जाएगा. जिला स्तरीय समिति की अनुशंसा पर किसी भी विभाग में जिला प्रमुख की सहमति से नियुक्ति दी जा सकेगी.
कम पढ़े-लिखे होने पर सेवा नियमों में छूट देते हुए अन्य विभाग के पद जैसे- होमगार्ड, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, रसोइया, भृत्य, पानी पिलाने वाला व चौकीदार, मितानिन तथा एएनएम के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा. ऐसे पदों पर संविदा नियुक्ति के बाद नियमित भी किया जा सकेगा. अशिक्षित होने की स्थिति में पांचवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के लिए तीन साल का समय दिया जाएगा.
पदनाम के अनुसार मिलती है राशि
माओवादी के पदनाम अनुसार घोषित ईनामी राशि आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली को दी जाएगी. ये राशि 1 लाख से लेकर 60 लाख रुपए तक की है. इस राशि को आत्मसमर्पण करने वाले के नाम पर फिक्स डिपाजिट कर दिया जाता है और 3 साल निगरानी के बाद उसे सौंप दिया जाता है. जिससे वह उस पैसे से अगर व्यापार करना चाहे तो व्यापार करे या फिर उन पैसों का परिवार के लिए उपयोग करे.
शस्त्र के साथ समर्पण करने पर मिलती है ये राशि
शस्त्र के साथ आत्मसमर्पण करने पर उन शस्त्र व गोला बारुदों के बदले भी मुआवजा राशि देने का प्रावधान है. एलएमजी पर साढ़े 4 लाख रुपए, एके 47 रायफल पर 3 लाख, एसएलआर पर डेढ़ लाख रुपए. थ्री नाट थ्री पर 75 हजार, 12 बोर बंदूक पर 30 हजार, 2 इंच मोटार पर 2 लाख 50 हजार, सिंगल शार्ट गन पर 30 हजार, 9 एमएम कार्बाइन 20 हजार, पिस्टल-रिवाल्वर पर 20हजार, वायरलेस सेट पर 5 हजार, रिमोर्ट डिवाइज पर 3 हजार, आईईडी पर 3 हजार, विष्फोटक पदार्थ पर 1 हजार प्रति किलो, ग्रेनेड/जिलेटिन रॉड पर 5 सौ, सभी प्रकार के एम्युनिशन पर 5 रुपए प्रति एम्युनिशन दिया जाता है. वहीं बिना शस्त्र समर्पण पर प्रोत्साहन राशि 10 हजार रुपए दी जाती है.
जीवकोपार्जन के लिए केन्द्रीय पुनर्वास के अंतर्गत प्रशिक्षण पर जाने से पूर्व अधिकतम 3 माह हेतु जीविकोपार्जन के लिए 4 हजार प्रतिमाह दिया जाता है.
पति एवं पत्नी द्वारा आत्मसमर्पण करने पर तत्काल 20 हजार रुपए आर्थिक सहायता.
माओवादी नेताओं द्वारा जिन नक्सली युवक-युवती की नसबंदी की जाती है उनकी रिवर्स वासेक्टॉमी का सारा खर्चा शासन द्वारा वहन किया जाता है. ताकि वे संतति उत्पन्न कर सकें.
जीविका चलाने के लिए कृषि भूमि
समर्पित नक्सली व पीड़ित व्यक्ति जिनके पास जीविकोपार्जन का कोई साधन न हो, वे नक्सल प्रभावित जिलों में से किसी भी स्थान पर कृषि योग्य भूमि आवंटन के लिए आवेदन कर सकेंगे. इन व्यक्तियों को यथासंभव वरीयता क्रम में भूमि उपलब्धता अनुसार आवंटित की जाएगी. साथ ही भूमि आवंटन करते समय इनकी सुरक्षा के दृष्टिकोण को भी ध्यान में रखा जाएगा. जरूरत पड़ने पर संबंधित विभाग नियमों में संशोधन भी कर सकेंगे. पीड़ित व्यक्ति को सुरक्षा की दृष्टि से उसके स्वयं की भूमि के बदले दूसरे स्थान पर उतनी ही कीमत की भूमि उपलब्ध कराई जा सकेगी. यदि वन या राजस्व भूमि पर अतिक्रमण किया गया है तो पात्रतानुसार भूमि व्यवस्थापन की कार्रवाई भी की जाएगी.
नक्सल पीड़ित व्यक्तियों व परिवारों को भी सरकार सहायता व सुविधाएं देगी. नक्सली हिंसा में किसी आम नागरिक के मृत व शारीरिक रूप से अपंग या घायल होने तथा उसकी संपत्ति की क्षति पर उन्हें राहत या सहायता राशि उपलब्ध कराई जाएगी. मृतक के परिजनों को पांच लाख रुपए तक की राहत राशि दी जाएगी. घायल को स्थायी असमर्थ होने पर दो लाख व गंभीर घायल को एक लाख रुपए की सहायता दी जाएगी.
चल संपत्ति के नुकसान पर दस हजार, कच्चे मकान पर 20 हजार व पक्के मकान के नुकसान पर 40 हजार तथा जीविकोपार्जन के साधन की क्षति जैसे बैलगाड़ी, नाव आदि पर 20 हजार रुपए की राहत राशि मिलेगी. ट्रैक्टर, जीप की क्षति पर दो लाख तथा ट्रक, रोड रोलर आदि बड़े वाहनों की क्षति पर तीन लाख रुपए तक दिए जाएंगे. संपत्ति को आंशिक क्षति पहुंचती है तो उचित मआवजा भी मिलेगा. नक्सल पीड़ित व्यक्तियों व परिवारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे. नक्सल पीड़ित परिवार के किसी एक सदस्य को योग्यतानुसार शासकीय सेवा में नियुक्ति देने पर विचार किया जाएगा.
मुख्यमंत्री खाद्यान्न सहायता योजना अंतर्गत न्यूनतम दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराना.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योनजा अंतर्गत सुविधा.
यात्री किराया में 50 प्रतिशत की छूट.
पूर्व में पंजीबद्ध अापराधिक प्रकरणों के संबंध में नक्सली उन्मूल में दिए गए योगदान को ध्यान में रखते हुए आपराधिक प्रकरणों को समाप्त करने हेतु 6 माह तक चाल-चलन देखने के पश्चात अच्छा आचरण होने पर मंत्री परिषद की उप समिति विचार करेगी.
पुनर्वास नीति के तहत 2004-05 से अब तक 3600 नक्सली आत्मसमपर्ण कर चुके हैं. जिसमें कई करोड़ रुपए की सहायता राशि दी जा चुकी है. इनमे लगभग 400 से 500 लोगों को शासकीय सेवा का लाभ भी दिया गया है. इनमें मितानिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, भृत्य, शिक्षाकर्मी बनाया गया. वहीं सैकड़ों समर्पित नक्सली पुलिस में शामिल हो गए हैं. समाज की मुख्यधारा में लौटने वाले नक्सलियों को आवास उपलब्ध करवाये गए हैं. पुलिस विभाग में एसआई के पद भी समर्पित नक्सलियों को मिला है.
डीआईजी नक्सल आपरेशन पी सुंदरराज के अनुसार राज्य शासन नक्सलियों के लिए चलाई जाने वाली पुनर्वास नीति को लेकर काफी संवेदनशील है. जिस प्रकार क्षेत्र में नक्सल उन्मूलन अभियान तेज किये गए हैं. उसमे दो पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया है, सॉफ्ट कॉर्नर और हार्ड कॉर्नर. हार्ड कॉर्नर में नक्सलियों से सीधे मुठभेड़ कर उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, अथवा मार दिया जाता है. वहीँ यदि कोई नक्सली समर्पण करना चाहता है तो उसके सारे गुनाहों को माफ़ कर उसका स्वागत किया जाता है. समर्पण करने के बाद सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि समर्पण करने वाले नक्सली के बेहतर भविष्य के लिए उसे पर्याप्त सुविधाएँ मुहैया करवाई जाएँ. प्रत्येक समर्पित नक्सलियों के लिए 4 हजार रूपए का सहयोग केवल प्रशिक्षण के लिए किया जाता है, और उन्हें आईटीआई व लाइवली हुड जैसे संस्थानों से निशुल्क प्रशिक्षित किया जाता है.
रमन सरकार की पुनर्वास नीति की ही देन है कि अब भटके हुए युवा हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौटने लगे हैं. आगे आपको ऐसे ही आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों से मिलवाएंगे जिन्होंने बस्तर की भूमि को लाल आतंक की भूमि बना दिया था. जो आज अपने परिवार के साथ खुशहाल जिंदगी बिता रहे हैं.
राज्य सरकार की नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा से जो़ड़ने चलाई जा रही आत्मसम्पर्ण पुनर्वास नीति का असर ये है कि हजारों की संख्या में नक्सली अब सरकार के विकास के साथ है. हाल ही में पहाड़ सिंह जैसे खुख्यात नक्सली ने भी आत्मसम्पर्ण किया है. सबसे अच्छी बात ये है कि सरकार समर्पण करने वाले नक्सलियों को योगिता के मुताबिक नौकरियां दे रही है. इसके साथ उनका घर भी बसा रही है. इस रिपोर्ट में आपको ऐसे ही कुछ उन लोगों से मिलवा रहे हैं जो कि नक्सवाद की दुनिया छोड़कर समाज की मुख्यधारा लौट चुके हैं.
इनसे मिलिए ये है नवीन…खाकी वर्दी में नवीन को देखकर कोई नहीं कहेगा कि कुछ साल पहले तक यह नक्सली था। लाल आतंक के घेरे में आकर नवीन समाज की मुख्यधारा से अलग हुआ और रास्ते भटक नक्सलियों के समूह में शामिल हो गया था। नवीन 2002 में नक्सलियों के संगठन से जुड़े और 13 सालों तक कई खूनी घटनाओं को अंजाम देते रहे। लेकिन इस बीच भटकते मन में सरकार की कारगर नीति का प्रवेश हुआ। राज्य सरकार की पुनर्वास नीति से नवीन प्रभावित हुए और उन्होंने पुलिस के सामने आत्मसमपर्ण कर खाकी की वर्दी पहन ली।
नवीन की तरह ही आत्मपसमर्पण कर चुकी महिला नक्सली सोनी की आप बिती और बड़ी भयावह है। नारायणपुर के कट्टाखाल गांव की महिला नक्सली सोनी बताती है कि वे भी रास्ता भटककर नक्सलियों के कुतुल दलम की सदस्य में शामिल हो गई थी। उनके बेहतर काम को देखकर इन्हें राधिका नामक हार्डकोर महिला नक्सली कमांडर के गाइड का पद दिया गया। आगे चलकर सोनी को जनमिलिशिया सदस्यों को प्रशिक्षित करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद उन्हें प्रताड़ित करने का काम शुरू हो गया।सोनी के मुताबिक जंगलों में माओवादियों की विचारधारा का पालन करना होता है, ना चाहते हुए भी कई बार निर्दोष ग्रामीणों को मारना होता था। यहां तक महिला नक्सलियों का शारारीक शोषण भी होता है। इसी बीच उन्हें शासन की समर्पण नीति की जानकारी मिली जिससे प्रभावित होकर उन्होंने समर्पण करने का फैसला किया । जंगल की ज़िन्दगी काफी कठिन हुआ करती थी और मन में हर वक़्त मौत का खतरा मंडराता था। पर समर्पण के बाद अब उनकी ज़िन्दगी आसान हो गई है। शासन ने उन्हें वो सारी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई है जो सरकार की पुनर्वास नीति में शामिल है।
कभी नक्सलियों के खेमे में डॉक्टर रहे रमेश ने भी लाल गलियारे के आतंक से तौबा कर लिया है। 12वीं तक की पढाई कर चुके रमेश की बेरोजगारी का फायदा उठाते हुए नक्सलियों उसे भी अपने संगठन में शामिल कर लिया था। 2002 से संगठन में सक्रिय रहे रमेश ने 9 साल माओवाद की दुनिया में सक्रिय रहा। पढ़े लिखे रमेश को शुरू से पुलिस में जाने की ख्वाहिश थी, पर अंदरुनी क्षेत्र में बसे उसके गांव की वजह से यह इतना आसान नहीं था। रमेश ने बताया की 9 साल के इस नक्सल जीवन में उसने दो दर्जन से भी अधिक मुठभेड़ें की, और कई बेगुनाहों को मौत के घाट उतारा। अपना सबकुछ छोड़कर भी उसने संगठन में वह विश्वास हासिल नहीं कर सका। और आंध्र के नक्सलियों द्वारा प्रताड़ित किया जाने लगा, साथ ही उसपर विद्रोही के आरोप भी लगने लगे थे। पर अपने इस गलत फैसले से अब उसके सामने कोई रास्ता बचा नहीं था। ऐसे में अख़बारों के माध्यम से उसे समर्पण नीति की जानकारी हुई और उसने पुलिस से संपर्क कर आत्मसमर्पण कर दिया। आज रमेश पुलिस की डीआरजी में सामिल होकर नक्सलियों से लोहा ले रहा है। रमेश के अनुसार उसे समर्पण करने के बाद दो लाख रूपए नगद, जमीन और घर भी मिला।
राज्य शासन नक्सलियों के लिए चलाई जाने वाली पुनर्वास नीति को लेकर काफी संवेदनशील है। जिस प्रकार क्षेत्र में नक्सल उन्मूलन अभियान तेज किये गए हैं। उसमे दो पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया है, सॉफ्ट कॉर्नर और हार्ड कॉर्नर। हार्ड कॉर्नर में नक्सलियों से सीधे मुठभेड़ कर उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, अथवा मार दिया जाता है। वहीँ यदि कोई नक्सली समर्पण करना चाहता है तो उसके सारे गुनाहों को माफ़ कर उसका स्वागत किया जाता है। समर्पण करने के बाद सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि समर्पण करने वाले नक्सली के बेहतर भविष्य के लिए उसे पर्याप्त सुविधाएँ मुहैया करवाई जाएँ। वास्तव में रमन सरकार की पुनर्वास नीति ने जंगलों में भटक रहे माओवादियों को आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटने की प्रेरणा दी है। सरकार की इस कारगार नीति के बीच दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां याद आ रही है- कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए है। वाकई में आज सरकार बस्तर की सूरत बदल रही है।