छत्तीसगढ़ गांव प्रधान राज्य है. यहां की 70 प्रतिशत आबादी के जीवन का आधार कृषि है. प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्रामोद्योग विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका है. प्रदेश में ग्रामोद्योग से संबद्ध हाथकरघा, रेशम, हस्तशिल्प, माटीकला और खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की विभिन्न योजनाएं संचालित हो रही है. इन योजनाओं से राज्य के लगभग साढ़े तीन लाख लोगों को रोजगार मिल रहा है. जांजगीर जिला छत्तीसगढ़ का एक ऐसा जिला है, जहां घर-घर में लोग हथकरघा व्यवसाय से जुड़े हैं. वहींं वनांचल बस्तर में रहने वाले आदिवासी हस्त शिल्प व्यवसाय से जुड़े हैं लेकिन कुछ साल पहले इस व्यवसाय से जुड़े लोगों में भारी निराशा थी. इन लोगों को निराशा के उस भंवर से निकालने का काम रमन सरकार द्वारा किया गया है. जिन्होंने इस व्यवसाय को बढ़ावा देने कई ठोस कदम उठाया है. सरकार द्वारा उठाए गए कदम के बाद अब एक बार फिर ये व्यवसाय फलने-फूलने लगा है. आईये देखते हैं कैसे रमन सरकार ने सदियों पुरानी इस कला को फिर से पुनर्जीवित किया-

कपड़ा बुनते ये हाथ… अपनी कला के लिए देश भर में विख्यात हैं. आज इनके ये हाथ दिन-रात चलते-चलते भी नहीं थकते. उनकी इस ऊर्जा की वजह सूबे के मुखिया डॉ रमन सिंह हैं. जिन्होंने इनके उन्नयन के लिए प्रदेश में नीतियां बनाई. उनकी इसी नीति का परिणाम है कि आज हर हाथ को रोजगार है. घर बैठे ये कारीगर राज्य की जरुरतों के साथ ही देश और विदेश की जरुरतों को भी पूरा कर रहे हैं. जांजगीर जिले में हर घर में हथकरघा का काम किया जाता है. यहां पैदा होने वाले बच्चों का खिलौना धागे और बुनने वाली पाटी हुआ करती थी. ये ही नन्हे हाथ बड़े होकर इस देश को हाथों से बने हुए बेशकीमती कोसा के कपड़े तैयार करते थे. लेकिन चंद साल पहले ऐसा नहीं था. लोग अपनी पुश्तैनी इस व्यवसाय को छोड़ रहे थे और नौकरियों की तलाश में अन्य जिलों व राज्यों की ओर रुख कर रहे थे. जो दूसरा व्यवसाय नहीं अपनाना चाह रहे थे, उनकी आंखों से लगातार गिरते आंसू इस बारीक नजर को धुंधला करने में लगे हुए थे. इसकी वजह राज्य अलग होने के बाद इनके इस पुश्तैनी हुनर के लिए प्रदेश में कोई नीति नहीं थी. रमन सरकार की बनाई गई नीति की वजह से एक बार फिर ये व्यवसाय फलने फूलने लगा है. अब महिलाओं को भी रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता वे भी घर पर रहकर काम में हाथ बंटा रही हैं. जिससे की परिवार की आमदनी कई गुना बढ़ गई है.

 

सरकार के ग्रामोद्योग से जिन 3 लाख लोगों को आज रोजगार मुहैया हो रहा है इनमें हाथकरघा, कपड़ा बुनाई से 51 हजार बुनकर, स्कूली बच्चों के गणवेश सिलाई से 6 हजार, ग्रामीण महिलाएं, रेशम कृमि पालन, कोसा उत्पादन एवं धागाकरण के 80 हजार हितग्राहियों सहित शिल्पकला, माटी कला, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड की योजनाओं में काम करने वाले करीब 2 लाख लोग शामिल हैं. शासकीय वस्त्र प्रदाय योजना के तहत विभिन्न विभागों के लिए हाथकरघा कपड़ों और स्कूली बच्चों के लिए गणवेश कपड़ों के उत्पादन से यहां के बुनकरों को नियमित रुप से रोजगार मिल रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वदेशी माल के उत्पादन और उसके उपयोग पर विशेष जोर दे रहे हैं. इसके लिए 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन शुरु होने के दिन को देश में 7 अगस्त 2015 से राष्ट्रीय हाथकरघा दिवस के रुप में मनाया जा रहा है. छत्तीसगढ़ सरकार बुनकरों और ग्रामोद्योग से जुड़े लोगों के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है.

ग्रामोद्योग विभाग से सम्बद्ध सभी घटकों-हाथकरघा, रेशम, हस्तशिल्प, माटीकला और ग्रामोद्योग बोर्ड के हितग्राहियों के समग्र विकास के लिए पंचवर्षीय ग्रामोद्योग नीति 2016-2021 तैयार की गई है. नीति के तहत ग्रामोद्योग से जुड़े सभी व्यवसायों के माध्यम से राज्य में 7 लाख लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य है. नीति के क्रियान्वयन से आगामी पांच वर्षों में शिल्पियों एवं कारीगरों विशेषकर कमजोर वर्गों और महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा. वहीं सरकार अब समितियों के माध्यम से लोगों को कच्चा माल सहित सहायता प्रदान कर रही है. राज्य सरकार द्वारा इस कला को बचाने के लिए जो कार्य किए गए हैं उसे समझने के लिए आईये इस ग्राफिक्स पर नजर डालते हैं-

खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड

परिवार मूलक योजना के तहत 2003 में 2 हजार 571 ग्रामोद्योग इकाईयों के लिए 2.17 करोड़ रुपए का अनुदान सहायता और 5 हजार 145 लोगों को रोजगार मिला था जो वर्ष 2017 तक बढ़कर 34 हजार 720 ग्रामोद्योग इकाईयों के लिए 44.14 करोड़ रुपए का अनुदान और 79 हजार 737 लोगों को दिया गया रोजगार मिल रहा है.

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत वर्ष 2003 में 1 हजार 601 इकाईयों के लिए 17.98 करोड़ रुपए का अनुदान सहायता और 17 हजार 627 लोगों को रोजगार मिला था जो वर्ष 2017 तक बढ़कर 6 हजार 629 इकाईयों के लिए 125.32 करोड़ रुपए का अनुदान सहायता और 81 हजार 514 लोगों को रोजगार मिल रहा है.

मुख्यमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम- परिवार मूलक योजना को संशोधित कर मुख्यमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम योजना 15 अगस्त 2017 से प्रारंभ किया गया. इस योजना में परियोजना लागत रुपए 1 लाख से बढ़कर 3 लाख तक किया गया है तथा 35 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान किया गया है. आगामी 5 वर्षों में 3 हजार 664 ईकाई स्थापित कर 7 हजार 328 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा. जिसमें 37 करोड़ 17 लाख का अनुदान वितरण कर 120 करोड़ ऋण उपलब्ध कराया जाएगा.

प्रदेश का कोसा उद्योग आज अपनी पहचान के लिए मोहताज नहीं है. देश के साथ ही विदेशों में भी कोसा सिल्क के बने कपड़ों की काफी डिमांड है. सरकार के रेशम प्रभाग द्वारा कोसा विकास के तहत कोसा खाद्य पौधें एवं प्राकृतिक वन क्षेत्रों में साजा, कहुआ, सेन्हा, धौवड़ा के वृक्षों पर पालित डाबा टसर ककून का उत्पादन किया जा रहा है. इसी तरह साल, साजा, सेन्हा, धौड़ा, बेर आदि के वृक्षों पर प्राकृतिक कोसा की प्रजाति रैली, लरिया एवं बरफ कोसा का उत्पादन किया जा रहा है.

आईये देखते हैं सरकार के रेशम प्रभाग द्वारा किये जा रहे कार्य से क्या फायदा पहुंचा है-

  • राज्य में टसर कोसा का उत्पादन 555 करोड़ नग से बढ़कर 22.50 करोड़ नग हो गया है.
  • सिल्क उत्पादन 65 मीट्रिक टन से बढ़कर68 हजार 501 किलोग्राम हो गया है.
  • रेशम प्रभाग की विभिन्न योजनाओं से लगभग 80 हजार लोग लाभान्वित हो रहे हैं.
  • टसर रेशम विकास एवं विस्तार योजना के तहत कोसा उत्पादन के लिए 13 हजार 779 हेक्टेयर क्षेत्र में विभागीय परियोजना के साथ ही प्राकृतिक वन खण्डों का उपयोग किया जा रहा है.

हाथकरघा प्रभाग

  • छत्तीसगढ़ में कार्यशील बुनकर सहकारी समितियों की संख्या 111 से बढ़कर 230 हो गई है.
  • हाथकरघों की संख्या 7040 से बढ़कर 16 हजार 667 हो गई है.
  • हाथकरघा कपड़ा बुनाई से रोजगार 20 हजार 400 से बढ़कर 51 हजार 235 हो गई है.
  • बुनकरों की बुनाई पारिश्रमिक वितरण 1.78 से बढ़कर 49.99 करोड़ रुपए हो गई है.

राजनांदगांव जिले के छुरिया विकासखण्ड में आमगांव में 4 करोड़ 5 लाख रुपए की लागत से कंबल प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की गई है. इससे कंबल बुनकरों को रोजगार मिल रहा है. बुनकरों द्वारा 2.50 लाख नग कंबल प्रोसेस कर विभिन्न विभागों में आपूर्ति की गई है.

भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय हाथकरघा विकास कार्यक्रम के तहत राज्य के 9 विकासखण्डों-डभरा, बम्हनीडीह, नवागढ़ एवं बलौदा जिला जांजगीर-चांपा, छुरिया जिला राजनांदगांव, बालोद जिला, करतला जिला कोरबा, कुरुद जिला धमतरी और बिलाईगढ़ जिला बलौदाबाजार में हाथकरघा कलस्टर संचालित है. इस कलस्टर के जरिए उत्कृष्ट डिजाइनरों द्वारा 1 हजार 620 बुनकरों को बुनाई, रंगाई और डिजाईन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. अब युवा प्रशिक्षण लेकर इस क्षेत्र में भी अपना कैरियर बना रहे हैं.

राज्य सरकार द्वारा इस कला को प्रोत्साहित करने के लिए जो कदम उठाए गए उनमें ऐसे बुनकरों को राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किये जाने का निर्णय लिया गया. सरकार द्वारा बुनाई कला को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल सर्वश्रेष्ठ दो बुनकरों को एक-एक लाख रुपए का बिसाहूदास महंत पुरस्कार और दो बुनकरों को दीनदयाल हाथकरघा पुरस्कार दिया जाता है. इसी तरह हर साल सर्वश्रेष्ठ आठ हस्तशिल्पियों को 25 हजार रुपए के पुरस्कार दिया जाता है. अब तक 26 बुनकरों, 84 शिल्पियों और 3 हजार 383 प्रतिभावान बच्चों को पुरस्कृत किया जा चुका है. सरकार के इस कदम की वजह से बुनकरों में उत्साह का माहौल है और जो लोग इस व्यवसाय से दूर होते जा रहे थे वे लोग फिर से अपनी पीढ़ियों को वापस इस व्यवसाय में लेकर आ रहे हैं.

छत्तीसगढ़ सरकार की ओर लगातार यह प्रयास किया जा रहा प्रदेश का हथकरगा उद्योग को विकास करते चले जाए. इसका फायदा भी प्रदेश के बुनकरों का हुआ. आज जांजगीर-चांपा जिला इसमें नंबर वन है. जांजगीर के बुनकरों की ओर से बनाएं कोसा कपड़ों की मांग दुनिया भर में है. खादी ग्रामोद्योग के जरिए प्रदेश के हथकरघा उद्योग से जो लोग पहले कहीं ज्यादा अच्छी स्थिति में है. 

सरकार के ग्रामोद्योग से जिन 3 लाख लोगों को आज रोजगार मुहैया हो रहा है इनमें हाथकरघा, कपड़ा बुनाई से 51 हजार बुनकर, स्कूली बच्चों के गणवेश सिलाई से 6 हजार, ग्रामीण महिलाएं, रेशम कृमि पालन, कोसा उत्पादन एवं धागाकरण के 80 हजार हितग्राहियों सहित शिल्पकला, माटी कला, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड की योजनाओं में काम करने वाले करीब 2 लाख लोग शामिल हैं. शासकीय वस्त्र प्रदाय योजना के तहत विभिन्न विभागों के लिए हाथकरघा कपड़ों और स्कूली बच्चों के लिए गणवेश कपड़ों के उत्पादन से यहां के बुनकरों को नियमित रुप से रोजगार मिल रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वदेशी माल के उत्पादन और उसके उपयोग पर विशेष जोर दे रहे हैं. इसके लिए 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन शुरु होने के दिन को देश में 7अगस्त 2015 से राष्ट्रीय हाथकरघा दिवस के रुप में मनाया जा रहा है. छत्तीसगढ़ सरकार बुनकरों और ग्रामोद्योग से जुड़े लोगों के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए प्रतिबद्ध है.

खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड

परिवार मूलक योजना के तहत 2003 में 2 हजार 571 ग्रामोद्योग इकाईयों के लिए 2.17 करोड़ रुपए का अनुदान सहायता और 5 हजार 145 लोगों को रोजगार मिला था जो वर्ष 2017 तक बढ़कर 34 हजार 720 ग्रामोद्योग इकाईयों के लिए 44.14 करोड़ रुपए का अनुदान और 79 हजार 737 लोगों को दिया गया रोजगार मिल रहा है.

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के तहत वर्ष 2003 में 1 हजार 601 इकाईयों के लिए 17.98 करोड़ रुपए का अनुदान सहायता और 17 हजार 627 लोगों को रोजगार मिला था जो वर्ष 2017 तक बढ़कर 6 हजार 629 इकाईयों के लिए 125.32 करोड़ रुपए का अनुदान सहायता और 81 हजार 514 लोगों को रोजगार मिल रहा है.

मुख्यमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम- परिवार मूलक योजना को संशोधित कर मुख्यमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम योजना 15 अगस्त 2017 से प्रारंभ किया गया. इस योजना में परियोजना लागत रुपए 1 लाख से बढ़कर 3 लाख तक किया गया है तथा 35प्रतिशत अनुदान का प्रावधान किया गया है. आगामी 5 वर्षों में 3 हजार 664 ईकाई स्थापित कर 7 हजार 328 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा. जिसमें 37 करोड़ 17 लाख का अनुदान वितरण कर 120 करोड़ ऋण उपलब्ध कराया जाएगा.

भारत सरकार वस्त्र मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय हाथकरघा विकास कार्यक्रम के तहत राज्य के 9 विकासखण्डों-डभरा, बम्हनीडीह, नवागढ़ एवं बलौदा जिला जांजगीर-चांपा, छुरिया जिला राजनांदगांव, बालोद जिला, करतला जिला कोरबा, कुरुद जिला धमतरी और बिलाईगढ़ जिला बलौदाबाजार में हाथकरघा कलस्टर संचालित है. इस कलस्टर के जरिए उत्कृष्ट डिजाइनरों द्वारा 1 हजार 620 बुनकरों को बुनाई, रंगाई और डिजाईन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. अब युवा प्रशिक्षण लेकर इस क्षेत्र में भी अपना कैरियर बना रहे हैं.


राज्य सरकार द्वारा इस कला को प्रोत्साहित करने के लिए जो कदम उठाए गए उनमें ऐसे बुनकरों को राज्य सरकार द्वारा पुरस्कृत किये जाने का निर्णय लिया गया. सरकार द्वारा बुनाई कला को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल सर्वश्रेष्ठ दो बुनकरों को एक-एक लाख रुपए का बिसाहूदास महंत पुरस्कार और दो बुनकरों को दीनदयाल हाथकरघा पुरस्कार दिया जाता है. इसी तरह हर साल सर्वश्रेष्ठ आठ हस्तशिल्पियों को 25 हजार रुपए के पुरस्कार दिया जाता है. अब तक 26 बुनकरों, 84 शिल्पियों और3 हजार 383 प्रतिभावान बच्चों को पुरस्कृत किया जा चुका है. सरकार के इस कदम की वजह से बुनकरों में उत्साह का माहौल है और जो लोग इस व्यवसाय से दूर होते जा रहे थे वे लोग फिर से अपनी पीढ़ियों को वापस इस व्यवसाय में लेकर आ रहे हैं.

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