बीजापुर. जिले में चलाये जा रहे नक्सल विरोधी अभियान के तहत डीआरजी ने बड़ी कार्रवाई की है. दरअसल शनिवार को डीआरजी टीम ने बेचापाल और इंड्रीपाल में गश्त कर सर्चिंग ऑपरेशन चलाया. इसी कड़ी में टीम ने मिरतुर थाना क्षेत्रांर्गत बेचापाल और इंड्रीपाल के जंगल में एक नक्सली स्मारक को ध्वस्त कर दिया.

क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई लगातार जारी है. इसी तारतम्य में गश्त पर निकली पुलिस पार्टी ने जंगलो में नक्सलियों द्वारा अवैध तरीके से बनाए गए स्मारक को ध्वस्त कर दिया.

नक्सलियों ने जारी किया प्रेसनोट

घटना को लेकर दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रवक्ता विकल्प ने प्रेसनोट जारी किया है. जिसमें डीआरजी टीम पर दंडकारण्य के दक्षिण बस्तर में एक बार फिर हवाई फायरिंग करने का आरोप लगाया गया है. प्रेसनोट में विकल्प ने तस्वीर भी जारी की है. पुलिस, अर्ध-सैनिक और सैन्य बलों द्वारा संयुक्त रूप से हमला करने का आरोप लगाया है.

50 से ज्यादा बम गिराने का आरोप

प्रेस नोट में कहा गया है कि दंडकारण्य स्पेशल जोनल इलाकें में 14-15 अप्रैल की दरमियानी रात को दक्षिण बस्तर के बोटेम, रासम, एरीम, मेट्टागुडेम, साकिलेर, मङपा दुलेड, कन्नेमरका, पोट्टेमंगुम, बोत्तम आदि गांवों और जंगलों को निशाना बनाकर रात 1 बजे से 2 बजे तक लगातार सैनिक ड्रोनों से फायरिंग करने का आरोप लगाया है. अलग-अलग गांवों के जंगलों में कई जगह 50 से ज्यादा बम गिराने का आरोप नक्सलियों ने लगाया है.

आईजी ने आरोपों को किया खारिज

हालांकि नक्सलियों की जोनल कमेटी के इन आरोपों को आईजी सुंदरराज पी. ने खारिज करते हुए इसे जनता को दिग्भ्रमित करना बताया. उन्होंने कहा कि माओवादियों को झूठे प्रचार-प्रसार और क्षेत्र के निर्दोष नागरिकों को प्रताड़ित करना, वनांचल क्षेत्र की जनता को मूलभूत सुविधा से वंचित रखना इत्यादि गैर मानवीय और विकास विरोधी हरकतों को छोड़कर जमीनी हकीकत को जानन और समझने की जरुरत है. क्रांतिकारी जन आंदोलन की आड़ में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद विगत 22 वर्षों में बस्तर क्षेत्र में 1700 से अधिक निर्दोष ग्रामीणों (जिनमें कई महिला, बच्चे एवं बुजुर्ग भी शामिल हैं) की हत्या और 1100 से ज्यादा बार आईईडी विस्फोट करके बस्तर की हरित धरा को लाल आतंक की छाया में तब्दील किया गया.

ये नक्सलियों की बौखलाहट- आईजी

आईजी ने कहा कि ये सब माओवादी आंदोलन का असली और भयानक चेहरा है. माओवादी बसवराजू, सुजाता, गणेश उईके, रामचन्द्र रेड्डी, चन्द्रन्ना जैसे बाहरी माओवादी नेताओं की साजिश का शिकार होकर खुद अपने आदिवासी समाज के पैर में कुल्हाड़ी मार रहें हैं. स्थानीय माओवादी कैडरों को ये सब हकीकत को समझाना जरूरी है.