विधि अग्निहोत्री, रायपुर। दंतेवाड़ा विधानसभा हमेंशा से एक एेसी सीट रही है जहां जनता हर बार सरकार बदलती है. यहां कभी सीपीआई, कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी की सरकार बनी है. इस सीट पर अनिश्चितता के हालात बने रहते है. इस बार दंतेवाड़ा सीट पर कांग्रेस की टिकट को लेकर कर्मा में परिवार का काफी हाई प्रोफाइल ड्रामा चला है. कांग्रेस में टिकट को लेकर ऐसी स्थिति बनी की माँ-बेटे चुनावी मैदान में आमने-सामने हो गए थे. मतलब कांग्रेस प्रत्याशी देवती कर्मा के खिलाफ छविन्द्र कर्मा ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर नामांकन कर दिया था. लेकिन नाम वापसी के अंतिम छविन्द्र ने अपनी मां के पक्ष में नामांकन वापस ले लिया.  दंतेवाड़ा की सीट को बस्तर टाइगर कहे जाने वाले स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा की सीट मानी जाती है. लेकिन इस सीट पर सीपीआई भी अपनी जीत हासिल करती है. हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 2008 में यहां से भाजपा का भी कमल खिला था. लेकिन 2013 में देवती कर्मा के पंजे में दंतेवाड़ा वापस कांग्रेस के पास आ गई. बीते तीन चुनाव में यहां से दो बार कांग्रेस को और एक बार भाजपा को जीत मिली है. कांग्रेस ने इस बार फिर अपने विधायक देवती कर्मा पर विश्वास जताया. वहीं भाजपा ने 2013 का चुनाव हारने वाले भीमा मंडावी को फिर से मैदान में उतारा है. जबकि भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच सीपीआई ने पूर्व विधायक नंदराम सोढ़ी पर दांव लगाया है. कोंटा की तरह दंतेवाड़ा में भी त्रिकोणीय मुकाबला है. क्योंकि यहां भी जनता कांग्रेस का समर्थन सीपीआई को है.

2013 के चुनाव परिणाम
देवती कर्मा(कांग्रेस) –                    41417 मत
भीमा मंडावी(भाजपा)-                  35430 मत
बोमड़ा राम कवासी(सीपीआई)-    12954 मत

मतदाताओं के लिए जरूरी जानकारी जो उन्हें अपने प्रत्याशियों के बारे में जाननी चाहिए

1. देवती कर्मा– देवती कर्मा कांग्रेस की प्रत्याशी हैं. 2013 के विधान सभा चुनाव में देवती कर्मा ने कांग्रेस को दंतेवाड़ा में जीत दिलाई थी. देवती कर्मा स्वर्गीय महेन्द्र कर्मा की पत्नी है. बस्तर के भीतर में एक बड़े आदिवासी राजनेता के परिवार से और विधायक होने के बाद देवती कर्मा एक आम आदिवासी महिला की तरह ही रहती है. मतलब वह अपनी सादगी के लिए जानी जाती है.  चर्चा है कि देवती कर्मा की आदिवासी महिलाओं के बीच पकड़ मजबूत है और जनता के बीच लोकप्रियता भी अच्छी है. सरल और मृदु भाषी व्यक्तित्व के चलते देवती कर्मा जनता के बीच एक अच्छी छवि रखती हैं.

शैक्षणिक योग्यता- निरंक

2. भीमाराम मंडावी– भीमाराम मंडावी बीजेपी के प्रत्याशी हैं और 2008 का विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करा चुके हैं. भीमाराम मंडावी बीजेपी के पहले प्रत्याशी थे जिन्होने दंतेवाड़ा में जीत हासिल की थी. इसलिए इस बार भी पार्टी ने भीमाराम को टिकट देकर सेफ साइड में चलना सही समझा.

शैक्षणिक योग्यता- बीए

3. नंदराम सोरी– नंदराम सोरी दंतेवाड़ा विधानसभा सीट पर सीपीआई के बड़े और नामी उम्मीदवार हैं. वह अविभाजित मध्यप्रदेश में दो बार विधायक रह चुके हैं. इसके साथ ही 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में मिले वोटों के आधार पर सीपीआर्ई दूसरे नंबर पर रही है. बताया नंदराम सोरी अंदरुनी इलाकों में अच्छी पकड़ रखते हैं.

शैक्षणिक योग्यता- /-

अब जरा सोचिए कि अगर छबिंद्र कर्मा अपनी मां के खिलाफ चुनाव लड़ते तो क्या होता समीकरण

छबिंद्र अगर दंतेवाडा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ते तो निश्चित तौर पर इसका खामियाजा कांग्रेस को भोगना पड़ता. देवती कर्मा को पड़ने वाले वोटों में से भारी तादात में वोट कट कर छबिंद्र कर्मा को मिलते और कांग्रेस को अपनी ही सीट में हार का सामना करना पड़ता. मां बेटे की इस लड़ाई का सीधा फायदा होता बीजेपी को. अगर छबिंद्र को नहीं मनाया जाता तो बड़ी मात्रा में वोटों का बंटवारा होता और बीजेपी के जीतने की संभावना बढ़ जाती. इसलिए समय रहते ही कांग्रेस ने छबिंद्र को मना कर चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी

बीजेपी- दंतेवाड़ा सीट बीजेपी का गढ़ नहीं रहा है सिर्फ 2008 के चुनाव में ही बीजेपी ने यहां जीत का स्वाद चखा था. बीजेपी के अंदर भी इस बार फूट के आसार साफ दिख रहे हैं बीजेपी के ही चैतराम अटामी टिकट के लिए एक प्रबल दावेदार माने जा रहे थे. लेकिन आला कमान से टिकट नहीं मिलने की वजह से वो पार्टी से खफा नज़र आ रहे हैं. चैतराम ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अपना नामांकन भरा था जिसे बाद में उन्होने समझाइश के बाद वापस ले लिया. लेकिन माना जा रहा है कि इस फूट का असर वोटों पर जरूर दिखेगा. इस चुनावी घमासान में जनता का मूड देखकर लगता है कि बीजेपी इस बार यहां कमजोर पड़ रही है.

सीपीआई– 1993 से 1998 में दंतेवाडा विधानसभा सीट पर सीपीआई का दबदबा था अब भी दंतेवाड़ा में सीपीआई मजबूत स्थिति में है सीपीआई यहां दूसरे नंबर की बड़ी पार्टी है. ग्रामीण अंचल के आज भी अधिकतर वोट सीपीआई को ही जाते हैं साथ ही सीपीआई के पास एक बड़ा वोट बैंक है और वो है मजदूर दल. सीपीआई को बड़ी संख्या में मजदूर संगठनों का वोट मिलता है. इस बार माना जा रहा है कि कांग्रेस और सीपीआई के बीच ही कड़ी टक्कर होने वाली है. अंदरूनी इलाकों में सीपीआई को भारी तादात में वोट मिलते है जो कांग्रेस को जीतने से रोक सकते हैं.

बसपा और आम आदमी पार्टी-  बसपा और आम आदमी पार्टी पर अगर नज़र डाले तो केशव नेताम को बसपा और बल्लूराम भवानी को आम आदमी पार्टी से टिकट दिया गया है. हांलाकि ये बिल्कुल नए चेहरे हैं जिनसे जनता भी ज्यादा मुख़ातिब नहीं है. इसलिए इनके जीतने की संभावना ना के बराबर है लेकिन ये वोट काटने का काम जरूर कर सकते हैं.

इन तमाम सियासी समीकरणों के बीच नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा सीट पर नजर सिर्फ प्रदेश की नहीं देश भर की है. क्या त्रिकोणीय मुकाबले के बीच कांग्रेस अपनी जीत बरकरार रख पाने में कामयाब रह पाएगी या एक बार फिर भाजपा का कमल रमन के विकास के साथ यह खिलेगा या अजीत जोगी के समर्थन से सीपीआई का खाता खुल पाएगा ?