छत्तीसगढ़ में कोयला आधारित पावर प्लांट के प्रदूषण मानकों को पूरा करने में 90 फीसदी पावर प्लांट फेल हो गए हैं। हाईकोर्ट में पर्यावरण संरक्षण मंडल और श्रम विभाग की ओर से जानकारी दी गई कि राज्य में 83 पावर प्लांट में केवल 13 ही प्रदूषण रोकने के सभी नियमों का पालन कर रहे हैं। कोर्ट में श्रम विभाग ने हलफनामे में बताया कि 83 में से केवल 75 इकाइयां चालू हैं। इन 75 इकाइयों में से 62 के खिलाफ अभियोजन/मुकदमा दर्ज किया गया है, केवल 13 इकाइयां वैधानिक निर्देशों का पालन कर रही हैं।
श्रम विभाग ने बताया कि वर्ष 2014 में 71, वर्ष 2015 में 42 तथा वर्ष 2016 में 51 पावर प्लांट का निरीक्षण किया गया। इसमें कुछ उद्योगों ने प्रदूषण के कारण खराब हुए श्रमिकों के स्वास्थ्य का मेडिकल चेकअप कराया गया है। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि वर्ष 2014 में 75 निरीक्षण किए गए, लेकिन अगले दो वर्षों में निरीक्षण की संख्या में कमी आई है।
यह भी पता चलता है कि सभी प्लांट का निरीक्षण और सत्यापन नहीं किया गया है। श्रम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सभी कोयला आधारित ताप बिजली परियोजनाओं में काम करने वाले कर्मचारियों, मजदूरों का स्वास्थ्य जांच कराना अनिवार्य है।
छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुम्बई और खड़गपुर से रायपुर, कोरबा, रायगढ़ एवं जांजगीर चाम्पा क्षेत्र की भार सहन क्षमता की गणना करा रहा है। उच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल को निर्देशित किया है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई और खडगपुर को भार सहन क्षमता की गणना के साथ क्षेत्र में कोयले पर आधारित ताप बिजली घरों से होने वाले प्रदूषण का भी अध्ययन कराएं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसे उपायों का भी अध्ययन किया जाए, जिससे बिजली उत्पादन कि क्षमता को कम किए बगैर प्रदूषण को कम किया जा सके।
बिलासपुर उच्च न्यायालय ने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि परियोजनाएं 30 अप्रैल 2017 तक कानून की सभी आवश्यकताओं और वैधानिक निर्देशों का अनुपालन करें। अगर नहीं करती हैं तो न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को बंद करने का आदेश जारी करने में संकोच नहीं करेगा।