रायपुर। भू-राजस्व संशोधन अधिनियम को सरकार ने भले ही वापस ले लिया हो, लेकिन आदिवासी समाज की नाराजगी फिर दूर नहीं हुई है. आदिवासी समाज के सामने अभी भी बेदखली और जल-जंगल-जमीन की चुनौती है. विस्थापन के संकट और पुनर्वास के बीच आदिवासी समाज आज भी संघर्षरत् है. सर्व आदिवासी समाज का आरोप है कि सरकार ने उन्हें बीमार बनाने काम किया. समाज के अध्यक्ष बीपीएस नेताम ने मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय के उस बयान पर भी कड़ी आपत्ति जाहिर की जिसमें मंत्री जी कहा था, दवाई रिेएक्शन करे तो उसे वापस ले लिया जाना चाहिए. इस बयान पर नेताम मंत्री की आलोचना करते हुए कहा, कि ऐसी बात थी तो बीमार ही क्यों होने दिया गया.
यहीं नहीं नेताम यह भी आरोप लगाया कि ब्रिटिशकाल से ही आदिवासियों की जमीने हड़पने का सिलसिला चलते रहा है वो आज तक जारी है. सार्वजनिक हित के नाम पर आदिवासियों के जमीने अधिग्रहित की जाती रही है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि गंगरेल बांध के प्राभावित आदिवासी आज भी पुनर्वास के लिए संघर्षरत् हैं. नेताम ने यह भी आरोप लगाया कि सोनाखान की जमीन आदिवासियों से सरकार ने अधिग्रहित की ओर उसे उद्योगपति को बेच दिया.
मतलब सर्व आदिवासी समाज के सामने फिलहार बेदखली की चुनौती सबसे बड़ी है. इसे लेकर समाज के भीतर मंथन-चिंतन जारी है. 13 और 14 जवनरी को समाज के विभिन्न विषयों पर राष्ट्रीय स्तर विमर्श जारी है. फरवरी महीने भी आदिवासी समाज अपने हितों के लेकर संघर्ष रणनीति तय करेगा. फिलहाल संघर्ष जारी रहेगा.