रायपुर- ऑक्सफैम इंडिया, अमन मूवमेंट, पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय एवं प्रेस क्लब रायपुर के सयुंक्त तत्वावधान मे जेंडर मानक, लिंग आधारित हिंसा तथा मीडिया की भूमिका पर विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन गुरुवार को रायपुर प्रेस क्लब में किया गया. ऑक्सफेम इंडिया ने हाल मे ही प्रिंट मीडिया एवं सोशल मीडिया मे प्रकाशित 237 खबरों-समाचारों का अध्ययन किया. इस अध्ययन में पाया गया कि वर्तमान समय में जेंडर से संबन्धित खबरों को पूर्व की अपेक्षा ज्यादा जगह मिल रही हैं, किन्तु जेंडर मानक एवं लिंग आधारित हिंसा आदि विषयों को लेकर मीडिया रेपोर्टिंग आम जनमानस की समझ एवं व्यवहार को प्रभावित करने मे बहुत सफल नहीं हो पाई है.
चूंकि प्रिंट एवं सोशल मीडिया की भूमिका लिंग आधारित हिंसा के विरुद्ध लोगों के नजरिए को बदलने के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए पत्रकारों के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला में जेंडर मानक, लिंग आधारित हिंसा के मामलों की रिपोर्टिंग के दौरान एक पत्रकार को क्या करना चाहिए एवं क्या नहीं करना चाहिए? विषय पर विस्तार से चर्चा की गई. कार्यशाला में शहर के युवा पत्रकारों के साथ-साथ प्रबुद्ध एवं अनुभवी पत्रकारों ने भी हिस्सा लिया.
विशेष संवेदनशीलता और सावधानी बरतने की आवश्यकता
कार्यशाला के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार ललित सुरजन ने कहा कि एक पत्रकार को सदैव जागरूक एवं अद्यतन रहना चाहिए. उन्होंने प्रख्यात कथाकार शरतचंद्र के उपन्यास श्रीकांत की मुख्य पात्र राजलक्ष्मी द्वारा कहे गए वाक्य का हवाला देते हुए कहा कि एक महिला किन किन स्थितियों से गुजरती है, वह स्वयं उस महिला से बेहतर कोई अन्य नहीं जान सकता. अतः महिला विषयों पर रिपोर्टिंग करते हुए विशेष संवेदनशीलता और सावधानी बरतने की आवश्यकता है.
पीड़िता की पहचान उजागर नहीं होना चाहिए
कार्यशाला की प्रशिक्षक राखी घोष ने कहा कि ऐसा समझा जाता है कि महिलाओं के विरुद्ध हुई किसी भी प्रकार की हिंसा की रिपोर्ट करते समय पत्रकारों को सभी प्रकार की जानकारी इकट्ठा कर सूचनाओं को प्रसारित करना चाहिए. परंतु हम में से बहुत कम लोग यह जानते हैं कि जानकारी कितना देना चाहिए और कितना नहीं. महिला मुद्दों की रिपोर्टिंग के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी सूरत में उसकी पहचान उजागर न होने पाए. यह कानून और नैतिकता के विरुद्ध है. एक पत्रकार होने के नाते हमें सभी पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए एवं आवश्यक सभी जानकारी एकत्र करनी चाहिए, परंतु लिंग आधारित हिंसा के विषय मे लिखते समय केवल घटना की वास्तविकता को लिखना चाहिए. अपनी ओर से कोई राय नहीं देनी चाहिए.
पीड़ित की पहचान, पारिवारिक पृष्ठभूमि और उनकी अन्य जानकारी की व्याख्या नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि पीड़ित के लिए ‘शिकार’ अथवा किसी अन्य शब्द का प्रयोग करने की अपेक्षा ‘पीड़ित’ शब्द का प्रयोग करें एवं पीड़िता के लिए ‘ऐसे व्यक्ति की विवाहित पत्नी’ या ‘तलाकशुदा’ जैसे परिचय सम्बोधन कभी नहीं करना चाहिए. पीड़िता के कथन को महत्व देते हुए उन्होंने कहा कि यदि पीड़ित स्वयं साक्षात्कार देने की स्थिति में है, तो पीड़ित का साक्षात्कार लिया जाना चाहिए. परिवार की किसी महिला सदस्य का भी का साक्षात्कार लिया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं के विषय समाहित हैं. पत्रकारों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह उनके सभी पक्षों पर बात करें.
रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष दामू आम्बेडरे ने कहा कि वह ऐसी गतिविधियां जो पत्रकारों की क्षमता का विकास करतीं हों, का वह समर्थन करते हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के मुद्दों पर सावधानी पूर्वक कलम चलानी चाहिए. रायपुर प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ने कहा कि महिलाओं के मुद्दों पर लिखते समय पत्रकारों को महिलाओं से संबंधित कानूनों की भी जानकारी होना बेहद जरूरी है. तभी आप एक अच्छी और विश्वसनीय रिपोर्ट बना सकते हैं. उन्होंने आगे भी इस विषय पर चर्चा जारी रखने की बात कही. कार्यक्रम मे ऑक्सफेम इंडिया से उर्मिमाला सेनगुप्ता एवं अमन मूवमेंट से संदीप यादव एवं मनीषा तिवारी उपस्थित रहीं.