रूचिर गर्ग। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने टेलीफोन टैपिंग पर एक बयान दिया तो बड़ी हलचल मची हुई है। बयान यह है कि पिछली सरकार में चीफ सेक्रेटरी भी वॉट्सऐप कॉल पर बात किया करते थे क्योंकि उन्हें भी फ़ोन टैपिंग का डर था ! आज के विपक्ष को यह बयान नागवार गुज़र रहा है। दिलचस्प है कि क्या किसी को प्रदेश के मुख्यमंत्री का यह कहना भी बुरा लग सकता है कि चिंता ना करें कांग्रेस की सरकार में टेलीफोन टैपिंग नहीं होगी ? और वो कौन हैं जो इस सच्चाई से मुंह छुपाना चाहते हैं कि पिछली सरकार बेशर्मी से लोगों की निजता में सेंध लगा रही थी ? वो सभी इस टेलीफोन सेंधमारी का ही शिकार लोग थे !

इंटरनेट कॉलिंग पिछले वर्षों में कितनी लोकप्रिय हुई यह किससे छिपा है ? आज दो-दो वरिष्ठ आईपीएस अवैध फोन टैपिंग के आरोपी बने हैं। किसी सरकार में कोई आला अधिकारी यदि ऐसा कर रहा हो तो हमें शर्मिंदा होना चाहिए और इस बात का स्वागत करना चाहिए कि नए मुख्यमंत्री इस बात का भरोसा दिला रहे हैं कि सरकार फोन टैपिंग से नहीं चलेगी ! पिछले कुछ वर्षों में छत्तीसगढ़ में गलियों और चौराहों पर फ़ोन टैपिंग की चर्चा होती थी इसे कौन नहीं जान रहा है ? नेता,मंत्री,छोटे-बड़े अधिकारियों से लेकर मीडिया कर्मियों तक इंटरनेट कॉल पर ही बात करना पसंद करते थे। मंत्रालय में घूमते हुए बड़े-बड़े अफसरों के हाथों में सात सौ , आठ सौ या हज़ार-डेढ़ हजार के फोन दिखाई देते थे, क्योंकि स्मार्ट फ़ोन पर बात करना सुरक्षित नहीं था. क्योंकि आम धारणा यही थी कि शशशश …कोई सुन रहा है !

उसी दौरान राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार ने जो बताया था वो किसी को रोचक लग सकता है लेकिन दरअसल तकलीफदेह था। उन्होंने बताया था कि जब भी उन्हें किसी से गोपनीय बात करनी होती थी तो वो अपने दोनों स्मार्ट फोन बंद कर के आफिस में छोड़ जाते थे, फिर आफिस से दो-चार किलोमीटर दूर जा कर साधारण फ़ोन से या किसी ऐसे नम्बर से , जो उन्होंने सार्वजनिक न किया हो ,बात करते थे ! एक वरिष्ठ पत्रकार को इतनी सतर्कता सिर्फ इसलिए बरतनी पड़ती थी क्योंकि उन्हें खबर थी कि टेलीफोन टैपिंग से लेकर टावर लोक्शन तक ट्रैक करने का धंधा तब अवैध तरीके से एक महकमे के चंद अफसर किया करते थे ! दिल्ली से प्रकाशित एक अँगरेज़ी दैनिक के संवाददाता का अनुभव था कि वो जब भी रिपोर्टिंग के लिए बस्तर की तरफ जाते थे तो पुलिस का एक आला अफसर उन्हें फ़ोन कर बता देता था कि उनकी लोकेशन कहाँ है !ऐसे ढेरों अनुभव पत्रकार ,मंत्री,अफसर,अधिवक्ता,एक्टिविस्ट्स ,व्यापारी-उद्योगपति और यहां तक कि न्यायपालिका से जुड़े लोगों के थे और यह सब बाज़ार में सुनाई देते थे । लगता था कि हम ऐसे लोकतंत्र का हिस्सा हैं जो सहमा हुआ है । लगता था जैसे वो एक ऐसा लोकतंत्र था जिसे अवैध रूप से संचालित टेलीफोन मशीनें नियंत्रित कर रही थीं। हर कोई जानता था कि विभिन्न तरह की राज्य प्रायोजित प्रताड़नाओं का एक बड़ा हथियार टेलीफोन टैपिंग था।

तब नौकरशाही से भी विरोध की उम्मीद थी लेकिन मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह मालूम है कि तत्कालीन डीजीपी # Vishwa Ranjan ji और एकाध और अफसर को छोड़ कर किसी ने इस गोरखधंधे को रोकने की कोशिश भी नहीं की। बाकी सब डरे हुए थे। बाकी सब मानो एक मंडली के अधीन किसी राजतंत्र का हिस्सा थे। तब मंत्री भी ऐसे ही राजतंत्र में काम कर रहे थे। इस शहर का शायद हर पत्रकार , हर नेता और शायद हर अधिवक्ता जानता है कि तब कौन-कौन से मंत्री फ़ोन टैपिंग का शिकार रहे होंगे। लेकिन मंत्रियों की स्थिति इतनी कमज़ोर थी कि रायपुर से लेकर दिल्ली तक कोई सुनवाई नहीं थी ! इस चुनाव में एक पार्टी को यूं ही अपने लोगों के आक्रोश को झेलना नहीं पड़ा था !

दुर्भाग्य तो यह है कि छत्तीसगढ़ में नागरिक अधिकारों के हिमायती, लोकतांत्रिक मूल्यों के समर्थक , निजी जिंदगी में घुसपैठ के विरोधी भी फोन टैपिंग के खिलाफ आवाज़ उठाने से चूके थे, क्योंकि उन्हें सबूत चाहिए थे ! यह जानते हुए भी कि सबूत तो उन्हीं दफ्तरों / घरों में रखे हुए हैं जहां यह गोरखधंधा होता था ! मैँ यहां अपनी ही एक फेसबुक पोस्ट का लिंक शेयर कर रहा हूँ । इसे भी एक पत्रकार की सूचनाओं और इसके अनुभव के रूप में देखना चाहिए। मेरी राय में अवैध टेलीफोन टैपिंग ही इतना बड़ा मुद्दा है कि उसका विरोध कर हम अपने बहुत से अधिकार सुरक्षित रख पाने में सफल हो सकते हैं । मैं आज सरकार का हिस्सा ना भी होता तो भी मुख्यमंत्री के इस आश्वासन का स्वागत करता कि अब यह राज्य टेलीफोन टैपिंग से नहीं चलेगा ।

( लेखक रूचिर गर्ग, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के मीडिया सलाहकार हैं, यह लेख उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की है)