पकंज सिंह भदौरिया,दन्तेवाड़ा. जिला अस्पताल में पूर्व सिविल सर्जन एमके नायक के लिए अनिमियता की मिली शिकायतों के खिलाफ दो-तीन दिनों से लगातार कलेक्ट्रेट से 3 अधिकारियों की जांच कमेटी एमके नायक के बतौर सिविल सर्जन के कार्यकाल के दौरान मिली गड़बड़ियों की जांच परत-दर परत खोल रखी है. जांच में पता चला कि 15 लाख रुपये की दवाईयां 27 लाख में खरीदकर सरकार के 12 लाख रुपए अपने जेब में रख लिया गया. आगे की जांच कमेटी जांच कर जांच प्रतिवेदन कलेक्टर दन्तेवाड़ा को प्रस्तुत करेगा. माना जा रहा है कि मिली गड़बड़ियों पर आगे भी एमके नायक पर कार्रवाई की गाज जबरदस्त गिरने वाली है. हालांकि केलेक्टर ने एमके नायक को पद से हटा दिया है औऱ डॉक्टर गंगेश को चार्ज दे दिया है.

27 लाख रुपये की दवाई खरीदी पर मिली गड़बड़ी

जानकारी के मुताबिक इन्ही के कार्यकाल में जिले के खनिज गौण मद (डीएमएफ फंड) से 27 लाख रुपये की खरीदी धमतरी के अनिल मेडिकल स्टोर से बिना निविदा प्रक्रिया के एकमुश्त भुगतान के साथ खरीदी कर ली गई थी. यही गड़बड़ी जांच कमेटी के हाथ लग गई है. जो पूर्व सिविल सर्जन के गले की हड्डी बन गई है. क्रय और भंडारण नियम को रौंदते हुए सरकारी पैसों का जमकर जिला अस्पताल में दुरूपयोग किया गया है.

मनमाने रेट पर खरीदी गई दवाईयां

सरकारी पैसों का दुरुपयोग किस तरह से होता है यह दन्तेवाड़ा के जिला अस्पताल से दिखता है. जहां चवन्नी की चीज रुपए में कमीशन के चलते खरीदी जा रही है. दवाईयों के 27 लाख रुपये खरीदी के दस्तावेज में जमकर गड़बड़ी नजर आई है. अस्पताल के तमाम गोपनीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक एमके नायक ने धमतरी के अनिल मेडिकल स्टोर से ईजेड क्लीनर नामक दवाई 1000 रुपये की दर से 260 नग खरीद डाले और मेडिकल स्टोर को 2 लाख 60 हजार का भुगतान भी कर दिया. जबकि इन्ही दवाईयों को अन्य फर्म 850 रूपय में देने को तैयार थे.

15 लाख की दवाई 27 लाख में खरीदी

डायलवेंट लाईज रिंच सेट के सौ सेट 14 हजार रुपये की दर से खरीद लिए गए. इसके लिए 14 लाख रुपए मेडिकल स्टोर दिए गए, जबकि यह दवाई का कोटेशन 8 हजार 8 सौ रुपये में अन्य फर्म देंने को तैयार थे. इसी खरीदी में यूरिन स्ट्रिप 115 नग 2 हजार रुपये से खरीद लिए गए. और 2 लाख 76 हजार रुपये भी भुगतान विभाग ने कर दिया. जबकि यह यूरिन स्ट्रिप अन्य मेडिकल फर्मो से 1950 रुपये में आसानी से खरीदी जा सकती थी. मगर ऐसा नहीं हुआ मोटा मोटा आंकड़ा तय करता है कि जो दवाईयां 15 लाख रुपये में खरीदी जा सकती थी उन्हें 27 लाख में खरीदकर 12 लाख रुपये सरकारी पैसों को नष्ट कर दिया गया. या यूं कहें कि कमीशन के तौर पर मोटी रकम खाने का फंडा रेट बढ़ाकर निकाला गया. खैर जांच के बाद और दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

ये कहना है अधिकारी का

पूर्व सिविल सर्जन एमके नायक से जब हमने इन सब गड़बड़ियों को लेकर सवाल पूछा तो एमके नायक ने कहा कि यह जनवरी की खरीदी है. उस समय मैं नया नया जिला अस्पताल में आया था और डॉक्टर बोश सबकुछ देखते थे.