रायपुर- जनदर्शन का दिन था. सब अपनी अपनी परेशानियां लेकर आये थे. लोगों की कतारें थी. कतारों में लगकर सब अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे ताकि अपनी समस्या कलेक्टर तक पहुंचा सकें. इसी कतार में एक महिला भी थी. एक ईमानदार महिला. लेकिन फरियादियों के बीच ये महिला क्यों खड़ी थी, जबकी वो फरियाद लेकर आई ही नहीं थी. यही जानकार उनके साथ खड़े लोग हैरान थे. कतार आगे बढ़ी, तो बात कलेक्टर तक पहुँची. कलेक्टर से जब महिला ने कहा कि वो कुछ लेने नहीं देने आईं है, तो ये सुन कलेक्टर हैरान रह गए, वे चौंक गए ये देखकर कि आखिर ये महिला ऐसा क्यों कर रही है.
लेकिन मेनका ईमानदारी के साथ तंगहाली के समय में मिली आर्थिक मदद को अब आर्थिक स्थिति बेहतर होने के बाद लौटाना चाहती थी. लिहाजा वे पैसा लौटाने के लिए अड़ी. बातचीत में मेनका ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी पति ने भी साथ छोड़ दिया था. उस वक्त कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. एेसे में किसी ने जनदर्शन में जाने की सलाह दी. जनदर्शन में आने पर उसे दस हजार की आर्थिक मदद मिली और इस पैसे से उसने आटा चक्की शुरु की. उस आटा चक्की से अब वो आत्मनिर्भर है. धीरे-धीरे करके उसने चार हजार रुपये बचाए हैं. इन्हीं पैसों को लौटाने वो यहां आई है. बाकी बचे पैसों को भी वो इसी तरह धीरे-धीरे लौटाना चाहती है.
हमने पूछा कि जब संस्था की तरफ से या कलेक्टर की ओर से इन पैसों को लौटाने की कोई बात नहीं कही गई है तब भी आखिर क्यों वो इतनी दूर से सिर्फ इन पैसों को लौटाने के लिये जनदर्शन में पहुंची है, तो मेनका का जवाब था कि जिस तरह जरूरत के समय उसे मदद मिल गई थी उसी तरह आगे भी किसी जरूरतमंद को इन पैसों से मदद मिल पाएगी. इसलिये वो इन पैसों को लौटाना चाहती है. हालांकि कलेक्टर ने मेनका की ओर से लौटाए जा रहे आर्थिक मदद नहीं लिए उन्हें मेहनत व ईमानदारी के साथ काम करते रहने को कहा.
मेनका की तरह समाज में गिने-चुने लोग होते हैं. क्योंकि आज समाज के भीतर ठगी करने वालों की, लुटने वालों की, चोरी करने वालों की जमात अधिक हो गई है. आर्थिक मदद तो दूर लोग सरकारी कर्ज तक नहीं लौटाते ऐसे में अगर कोई महिला ईमानदारी से आर्थिक मदद को लौटाने की कोशिश करती है तो यह वाकई काबिले-तारीफ है. मेनका आज समाज के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है.