अरुण यादव की राह में किसने डाला रोड़ा?

खंडवा के उपचुनाव में अरुण यादव ने अपनी फसल की चर्चा छेड़ दी है। यादव के तेवर वही है जो उन्होंने पीसीसी चीफ का पद कमल नाथ को देते हुए कांग्रेस दफ्तर के सामने हो रही भरी सभा में कहे थे। अंदाज़ भी वही और शब्द भी वही। यादव के इस बलिदान की चर्चा छेड़ने के पीछे इस मकसद का अनुमान सहज लगाया जा सकता है कि आलाकमान भविष्य में उनका ख्याल रखेगा। लेकिन यादव अपने बलिदान का ज़िक्र ज़रूर कर रहे हैं, लेकिन ये नहीं बता रहे हैं कि उन्हें चुनाव लड़ने से रोकने वाला आखिर कौन है? यदि आलाकमान खुद उनसे कहता तो शायद अरुण यादव के तेवर ऐसे नहीं होते। लेकिन यदि कोई और है तो नए सवाल खड़े होते हैं। दरअसल, अरुण यादव की दिग्विजय सिंह खुलकर तारीफ करते हैं। ऐसे में कहीं कमल नाथ तो नहीं है। इससे पहले जब दिग्विजय सिंह ने भोपाल में किसान आंदोलन के वक्त अगुवाई की सलाह दी थी, तब यादव को पार्टी गाइड लाइन का हवाला देकर रैली निकालने से रोक दिया था, जबकि अरुण यादव ने अपने बंगले पर ट्रैक्टर और किसानों की भीड़ इकट्ठा कर ली थी। यदि यादव के कदम रोके जा रहे हैं, तो ये कांग्रेस में आने वाले दिनों में होने वाले घमासान की तरफ इशारा करने लगे हैं।

बीजेपी की पुरानी टीम का संकोच

बीजेपी में चुनावी रणनीतिकारों की टीम अब टूट चुकी है। उमा भारती की सरकार बनने के पहले से इस टीम में मुख्य भूमिका निभाने वाले अनिल माधव दवे स्वर्ग सिधार गए तो उनके मास्टर माइंड विजेश लुनावत ने बखूबी कमान संभाले रखी। बीमारी के वक्त भी वे 28 सीटों पर हुए उपचुनाव में लगे रहे लेकिन कोविड की दूसरी लहर में उनका देहांत हो गया। इसके बाद चुनावी रणनीतिकारों की बेजोड़ टीम पूरी तरह टूट गई। विजेश लुनावत की सबसे बड़ी ताकत रहे शैलेंद्र शर्मा और रजनीश अग्रवाल पार्टी की जिम्मेदारी जरूर संभाल रहे हैं। लेकिन जब सीएम शिवराज मौजूदा उपचुनाव के दौरान चुनाव प्रबंधन समिति के कार्यालय का शुभारंभ करने पहुंचे तो शर्मा और अग्रवाल दूसरे कमरे में बैठे नजर आए। हालांकि उन्हें बाद में सीएम शिवराज और वीडी शर्मा ने संदेश भेजकर बुलवा लिया। लेकिन पुरानी टीम को नए दौर का अहसास करा दिया। इससे पहले किसी भी उपचुनाव या बड़े कार्यक्रम के वक्त इस टीम के किसी सदस्य को किसी आदेश की प्रतीक्षा नहीं होती थी। सभी अपने-अपने काम में जुट जाते थे। पहले के दौर में अंडरस्टेंडिंग कायम थी। अब नई टीम में एडजस्टमेंट की दरकार लग रही है।

बीजेपी में वंशवाद पर पूर्ण विराम

दिवंगत बीजेपी नेता नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह चौहान की खंडवा से टिकट कटने के बाद बीजेपी ने साफ इशारा किया है कि वंशवाद की बेल आगे नहीं बढ़ाई जाएगी। इस गाइड लाइन की चपेट में आने के बाद गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव भी सोशल मीडिया पर तीखी टिप्पणी करके पार्टी के आम कार्यकर्ता की तरह काम करने का ऐलान कर चुके हैं। इसके बाद प्रभात झा के बेटे तुष्मुल झा, नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार, नरोत्तम मिश्रा के बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर और जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया को साफ इशारा हो गया है कि पार्टी के लिए काम करना अलग बात है। लेकिन चुनाव लड़ने के मामले में पार्टी की गाइड लाइन आड़े आएगी। इसी कतार में शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय सिंह चौहान का नाम भी है। कैलाश विजयवर्गीय ने अपने बेटे को विधायक का टिकट दिलवाया तो खुद उन्हें टिकट नहीं मिल पाई है। वे संगठन के काम में ही लगाए गए हैं। फार्मूला 75 के फेर में आ रहे दिग्गज नेताओं को भी खंडवा में ज्ञानेश्वर पाटिल का टिकट देना एक बड़ा इशारा है। इशारा ये कि वे अपने बेटे-बेटी की बजाय अपने सिपहसालारों को आगे बढ़ाने की तरफ ध्यान दें। बता दें कि नंदकुमार सिंह चौहान के चुनावों में ज्ञानेश्वर पाटिल रणनीतिकार की अहम भूमिका में रहते थे।

दीपावली टॉप अप के लिए फेरी शुरू

चढ़ोत्री देकर फील्ड की मलाईदार पोस्टिंग में पहुंचे अफसरों ने अब भोपाल की तरफ रुख करना शुरू कर दिया है। भोपाल की इस दौड़ की वजह टॉप-अप है। एक बार वे चढ़ावा देकर मनचाही जगह पहुंच चुके हैं, अब इस जगह को बरकरार रखने के लिए यानी टॉपअप करने के लिए यहां आ रहे हैं। जाहिर है खाली हाथ नहीं आएंगे। होली-दीवाली या बुलावे पर उन्हें आना ही होगा। टॉप सीक्रेट ये है कि मंत्रियों के दफ्तर की खास केबिन में ऐसे जिलों के अफसर दशहरा-दीवाली के पहले खूब देखे जा रहे हैं। जैसे-जैसे त्योहार करीब आएंगे जिलों के इन कृपापात्र अफसरों की तादाद बढ़ती जाएगी। ये कुछ खास टेबिलों और कैबिन में ज़रूर जाते हैं और हां मंत्रीजी से मुलाकात पक्की होती है। सीजन आ चुका है मंत्रियों के बंगलों में बहार आने का।

उधर हुज्जत, इधर गलबहियां

अधिकांश मंत्रियों के अपने विभाग के प्रमुख सचिव के साथ अनबन चल रही है। लेकिन ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के साथ ऐसा नहीं है। दोनों की आपस में खूब गलबहियां चल रही हैं। अब महकमे में भी चर्चाएं पुरज़ोर होने लगी हैं। तोमर ने ऐसी कौन सी छड़ी घुमाई है कि महकमे के प्रशासनिक मुखिया के साथ उनकी पटरी बैठ गई। एक तरफ मंत्री विभाग के ज़मीनी अमले की कमियां मिलने पर खुद ही खंभे पर चढ़ते मिल जाते हैं और दूसरी तरफ अफसरों के साथ केबिन में बैठकर देर तक बतियाते रहते हैं। माजरा जो भी हो, चर्चाएं इस बात को लेकर भी है कि महकमे में भ्रष्टाचार के मामले खुलने के बावजूद भी अफसरों के साथ गलबहियां कहीं कुछ गुल तो नहीं खिला रही हैं। तोमर अक्सर भ्रष्टाचार के इन मामलों में मुखर होकर कार्यवाही की बात करते हैं, लेकिन अफसरों के साथ मीटिंग के बाद गुब्बारे की हवा निकल जाती है। महकमे के लोग दबी जुबान में पूछ रहे हैं, माजरा क्या है?

लौटने के बाद भी हो रहे बेआबरू

एक अफसर केंद्र की प्रतिनियुक्ति से लौटने के बाद उनके रुतबे में भारी गिरावट से जूझ रहे हैं। दिल्ली प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले इन्हीं अफसर की सख्त मिजाजी की चर्चाएं होती थी। लौटने पर भी कयास उसी तेवर के लगाए गए। लेकिन लौटने के बाद साहब की ठसक में कमी आई है। कुछ लोग इसे स्वाभाविक बदलाव बता रहे हैं और कुछ लोग उनके साथ हो रहा बर्ताव। दरअसल, वे लौटे तो भारी भरकम महकमा मिलने की उम्मीद धराशायी हो गई। जिस महकमे में उन्हें पदस्थापना मिली वो लूप लाइन कहलाती है। फिर इस पोस्ट के मुताबिक मिलने वाला चैंबर भी नहीं मिला उन्हें मंत्रालय की दूसरी मंजिल का कमरा अलॉट किया गया। मामला यहीं खत्म नहीं हुआ, साहब ने जुलानिया के रिटायरमेंट की वजह से खाली हुए सरकारी बंगले की डिमांड की, लेकिन ये बंगला भी किसी और को दे दिया गया। कुछ लोग अंदाज़ा लगा रहे हैं कि ये बर्ताव ऊपर से हो रहे इशारों की वजह से हो रहा है।

दुमछल्ला…

सरकारी कामकाज में परस्पर समन्वय के लिए अफसर एक वॉट्सएप ग्रुप बना लेते हैं। एक जिले में कलेक्टरेट से जुड़े सभी अफसरों के ग्रुप में एक अफसर ने एक अजीबोगरीब कमेंट कर दिया। कमेंट था – बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया। इसके बाद चर्चा ग्रुप में नहीं हो रही बल्कि फोन लगाकर आपस में हो रही है। दरअसल, जिस अफसर ने ये लिखा उसका पर्याप्त योग्यता और सीनियरिटी की वजह से प्रमोशन तय था, लेकिन प्रमोशन उस अफसर के जूनियर का हो गया। पूरा माजरा ठीक से समझने के लिए अफसर के कमेंट पर गौर कीजिए। ये बता भी दें कि ये वॉट्स एप ग्रुप भोपाल संभाग के अंतर्गत आने वाले एक जिले का है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)