वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। पहले आप ऊपर तस्वीर को ही देखिए…सिर्फ इस तस्वीर को. ये तस्वीर आपको हैरान भी कर रही होगी…और आपके जहन में अनगिनत सवालों को भी उठा रही होगी. इस तस्वीर में जिस विशाल शरीर वाले जीव को देख रहे हैं यह गंगाराम है. छत्तीसगढ़ का सबसे बुढ़ा गंगाराम. यह बुढ़ा गंगराम अब इस दुनिया में नहीं रहा. गंगाराम आज अपने तीन पीढ़ियों के साथियों को हमेशा के लिए छोड़कर चला गया. उन्होंने यह बताया भी नहीं कि वह जाने वाला….उन सबसे दूर…जिनके साथ वो पला-बढ़ा, बड़ा हुआ या जो लोग उनके साथ नहाए…खेले….या बड़े हुए. क्या बच्चें..क्या नौजवां…क्या महिलाएं और क्या सियान. गंगाराम सबके साथ रहा. लेकिन अब वह किसी के साथ नहीं.

यह गंगराम की अंतिम यात्रा है. इसके बाद गंगराम कभी नहीं दिखेगा. कभी नहीं चलेगा. न तलाब में. न तलाब के पार में, न गांव की गलियों में और न खेतों में. ये गंगाराम है. इसे आप देख लीजिए…बहुत अच्छे से देख लीजिए. यह एक दिल छू लेने वाली कहानी का सबसे प्रमुख किरदार गंगाराम की अंतिम कहानी है. इसे पूरा पढ़िएगा. क्योंकि अब गंगाराम सिर्फ कहानी और यादों में ही जीवित रहेगा. हम सबमें स्मृति-शेष बनकर.

दरअसल गंगाराम एक ऐसा मगरमच्छ था जो सौ साल से अधिक उम्र का था. बताया जाता है कि गंगाराम की आयु 1 सौ 30 वर्ष थी. हालांकि इसे लेकर कोई प्रमाण नहीं है. वैसे इस बुढ़े मगरमच्छ का नाम गंगाराम कब और कैसे पड़ा इसकी भी कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है.

बेमेतरा निवासी पत्रकार सुजीत शर्मा बताते हैं कि राजधानी रायपुर से 80 किलोमीटर और बेमेतरा जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर बावामोहतरा में गंगराम की कहानी सौ साल अधिक पुरानी है. वे बतौर प्रत्यक्षदर्शी के तौर बताते हैं कि उन्होंने खुद बावामोहतरा जाकर गंगाराम को पत्रकार के नाते कवर भी किया और उस कई स्टोरी भी बनाई है. स्टोरी बनाने के दौरान ही गांव वालों से बातचीत में यह पता चला कि बावामोहतरा एक धार्मिक-पौराणिक नगरी के रूप में जिले के भीतर अपनी पहचान रखता है.


तस्वीर सुजीत शर्मा के फेसबुक वाल से

अब तालाब के पार, गलियों में नहीं दिखेगा गंगाराम
इस गांव में महंत ईश्वरीशरण देव यूपी से आए थे. वे पहुँचे हुए सिद्ध पुरूष थे. बताते हैं कि वही अपने साथ पालतू मगरमच्छ लेकर आए थे. उन्होंने गांव के तालाब में उसे छोड़ा था. बताते हैं उनके साथ-साथ पहले कुछ और भी मगरमच्छ थे. लेकिन समय-काल में सिर्फ गंगाराम बचा रहा. सुजीत शर्मा यह भी बताते हैं कि गंगाराम ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया. जबकि तालाब का इस्तेमाल गांव के लोग निस्तारी के रूप में सालों से करते आ रहे हैं. हां एक बार जरूर एक महिला पर गंगाराम ने हमला बोल दिया था लेकिन बाद में छोड़ दिया. गंगाराम कभी-कभी तलाब के पार आकर बैठ जाता था…बारिश के दिनों में वह गांव की गलियों और खेतों तक पहुँच जाता था. कई बार खुद गांव वालों ने उसे पकड़कर तालाब में डाला है.

गांव वाले गंगाराम को देव की तरह ही पूजते रहे हैं. ग्रामीणों ने कभी भी गंगाराम को परेशान नहीं किया. एक आत्मीय रिश्ता इस बेजुबान मगरमच्छ से गांव वालों का जुड़ गया था. मोहतरावासियों का दुःख-सुख का साथी गंगाराम रहा है. और यही साथी मंगलवार 7 जनवरी को हमेशा के लिए मोहतरावासियों को छोड़कर चला गया. मंगलवार की सुबह जब गंगाराम के निधन की खबर गांव में लगी तो पूरा गांव तलाब किनारे इक्कठा हो गया. ग्रामीणों ने इसकी सूचना वन विभाग को दी. वन विभाग की टीम जब मगरमच्छ को ले जाने के लिए पहुँची तो गांव वाले गंगाराम की अंतिम रास्ता रोककर खड़े हो गए.

तलाब पार बनेगा गंगाराम का स्मारक
एक जंतू से इंसानी प्रेम और दिल का रिश्ता देख वन विभाग की टीम भी भाव-विभोर हो उठी.  वन विभाग के एसडीओ आरके सिन्हा ने laluram.com से बातचीत में कहा कि सुबह गांव वालों से मगरमच्छ गंगाराम के निधन की खबर मिली. टीम मौके पर पहुँची. टीम ने गंगाराम का पीएम किया. पीएम रिपोर्ट अभी आई नहीं तो मौत का कारण पता नहीं. लेकिन गांव वालों की मांग और विनम्र आग्रह पर हमने गंगराम को गांव में दफ्न कर दिया. गांव वालों की मांग के मुताबिक उसी तालाब के पार पर जिस तालाब में गंगाराम रहा है. अधिकारी सिन्हा ने यह भी बताया कि गांव वाले वहां गंगराम का स्मारक बनाना चाहते हैं.