रायपुर। फेक न्यूज़ की एक इकोनॉमी है. इसके अपने अर्थशास्त्र है. इसका एक ग्राहक राजनीति है. ये बातें बताई साइबल लॉ एक्सपर्ट विराग गुप्ता ने. राजधानी रायपुर में आयोजित फेक न्यूज संगोष्ठी में बोलते विराग गुप्ता ने कई सवाल भी उठाएं. उन्होंने यह भी बताया कि आज देश में इंटरनेट इकोनॉमी को लेकर न कोई नीति है और न फेक न्यूज को लेकर राज्यों के पास कोई अधिकार. उन्होंने पूछा आखिर ये अधिकार क्यों नहीं? जबकि डिजिटल इंडिया के इस दौर में ये अधिकार होना चाहिए. कहीं फेक न्यूज़ होता है तो जिला कलेक्टर इंटरनेट को बंद कर देते हैं.

कुछ दिन पहले एक आदेश में दस एजेंसियों को फोन टेपिंग जैसे कई अधिकार दिए गए हालांकि यह अधिकार राज्यों को नहीं दिया गया. हमें समझना पड़ेगा कि फेक न्यूज़ आती कहाँ से है. पहले एक गुमनाम चेहरा आएगा. यही चेहरा उसकी अर्थव्यवस्था है. व्हाट्सएप ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सवा सौ करोड़ के विज्ञापन दिए हैं. जो फ्री में है, दरअसल वह है नहीं. ये कंपनियां हमारा डेटा लेकर जाती हैं, और विदेशों में बेचती है.

फेक न्यूज़ के अर्थशास्त्र में गंभीर चितन की जरूरत है. डिजिटल इंडिया बनाया है तो रेगुलेटरी संस्था क्यों नहीं बनाई? गूगल इंडिया की आमदनी 4 लाख 29 हजार करोड़ रुपये की है भारत में.
जब आप कंपनियों को गुमराह करते है तो कहते है कि आमदनी 4 लाख करोड़ है, लेकिन जब टैक्स देने की बात आती है तो कहते है छह हजार करोड़ है. इन कंपनियों ने अमेरिका को भारत का डेटा दिया है. जो खोते सिक्के होते हैं, वह अच्छे सिक्कों को प्रचलन से बाहर कर देते है. बात हो रही है कि देश को ईमेल से जोड़े, लेकिन छत्तीसगढ़ के अधिकारियों को पहले ईमेल पर आना सिखाया जाये.  आज भी देश के कई केंद्रीय मंत्रियों की ईमेल आईडी से देश की सुरक्षा को खतरा है. ट्विटर के भारत में करोड़ों लोग है, लेकिन कुछ के ही अकॉउंट वेरिफाइड है. आखिरी 48 घण्टे में प्रचार नहीं करने का कानून अगर प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में है तो सोशल मीडिया पर क्यों नहीं? हमने चुनाव आयोग के सामने ये सवाल उठाया.कहा गया कि कानून में संशोधन करना होगा हमने कहा इसकी जरुरत नहीं है. तब जाकर उम्मीदवारों के ईमेल आईडी, सोशल मीडिया एकोउन्ट की जानकारी ली जाने लगी.

फेक न्यूज़ ईस्ट इंडिया कम्पनी की तरह एक नया उपनिवेशवाद है. डेवलपिंग कंट्री के डेटा पर कब्जा कर लिया है. फेक न्यूज़ के मायाजाल से निपटने के लिए हमारी सरकारी व्यवस्था में जागरूकता नहीं है. डिजिटल इकोनॉमी के नान टैक्स से राज्यों को जो नुकसान हो रहा है इस पर विचार किया जाना चाहिए. ये संघीय ढांचा के लिए बड़ा नुकसानदेह है. रेगुलेट करने के अधिकार राज्यों के पास क्यों नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि देश में काम करने वाली हर इंटरनेट कंपनी को शिकायत अधिकारी करने के निर्देश दिए थे, लेकिन नियुक्ति कहाँ हुई. अमेरिका में. फेक न्यूज़ पर गभीर विमर्श करने की जरूरत है.