रायपुर- फोन टेपिंग के मामले में आरोपी बनाए गए मुकेश गुप्ता जब गुरूवार को बयान दर्ज कराने ईओडब्ल्यू पहुंचे, तब उन्होंने मीडिया से बातचीत में बयान देते हुए यह सवाल उठाया कि चीफ सेक्रेटरी रहे विवेक ढांंड और एसीएस (होम) एन के असवाल के लिखित आदेश के बाद ही फोन टेपिंग किए गए, तो फिर यह गलत कैसा हुआ? फोन टेपिंग पर गुप्ता के बयान के बाद पड़ताल में कई तथ्य उजागर हुए हैं.
फोन टेपिंग को लेकर अपनी एक कानूनी प्रक्रिया है, विधि विशेषज्ञों के मुताबिक अपराधों पर लगाम लगाने और आंतरिक सुरक्षा के लिहाज से फोन टेपिंग की जरूरत होती है. यह संभव है कि पुलिस के पास प्रमुख सचिव गृह से आदेश लेने के लिए पर्याप्त समय न हो और उनके आदेश का इंतजार करने में देर हो जाए, तो इसके लिए नियमों में आपात प्रावधान किए गए हैं. इन प्रावधानों में आईजी स्तर के पुलिस अधिकारी को केवल सात दिनों के लिए टेलीफोन टेपिंग का आदेश दिए जाने का अधिकार है. वह भी सार्वजनिक आपात प्रकृति के किसी संभावित अपराध के घटित होने से रोकने के लिए. इधर फोन टेपिंग मामले की जांच कर रही ईओडब्ल्यू से जुड़े सूत्रों की माने तो मुकेश गुप्ता ने इस प्रावधान का जमकर दुरूपयोग करते हुए बड़ी संख्या में फोन टेपिंग कराई है. बताते हैं कि उनके किसी भी आदेश में आपराधिक प्रावधानों के उपयोग का कोई कारण नहीं बताया गया है. ईओडब्ल्यू के आधिकारिक सूत्र इस बात की तस्दीक करते हैं कि मुकेश गुप्ता ने आज तक किसी को नहीं बताया कि इस प्रकार बड़ी संख्या में फोन टेपिंग करके उन्होंने कौन से सार्वजनिक आपत्ति की प्रकृति के अपराध रोके.
जांच में सामने आए तथ्यों के आधार पर ईओडब्ल्यू के आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि मुकेश गुप्ता ने फोन टेपिंग के लिए न केवल गैर कानूनी ढंग से फोन टेपिंग के आदेश जारी किए, बल्कि सात दिनों के बाद भी लंबे समय तक कई मामलों में टेपिंग जारी रखी. सूत्र बताते हैं कि फोन नंबर 9826171941 और 8817903999 नंबर पर फोन टेपिंग का आदेश उन्होंने 9 दिसंबर 2014 को जारी किया था. 16 दिसंबर 2014 तक सात दिन पूरे जाने के बाद उनका आदेश कानूनी तौर पर समाप्त हो जाना था, लेकिन इन नंबरों पर टेपिंग 14 जनवरी 2015 तक जारी रही, जबकि गृह विभाग के प्रमुख सचिव को इन नंबरों की फोन टेपिंग कराने का प्रस्ताव ही 16 जनवरी 2015 को भेजा गया, जिस पर 22 जनवरी 2015 को अनुमोदन दिया गया था, जो केवल 22 जनवरी 2015 के बाद की अवधि के लिए ही वैध था.
बताते हैं कि ईओडब्ल्यू की जांच में दस्तावेजों में भी कई गंभीर किस्म की कूटरचना के प्रमाण मिले हैं. ईओडब्ल्यू के सूत्रों का दावा है कि मुकेश गुप्ता ने बिना वैध आदेश के फोन टेपिंग कर लिया था, लेकिन कुछ प्रकरणों में चालान पेश करने की परिस्थितियां बनी. ऐसी स्थिति में फंसने के डर से अवैध फोन टेपिंग को वैध करने के लिए उन्होंने कई दस्तावेजों में कूटरचना करते हुए पिछली तारीख में तैयार कराया. इसके लिए अपने अधीनस्थ अधिकारियों को डराने की जानकारी भी ईओडब्ल्यू को मिली है. जांच में यह तथ्य भी आने की खबर है कि कई लोगों को डराने के लिए एफआईआर दर्ज कर ली जाती थी और बाद में काम निकल जाने पर उन्हें फाड़ दिया जाता था.