रायपुर- मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री डाॅक्टर हर्षवर्धन को चिट्ठी लिखकर भारतीय वन अधिनियम 1927 में प्रस्तावित संशोधनों को खारिज किए जाने की मांग की है. बघेल ने कहा है कि अधिनियम में अनुसूचित जनजातियों की जरूरतों के मुताबिक संशोधन नहीं किया जा रहा है. उन्होंने कहा है कि यह संशोधन छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के अधिकारों के साथ नाइंसाफी है. मुख्यमंत्री ने चिट्ठी में यह भी कहा है कि प्रस्तावित संशोधनों से वन संसाधनों पर सरकार की पकड़ मजबूत होगी और आदिवासियों की घटेगी. भूपेश बघेल ने आशंका जताई है कि यदि इन संशोधन को लागू किया जाता है तो आदिवासी समुदाय राज्य से दूर होंगे और गैरकानूनी संगठनों के करीब जाएंगे, जिससे अनुसूचित क्षेत्रों में अतिवादी घटनाओं में बढ़ोतरी हो सकती है. इससे राज्य में कानून व्यवस्था खराब हो सकती है. उन्होंने मांग करते हुए कहा है कि प्रस्तावित संशोधन को सिरे से खारिज करते हुए आदिवासियों के अधिकारों को शामिल करने हेतु पर्याप्त संशोधन किए जाए.

भूपेश बघेल ने अपनी चिट्ठी में कहा है कि प्रस्तावित संशोधनों से संचालन की शक्तियां और वीटो शक्ति वन विभाग की नौकरशाही को मिल जाएगी, जिससे उनके लिए आदिवासियों के अधिकारों को अस्वीकार करना और आसान हो जाएगा. चाहे वह अधिकार वनवासियों को वन अधिकार अधिनियम के तहत ही क्यों न मिले हो. उन्होंने कहा है कि प्रस्तावित संशोधन के सेक्शन 33 (1)(c) के अनुसार कोई भी व्यक्ति यदि किसी भी तरीके से जंगल में अतिक्रमण करता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है. इस प्रावधान की आड़ में आदिवासियों को परेशान किया जा सकता है.

बघेल ने केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन को भेजी गई चिट्ठी में कहा कि भारतीय वन अधिनियम 1927 पहले ही वन अधिकारियों को असीमित शक्तियां देता है. यह आदिवासियों का दमन करने और भारतीय संसाधनों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाई गई थी. प्रस्तावित संशोधनों से यह शक्तियां पुलिस को भी मिल जाएगी और उन्हें अभियोजन से बेहतर बचाव भी उपलब्ध कराएगी. साथ ही प्रस्तावित संशोधन के सेक्शन 66 (B) के अनुसार जो भी इस अधिनियम की या इसके अंतर्गत बनने वाले नियमों की अवहेलना करेगा या इसकी अवहेलना को शह देगा, उसके खिलाफ कार्यवाही की जा सकेगी. कोई व्यक्ति, वन अधिकारी या राज्य सरकार का कोई अधिकारी भी प्रिसिंपल एक्ट के अंतर्गत दर्ज अपराध के मामलों को वापस नहीं ले सकेगा. यानी एक बार यदि किसी आदिवासी के खिलाफ मामला दर्ज हो गया, तो उसे वापस नहीं लिया जा सकेगा. भले ही वह अपराध उस आदिवासी के अधिकार में ही क्यों न आता हो. इससे आदिवासियों को बार-बार कोर्ट बुलाकर परेशान करने और उन पर आर्थिक बोझ डालने जैसा होगा. बघेल ने कहा है कि प्रस्तावित संशोधन से आदिवासियों की प्राकृतिक संसाधनों को अपनी सांस्कृतिक विरासत मानकर उन की सुरक्षा करने की पुरानी परिपाटी भी खत्म हो जाएगी और उनके अंदर जंगल को लेकर एक नफरत की भावना पैदा होगी, जो वन संरक्षण के लिए नुकसानदायक होगी.

मुख्यमंत्री ने चिट्ठी में लिखा है कि बिलासपुर, राजनांदगांव के बैगा जनजाति और कोरबा तथा सरगुजा के पहाड़ी कोरवा जनजाति लंबे समय से स्थानांतरित कृषि करते हैं. प्रस्तावित संशोधन के चैप्टर 4(B), खासतौर पर सेक्शन 34(D)(6) में राज्य सरकार को किसी भी स्थान पर स्थानांतरित कृषि निषेध करने का अधिकार देती है, जो छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियों की रीतियों के विरूद्ध है. उन्होंने लिखा है कि प्रस्तावित संशोधन के सेक्शन 34(C ) के अनुसार जंगल के कुछ क्षेत्रों को उत्पादक वन बनाया जाएगा, जहां टिंबर, पल्प, पल्पवुड, चिकित्सीय पौधे इत्यादि का उत्पादन किया जाएगा, ऐसे उत्पादक वनों से अनुसूचित क्षेत्रों का व्यवसायीकरण हो जाएगा, जो आदिवासियों के जमीन के हक के खिलाफ है और उनकी प्रथाओं में भी बाधक है. साथ ही इस संशोधन का वन अधिकार नियम 2006 में कोई संदर्भ नहीं है, जिससे यह आदिवासियों और वन निवासियों के अधिकारों के विरूद्ध है.

भूपेश बघेल ने अपनी चिट्ठी भी इस बात भी जिक्र किया है कि प्रस्तावित संशोधन से आदिवासियों की स्वशासन व्यवस्था की उपेक्षा होगी. उन्होंने अपनी चिट्ठी में कहा है कि पंचायत अधिनियम 1996 ग्राम सभा को आदिवासियों के अनुसूचित जनजाति से जुड़े मुद्दों पर निर्णय लेने का अधिकार देता है. आदिवासी क्षेत्रों की जमीन के अधिग्रहण के पहले ग्राम सभा से मंजूरी लेना अनिवार्य है, ग्राम सभा के पास यह शक्ति है कि वह आदिवासियों के हित को प्रथम रखते हुए निर्णय ले. उन्होंने लिखा है कि प्रस्तावित संशोधन पेसा एक्ट के प्रावधानों का भी उल्लंघन करता है. आदिवासियों की जमीन के अधिग्रहण और उनकी मूल प्रथाओं में बदलाव से जुड़े निर्णय लेने की प्रक्रिया में आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधित्व को नजरअंदाज कर दिया गया. प्रस्तावित संशोधन ग्राम सभाओं को पंचायत अधिनियम 1996 में मिली शक्तियों की भी अवहेलना करता है, जिसके अनुसार ग्राम सभा अपने समुदाय को नियंत्रित कर सकती है.