पुरूषोत्तम पात्रा,गरियाबंद. सुपेबेड़ा में लगातार किडनी की बीमारी के मरीजों की बढ़ती संख्या के चलते सरकार की भी चिंता बढ़ गई है. इसकी चलते सरकार ने मुंबई से भाभा परमाणु अनुसंधान की वाटर रिसर्च टीम को सुपेबेड़ा जांच के लिए बुलाया गया था.

इस संबंध में सुपेबेड़ा पहुंची इस टीम ने कहा है कि गाँव मे फ्लोराइड की मात्रा तय मानक से 300 गुना ज्यादा है .वहीं फ्लोराइ़ड  स्थापित रिमूवल प्लांट से भी निकल रहा है . इसके अतिरिक्त आर्सनिक की मात्रा पर जांच टीम ने सवाल उठाए हैं. दरअसल  सुपेबेड़ा वासियों को सुविधा देने के नाम पर किस तरह से सरकारी धन का दुरुपयोग हो रहा है,यहां के लोगों के साथ कैसा खिलवाड़ हो रहा है इसकी पोल वाटर रिसर्च टीम के 3 घण्टे के प्रारंभिक जांच में ही खुली गई.

टीम के छत्तीसगढ़ प्रभारी ने डॉ अरुण तिवारी ने बताया कि गांव के 20 सोर्स का सेम्पल की जांच की गई,ज्यादातर में फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित मात्रा से 300 गुना ज्यादा मिला,ताज्जुब की बात है कि जिन तीन सोर्स में फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगे हैं. उस प्लांट के पानी मे भी भारी मात्रा में फ्लोराइड मिले हैं.

तिवारी के मुताबिक किसी भी सोर्स में आर्सनिक नहीं मिले, यंहा के पानी मे बैक्टरिया और अन्य प्रभावकारी जीवाणु होने की सम्भावनाएं हैं,इनकी जांच के अलावा कैडमियम,क्रोमियम जैसे मेटल्स की जांच के लिये वाटर सेम्पल मुम्बई भेजा जा रहा है.

टीम में मुम्बई रिसर्च सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक ललित वासने के साथ दो सहयोगी साइंटिस्ट व इंदिरा गांधी कृषि विद्यालय के अनुराग तोमर सुपेबेड़ा भी पहुंचे थे.

एक करोड़ का प्रोजेक्ट किस काम का-

पीएचई विभाग ने 1 करोड़ के लागत से तीन फ्लोराइड और तीन आर्सनिक रिमूवल प्लांट लगा कर सुपेबेड़ा वासियों को शुद्ध जल पिलाने के दावा किया है,लेकिन आज पहुँची जांच टीम ने इस दावे की हकीकत सामने ला दी है,जांच में पाया गया है कि रिमूवल प्लांट से फ्लोराइड युक्त पानी निकल रहा है,वहां के पानी मे आर्सेनिक की मात्रा नही मिली. फिर सवाल उठता है कि इसके तीन रिमूवल प्लांट पर 44 लाख रुपये व्यय क्यो किया गया.दो माह से तैयार इस प्लांट के ऑपरेटिंग के लिये नॉन टेक्निकल एक चौकीदार को जिम्मेदारी दिया गया है.विभाग के ई ई फ़िलिप एक्का ने कहा कि जांच में फ्लोराइड के साथ साथ आर्सनिक भी मिले थे.रिपोर्ट के आधार पर ही, प्लांट की स्थापना किया गया है,फ्लोराइड रिमूवल प्लांट कैसे काम नही कर रहा है, दिखवाते हैं.

बता दें कि सुपेबेड़ा में बड़े पैमाने पर किडनी की बीमारी फैली हुई है. दो साल में अब तक 65 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. गांव में अब भी सौ से ज्यादा लोग किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं. लेकिन उनके उचित उपचार के लिए अब तक कोई बड़ी पहल नहीं की गई है. जिससे सूपेबड़ा में किडनी की बिमारी से मौत का सिलसिला लगातार जारी है.