विक्रम मिश्र,लखनऊ। उत्तर प्रदेश में इंडी गठबन्धन की गांठे अब खुलती नजर आ रही हैं। लोकसभा चुनाव के दरम्यान यूपी को दो लड़के यानी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक कॉकटेल बनाया था। जिसका नाम इंडी रखा गया और इस कॉकटेल ने यूपी में कमाल भी किया था लेकिन अब इस कॉकटेल का असर कम हो गया है। हालांकि उस समय भी यूपी की राजनीति को करीब से देखने वालों ने इसे बेमेल बताते हुए टूटने की भविष्यवाणी की थी,जो अब सच होती दिखाई दे रही है।

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बहराइच कांड हो, सम्भल हिंसा का मामला हो या फिर अयोध्या का मामला हर मुद्दे पर कांग्रेस और सपा एक साथ दिखाई देने की भरसक कोशिश करते रहे। लेकिन सम्भल मामले में राहुल गांधी और प्रियंका का जाने का मामला सपा को अखर गया। जिसके बाद ही राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव कांग्रेस डेलिगेशन के वहां जाने के खिलाफ विरोध किया था। इसके बाद इंडी गठबन्धन के नेतृत्व को लेकर भी तृणमूल कांग्रेस की नेत्री और पश्चिम बंगाल की सीएम ने सवाल खड़ा किया और खुद ही इसका नेता बनने की मांग कर डाली थी।

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आज है सोनिया गांधी का है जन्मदिन

आज का दिन बाद अहम और खास है क्योंकि आज कांग्रेस की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी का जन्मदिन है। यूपी की पूर्व सीएम मायावती ने उनको बधाई दिया है। ऐसे में मायावती का बधाई संदेश राजनैतिक गलियारों में चर्चा का विषय है। जिसमे की नई तरह के सियासत की महक भी उठ रही है। दरअसल बसपा यूपी में खोई सियासी ज़मीन पर फिर से वोटबैंक की फसल उगाने की कोशिश कर रही है। जबकि कांग्रेस ने सपा के साथ गठबन्धन कर यूपी में 6 सांसदों के साथ अपना खाता तो खोल लिया है। अब ऐसे में मायावती के साथ अगर कांग्रेस आती है तो सपा के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। बसपा-कांग्रेस के साथ आने का फायदा भाजपा को और अन्य छोटे दलों को मिल सकता है।

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बसपा-कांग्रेस का समीकरण

बसपा के पास पुराने वोट बैंक की बात करे तो दलित और पिछड़े मुस्लिम समाज का वोट बैंक रहा है। 2007 के हुए विधानसभा आम चुनाव में ब्राह्मण दलित और मुस्लिम के सहारे ही मायावती प्रदेश की राजनीति पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। अब अगर कांग्रेस के साथ बसपा का हाथी आता है तो कांग्रेस के अगड़ा वोटबैंक के साथ मुस्लिम वोटबैंक में हिस्सेदारी तय मानी जा रही है। जिसका फायदा बसपा-कांग्रेस दोनों दलों को मिल सकता है।

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बसपा-कांग्रेस का गठजोड़ सपा को पहुंचाएगा नुकसान

सपा का उदय ही कांग्रेस के विरोध स्वरूप हुआ था लेकिन मुलायम सिंह यादव के जीते ही साल 2017 में अखिलेश यादव ने इस नए गठबन्धन को मूर्त रूप प्रदान किया गया। जिसका कुछ खास फायदा तब हुए विधानसभा चुनाव में नहीं हुआ था। इसके बाद मायावती के साथ भी सपा ने प्रयोग किया लेकिन नतीजा असफल ही रहा था।अब अगर बसपा-कांग्रेस का गठजोड़ बनता है तो मुस्लिम और दलित फैक्टर पीडीए का डीए फैक्टर टूटने का खतरा रहेगा। जिसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।

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तृणमूल का फूल अगर नेतृत्व करेगा तो सबके लिए होगी दिक्कत

ममता बनर्जी अगर इंडी गठबन्धन का नेतृत्व करती है तो इसका खामियाजा भी क्षेत्रीय दलों को उठाना पड़ेगा। क्योंकि तृणमूल का कोई जनाधार यूपी में तो नहीं है। पश्चिम बंगाल के इतर इस पार्टी का कोई झंडाबरदार भी नहीं है। इसलिए 2027 में यूपी विधानसभा के चुनाव में अगर इंडी गठबन्धन ममता और इंडी गठबन्धन राहुल गांधी अगर आमने सामने होंगे तो सपा बसपा के साथ चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी को दिक्कत जरूर आएगी। जिसका फायदा एनडीए को मिल सकता है।