वैभव बेमेतरिहा, रायपुर। चुनाव को हम लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व बताते हैं. मतदान को देश के लिए जरूरी बताते हैं. लेकिन इसी लोकतंत्र में सर्वाधिक मतदान करने वाले लोग विकास पथ पर काफी पीछे रह जाते हैं. क्यों ? ये सवाल हमेशा हमें अपने चुने हुए जनप्रतनिधियों से लगातर पूछते रहने चाहिए. खास तौर पर वे लोग तो जरूर सवाल करते रहे जिन्होंने लोकतंत्र के इस महापर्व में अपनी ईमानदारी से भागीदारी निभाई है. खास तौर पर वे ग्रामीण मतदाता तो जरूर सवाल करे जिन तक मूल-भूत सुविधाएं एक रुपये में चार आने तक ही पहुँचती है. तुलनात्मक रूप से शहरी मतदाताओं के मुकाबले.

मेरा मानना है कि मतदान के हिसाब विकास होना चाहिए. सरकार को अपने दोहरे पन को छोड़कर प्रथामिकता से विकास की शुरुआत ही गांवों से करनी चाहिए.  लोकतंत्र की सच्चाई ये है कि मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा शहरी लोगों की अपेक्षा गांववाले ज्यादा लेते हैं. हर चुनाव में ग्रामीण मतदाताओं का प्रतिशत सर्वाधिक होता है. लेकिन तरक्की मतदान के प्रतिशत के हिसाब से चवन्नी भर की नहीं होती है.

छत्तीसगढ़ के संदर्भ में बात करूँ तो 20 हजार गांव प्रदेश में है. इसमें तकरीबन 75 फीसदी आबादी निवासरत है.  मतदान का प्रतिशत निकालेंगे तो 70 से 75 प्रतिशत का ही आंकड़ा ग्रामीण मतदाताओं का निकलेगा. लेकिन विकास 75 फीसदी क्या 15 फीसदी नहीं पहुँच पाता है. नतीजा ये है कि गांवों में आज भी सड़क, पानी, रोजगार, स्वास्थ्य और बेहतर शिक्षा सबसे बड़ी समस्या है. यही वजह है कि कहीं-कहीं मतदान के दौरान गांववालों की नाराजगी खुलकर दिखती और नौबत चुनाव बहिष्कार की आ जाती है.

सरकारें लोकतंत्र के इस महापर्व में बुनियादी तौर पर इसका आंकलन जरूर करे.  क्योंकि तुलनात्मक रूप में शहरों में जितना विकास सरकार कराती है उसका एक तिहाई भी गांव में नहीं कराती. ऐसा कतई नहीं होना चाहिए. शहरी मतदाताओं को भी यह एहसास होना चाहिए कि जिन गांववालों को कम जागरूक, कम शिक्षित समझा जाता है वही सबसे ज्यादा जागरूक होते हैं. देश में लोकतंत्र का अगर मजबूत है गांववालों की बदौलत है. मेरा यही मत है कि जिन क्षेत्रों में जितना मतदान हुआ है, जहां लोगों ने सर्वाधिक बढ़-चढ़कर मतदाताओं ने लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लिया है वहां विकास भी वैसा ही होना चाहिए, इलाके की तरक्की उसी पैमाने पर होनी चाहिए.