संदीप अखिल, वरिष्ठ पत्रकार। आज समाज के हर  व्यक्ति को अपनी सामाजिक व्यवस्था  में  अपने अस्तित्व बोध  के साथ दूसरो के अस्तित्व को सम्मानित  करने की मान्यता  होनी चाहिए. आपस में  आत्मीय संबंध एवं सवांद होनी चाहिए. उससे ही समाज  में लोग एक-दूसरे के पास आयेंगे. सुख -दुःख  में शामिल होकर  एक अच्छे स्वस्थ समाज का निर्माण करेंगे. आने वाले समय में चुनाव है कोई राजनेता धर्मगुरू के शरण में जा रहें है तो, कोई समाज के उत्त्थान के लिए धार्मिक यात्रा कर रहें है.  धर्म आस्था  की जड़ता नहीं  जीवंत  जीवन  शैली बने. फैशन के इस दौर में गारंटी का कोई वादा नहीं जैसे निति वाक्य के बीच में आज धर्म  परिधान, परिवेश, संकीर्णता  के प्रपंच  में उलझ  कर  महत्वाकांक्षा के धूंध में खोते जा रहा है.

जैसे नदियों का कल-कल निनाद करते हुए अविरल बहता रहता है, उसकी  तरंगो  में एक संकल्प का स्वर प्रतिध्वनित होता है, शायद  उसकी तरंगे  सुनिश्चित परम लक्ष्य को पाना चाहती है, वह लक्ष्य क्या है ?  समुद्र  को प्राप्त करना. नदियों का मार्ग  ऊँचा -नीचा, अलग -अलग होता है. नदियों की लम्बाई  और चौड़ाई  में, गति और  प्रवाह में, यहाँ तक जल के वर्ण  में भी कुछ अंतर  होता  है, परन्तु सभी नदियों का परम लक्ष्य एक ही होता है समुद्र  को प्राप्त करना. परम लक्ष्य को प्राप्त करते ही उनका  अस्तित्व  बोध, नाम  विसर्जित  हो जाता है, वैसे ही सभी धर्म के मार्ग,  मान्यताएं, प्रवाह  एवं गति भिन्न हो सकती है  परन्तु  लक्ष्य एक ही होता है  मावनता के महासागर को प्राप्त करना. स्थूल नहीं चैतन्य  वैचारिक  का प्रबंधन एवं नियमन होता है धर्म देह नहीं आत्मा की बात करता है. वह आभूषणों  एवं जड़े हुए मणियों  का विषय नहीं, धर्म स्वर्ण का सन्दर्भ है.

इस मूल  सिद्धांत  को समझने पर ही धर्म की व्यापक परिभाषा  एवं  स्वरूप   उभरकर आयेगा. धर्म की सहानुभूति का सम्बन्ध आत्मा से होता है और वह सुख चैतन्य होता है. उसके विमल प्रकाश को सार्वजनिक करना आवश्यक है. एक ऐसा धर्म  जिससे सुख की अनुभूति हो ,वह मानव धर्म है. धर्म एक उदार संवेदानात्मक जीवन शैली बनेगा तो,  स्वयं  ही आत्मीय समरसता, सदभाव स्थापित  हो जायेगा. जिसकी परिक्रमा, परिभरण निरंतर मानव जीवन के लिए चलता रहे , उसकी निरंतरता  बाधित ना हो, काल से प्रभावित ना हो वही धर्म है. जैसे पका हुआ आम पीला दिखाई देता है, पीले आम के छिलके को हम आम नहीं कह सकते है , क्योंकि छिलके का काल बाधित होता है, उस आम के बीच का रस वाला भाग भी आम नहीं है, उसके अन्दर गुठली होती है, उस  गुठली  में  फिर से आम के अस्तित्व  और स्वरूप को स्थापित करने का सामर्थ्य होता है, सही मायने में वही आम है इस गूढ़ रहस्य को अनावृत करने का प्रयास हम सभी को करना होगा. आज वैज्ञानिक  एवं तर्क  के इस युग में बौद्धिक चेतना को  सही  चिंतन  से ही  दिशा मिल सकती है. मेरा ऐसा मानना है कि यह  वर्ष  युवा शक्ति को आवाहन करते हुये , राष्ट्र की उर्जा को  नये इतिहास के सृजन का आग्रह करता जान पढता है. जाती,धर्म, पंथ, मान्यताओं  से  विखंडित मानवता  को मानव धर्म की मूल धारा  से जुड़ने की आवश्यकता. एक नेक उदार मनुष्य बनकर ही आज युवा समाज  की सेवा कर सकता है और वो ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है. सबसे अधिक युवा वाले देश के युवाओं की ओर आज समूचा विश्व देख रहा है और वो हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी चाहता है. इसलिए युवा शक्ति धर्म के आधार पर अपनी शक्ति का विभाजन न करें तो निश्चित ही भारत महाशक्ति बन सकता है।।

“सभी धर्म के मार्ग ,  मान्यताएं, प्रवाह  एवं गति भिन्न हो सकती है  परन्तु  लक्ष्य एक ही होता है  मावनता के महासागर को प्राप्त करना “