जस्टिस यशवंत वर्मा(Yashwant Verma) के खिलाफ कैश कांड में महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. पूर्व चीफ जस्टिस संजीव खन्ना(Sanjeev Khanna) ने इस मामले की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया था, जिसमें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के जज अनु सिवारमन शामिल थे. इस पैनल ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा पर लगे आरोपों की सत्यता की पुष्टि की है. यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी गई है, और इसी के आधार पर संसद के दोनों सदनों में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर विचार किया जा रहा है.
रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के निवास से भारी मात्रा में नकद राशि बरामद की गई थी. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, वहां अधजले नोटों की भी एक बड़ी खेप देखी गई. जांच में यह पाया गया कि जस्टिस वर्मा के करीबी सहयोगी राहिल उर्फ हनुमान प्रसाद शर्मा और राजेंद्र सिंह कर्की इन अधजले नोटों को हटाने में लगे हुए थे. ये नोट जस्टिस वर्मा के घर के स्टोर रूम में रखे गए थे, जहां 15 मार्च को सुबह-सुबह आग लग गई थी. इस घटना की सूचना मिलने पर दिल्ली पुलिस और फायर ब्रिगेड के कर्मचारी मौके पर पहुंचे. अब आइए, जांच रिपोर्ट के मुख्य बिंदुओं पर नजर डालते हैं.
अधजले नोटों के वीडियो और फोटो उपलब्ध हैं, जो बार ऐंड बेंच के पास देखे जा सकते हैं. रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इन फुटेज की फॉरेंसिक जांच की गई है, जिससे उनकी सत्यता प्रमाणित हो गई है. यह एक रिकॉर्डेड दस्तावेज है. इसके अलावा, एक वीडियो में जस्टिस वर्मा के स्टाफ के सदस्य राहिल और राजेंद्र को भी देखा गया है, और उनकी आवाज भी सुनी गई है. जब इनसे बातचीत की गई, तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे घटनास्थल पर मौजूद थे.
10 गवाहों में दिल्ली पुलिस के अफसर भी शामिल
रिपोर्ट में 10 प्रत्यक्षदर्शियों का उल्लेख किया गया है, जिन्होंने घटनास्थल पर मौजूद रहकर बड़े पैमाने पर नकदी मिलने की पुष्टि की है. इन गवाहों का कहना है कि उन्होंने स्वयं कई नोट देखे, जिनमें से कुछ अधजले थे. ज्यादातर गवाह दिल्ली पुलिस और फायर सर्विस से जुड़े हुए हैं.
स्टाफ के अलावा अन्य गवाहों के भी लिए गए बयान
जस्टिस वर्मा के खिलाफ जांच करने वाले पैनल ने कहा है कि उनके स्टाफ ने वफादारी दिखाई, लेकिन उनके बयानों को प्राथमिकता नहीं दी गई. इसके बजाय, स्वतंत्र गवाहों के बयान लिए गए हैं. रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि जस्टिस वर्मा के स्टाफ के बयान पर जांच का आधार नहीं बनाया जा सकता. जब तटस्थ व्यक्तियों से बातचीत की गई, तो उनकी बातों ने इस स्थिति की पुष्टि की. इस प्रकार, किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए केवल उनके बयानों पर निर्भर रहना उचित नहीं होगा.
बेटी और स्टाफ के बयान में अंतर
रिपोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा की बेटी के बयान पर सवाल उठाए गए हैं. दीया ने कहा कि जिस कमरे में नकद राशि मिलने का जिक्र है, वह संभवतः किसी अन्य स्थान का है. इसके साथ ही, उसने अधजले नोटों और वीडियो के बारे में जानकारी होने से इनकार किया. वीडियो में राजेंद्र सिंह कर्की की आवाज को पहचानने से भी दीया ने मना कर दिया, जबकि राजेंद्र सिंह स्वयं यह स्वीकार कर चुके हैं कि वह आवाज उनकी है.
कैमरे की फुटेज गायब होने से उठे सवाल
जस्टिस यशवंत वर्मा का कहना है कि स्टोर रूम के बाहर एक सीसीटीवी कैमरा स्थापित था, जिसके माध्यम से निगरानी की जा रही थी, इसलिए स्टोर रूम में कैश रखना संभव नहीं था. हालांकि, जब सीसीटीवी फुटेज की जांच की गई, तो उसमें कुछ भी नहीं मिला. रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा ने यह स्वीकार किया कि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि कैमरा काम नहीं कर रहा था, लेकिन यह भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि घटना के 10 दिन बाद तक सीसीटीवी डेटा को नहीं निकाला गया.
जस्टिस यशवंत वर्मा द्वारा यह दावा किया गया था कि स्टोर रूम में कोई अन्य कैश रखा गया होगा, लेकिन जांच समिति ने इसे गलत पाया. रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि स्टोर रूम पूरी तरह से उनके आवासीय परिसर का हिस्सा है और वहां बिना अनुमति के कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता. इस स्थिति में वहां कैश का प्लांट होना असंभव है. इसके अतिरिक्त, गेट पर हमेशा 5 गार्ड तैनात रहते हैं और परिवार के भरोसेमंद 6 नौकर भी वहां मौजूद थे.
एक और तथ्य जस्टिस वर्मा के खिलाफ सामने आया है. रिपोर्ट के अनुसार, न तो जस्टिस वर्मा और न ही उनके परिवार या स्टाफ के किसी सदस्य ने घटना की तुरंत जानकारी दी. यहां तक कि 17 मार्च को जब यह बताया गया कि कैश के फोटो और वीडियो उपलब्ध हैं, तब भी उन्होंने चुप्पी साधे रखी. इसके अलावा, उन्होंने खुद का इलाहाबाद हाई कोर्ट में ट्रांसफर होने को भी बिना किसी प्रतिक्रिया के स्वीकार कर लिया.
जस्टिस यशवंत वर्मा ने इस मामले में साजिश की संभावना का उल्लेख किया था, लेकिन रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि जब किसी व्यक्ति का नाम ही नहीं है, तो साजिश की बात कैसे मानी जा सकती है. इसके अलावा, इतनी बड़ी मात्रा में नकद कहां से आया, इसकी जानकारी भी वर्मा और उनके परिवार ने नहीं दी है. सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जस्टिस वर्मा के दो करीबी स्टाफ ने पुलिस के जाने के बाद वहां से नोट हटा दिए, जो यह दर्शाता है कि नकद वहां मौजूद था और इसकी सूचना प्रशासन को नहीं दी गई.
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