राजस्थान. पर्यावरण संरक्षण के लिए पश्चिम राजस्थान के सरहदी बाड़मेर में एक प्रशंसनीय काम चल रहा है. यहां के लोग
पूजा-पाठ से लेकर अंतिम संस्कार तक गोकाष्ठ का प्रयोग कर रहे हैं. जिसके चलते गोकाष्ठ की डिमांड बढ़ी है. आर्थिक संकट से जूझ रही गोशालाओं के लिए यS गोकाष्ठ लकड़ी काफी मददगार साबित हो रही है. गोकाष्ठ का उपयोग बढ़ने से पेड़ों की लकड़ी का कम उपयोग होगा और पेड़ों की कटाई पर भी रोक लगेगी. जिससे पर्यावरण संरक्षण को भी बढ़ावा मिलेगा. बाड़मेर के निम्बड़ी स्थित भगवती गौशाला में ये गोकाष्ठ बनाई जा रही है. जिसका उपयोग बाड़मेर के सार्वजनिक शमशान घाट में किया जा रहा है.

गोबर से बन रहे ढेरों प्रोडक्ट

गोबर अब केवल उपले बनाने या फिर मिट्टी के घर लीपने के लिए ही नहीं रह गया है, बल्कि इससे धूप, अगरबत्ती, झोले, सजावट के सामान वगैरह समेत 100 से भी ज्यादा तरह के प्रोडक्ट बन रहे हैं. अब इसी गोबर से लकड़ी भी बनाई जा रही है. पाकिस्तान की सीमा से कंधे से कंधा मिलाने वाले सरहदी बाड़मेर में लोगों की यात्रा की अंतिम मंजिल बनने वाले श्मशान घाट में सदियों पुरानी अंतिम संस्कार की परंपरा जीवित होती नजर आ रही है. यहां बरसों पहले गाय के गोबर से बने उपलों से शवों का अंतिम संस्कार किया जाता था. लेकिन अब यहां इसी गोबर से बनी लकड़ियों का उपयोग अंतिम संस्कार में किया जा रहा है. बाड़मेर जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर निम्बड़ी स्थित भगवती गौशाला में बन रही गोकाष्ठ से बाड़मेर के सार्वजनिक श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया जाता है.

एक दिन में 100 क्विंटल माल तैयार

भगवती गोशाला में गोकाष्ठ का प्लांट लगाया गया है. यहां बन रही गोकाष्ठ को सार्वजनिक मोक्षधाम में दाह संस्कार के लिए भेजा जा रहा है. दाह संस्कार में गोकाष्ठ का प्रयोग होने से पर्यावरण शुद्ध होने के साथ-साथ पेड़ भी बचेंगे. भगवती गोशाला में लगी इस मशीन से रोजाना करीब 100 क्विंटल माल तैयार होता है. जिसे 15 दिन तक सुखाकर सप्लाई किया जाता है. इससे ना केवल पर्यावरण सरक्षंण को बढ़ावा मिलेगा बल्कि समय और पैसे की भी बचत होगी.

300 किलो गोकाष्ठ से हो जाता है काम

एक शव के अंतिम संस्कार में करीब 500 किलो लकड़ी की जरूरत पड़ती है. इसके लिए दो बड़े पेड़ काटने पड़ते हैं और करीब चार हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं. वहीं गोकाष्ठ का प्रयोग किया जाए तो 300 किलो गोकाष्ठ में ही काम हो जाता है. ऐसे में पैसा तो बचेगा ही साथ ही पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं पड़ेगी.