पी रंजनदास, बीजापुर. साल 2013 मे सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच एड़समेटा गांव में कथित मुठभेड़ में तीन बच्चों समेत आठ ग्रामीणों की मौत को 10 साल पूरे हो गए, फिर भी न्याय के लिए ग्रामीणों का संघर्ष जारी है. इस घटना को 14 मार्च 2022 को विधानसभा के पटल पर रखी गई. जस्टिस वीके अग्रवाल कमीशन की रपट को लेकर एड्समेटा में न्याय दिलाने आदिवासियों का संघर्ष जारी है.

चर्चित एड़समेटा गोलीकांड की की 10वीं बरसी पर मुठभेड़ में मारे गए कारम पांडू,कारम गुड्डू, कारम जोगा, कारम बदरू , कारम सोमलु, कर्मा मासा, पूनम लाकु, पूनेम सोनू को आज याद किया गया. गंगालूर से लगभग 15 किमी दूर एड़समेटा गांव में जहां मृतकों की स्मृति में स्मारक तैयार किया गया है, वहीं आज सैकड़ों ग्रामीण श्रद्धांजलि देने जुटे थे. नरसंहार और न्याय को लेकर आदिवासियों का सब्र टूटा तो सरकार पर गुस्सा फूट पड़ा. पिछले 10 सालों से लड़ रहे ग्रामीणों ने सत्तासीन कांग्रेस में कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा, क्षेत्रीय विधायक विक्रम की खामोशी पर ग्रामीणों ने जमकर तंज कसा.

गौरतलब है कि तब विपक्ष में रही कांग्रेस ने वर्तमान आबकारी मंत्री कवासी लखमा के नेतृत्व में एक जांच दल बनाया था. घटना के बाद राज्य सरकार ने ग्रामीणों के लगातार विरोध के मद्देनजर घटना की जांच के लिए न्यायमूर्ति वीके अग्रवाल की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग का गठन किया था.

जस्टिस अग्रवाल कमीशन की यह रपट माह सितंबर 2021 को ही राज्य कैबिनेट के सामने प्रस्तुत कर दी गई थी, जिसे छह माह बाद राज्य विधानसभा में प्रस्तुत किया गया, जिसमें मृतकों को माओवादी मानने से आयोग ने इंकार किया है. रिपोर्ट को आधार बनाकर पीड़ित पक्षों को न्याय दिलाने ग्रामीण दस सालों से लड़ाई जारी रखे हुए हैं. इसमें मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ और घायलों को पचास-पचास लाख मुआवजा देने की मांग उठ रही है. वही नरसंहार के लिए जिम्मेदार दोषी अफसर-जवानों को ना बख्शते उन पर कानूनी कार्रवाई की मांग को लेकर भी लामबंद हैं.

ग्रामीणों ने कहा – वोट की राजनीति करते है लखमा

न्याय की लड़ाई लड़ने एड़समेटा में जुटे ग्रामीण मंत्री कवासी लखमा और बीजापुर विधायक विक्रम पर जमकर बरसे. लखमा पर वोट की राजनीति करने का आरोप ग्रामीणों ने लगाया. घटना के बाद जब कांग्रेस जांच दल का नेतृत्व करते लखमा पहुंचे थे तो उन्होंने पीड़ितों को न्याय का भरोसा दिलाया था. ग्रामीणों ने कहा, सत्तासीन होने के बाद मंत्री को उनसे कोई वास्ता नहीं. केवल और केवल वोट की राजनीति करना वे जानते हैं.